कोरोना काल में पिछले एक साल से बिहार में मृत्यु के आंकड़े सार्वजनिक नहीं करने को लेकर पटना हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है. कोर्ट ने बिहार सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि जन्म-मृत्यु से संबंधित आंकड़ों के बारे में जानना नागरिकों का मौलिक अधिकार है. मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायाधीश एस कुमार की खंडपीठ ने सवाल खड़े करते हुए कहा कि क्या बिहार के लोगों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पिछले एक सालों में हुई मृत्यु के आंकड़े जानने का अधिकार था या नहीं?
कोर्ट ने अपने आदेश में राज्य सरकार से डिजिटल इंडिया और नेशनल डाटा शेयरिंग एंड एक्सेसिबिलिटी पॉलिसी 2012 के तहत जन्म-मृत्यु से जुड़े सभी आंकड़े डिजिटल पोर्टल पर अपलोड करने को कहा है. कोर्ट ने अपने विस्तृत आदेश में स्पष्ट किया है कि जन्म और मृत्यु के निबंधन एक्ट, 1969 के तहत हर नागरिक को डिजिटल पोर्टल का सूचना पाने का अधिकार है.
हाईकोर्ट ने महसूस किया है कि राज्य सरकार द्वारा कई बार आश्वासन देने के बावजूद, पोर्टल पर जन्म-मृत्यु से जुड़े आंकड़े समय-समय पर अपडेट नहीं किए. आदेश में यह भी कहा गया है कि जन्म-मृत्यु के आंकड़े से जुड़े बिहार सरकार के डिजीटल पोर्टल पर 2018 के बाद से कोई वार्षिक रिपोर्ट अपलोड नहीं किया गया है.
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पटना हाईकोर्ट की तरफ से यह सख्ती इसलिए भी दिखाई जा रही है क्योंकि हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें बिहार सरकार द्वारा कोरोना से होने वाले मृत्यु के कम आंकड़े दिखाने की बात कही गई थी. बिहार सरकार की तरफ से पिछले सप्ताह एक एफिडेविट (शपथपत्र) भी फाइल की गई थी जिसमें बताया गया था कि रातों रात प्रदेश में कोरोना से होने वाली मृत्यु की संख्या 4000 कैसे बढ़ गई.
बता दें, सात जून को बिहार सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक कोरोना से मरने वाले मरीजों की कुल संख्या 5424 थी. लेकिन आठ जून को यह संख्या बढ़कर 9375 हो गई थी.