वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पाया है कि अल्ट्रासाउंड की मदद से कोरोना वायरस को खत्म किया जा सकता है. स्टडी के अनुसार डायग्नोस्टिक इमेजिंग के लिए अल्ट्रासाउंड वाइब्रेशन की जितनी फ्रीक्वेंसी ली जाती है उससे ही कोरोना वायरस जिसमें कि SARS-CoV-2 (severe acute respiratory syndrome coronavirus 2) भी शामिल है, से लड़ा जा सकता है. ये स्टडी विश्व के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) के रिसर्चर्स द्वारा की गई है, जिसमें उन्होंने मैकेनिकल तरीके से इस बीमारी का इलाज करने की कोशिश की है.
रिसर्चरों ने पाया कि 25 से 100 मेगाहर्ट्ज़ के बीच का कंपन वायरस की 'शेल' को तोड़ने में सक्षम है. रिसर्चरों की टीम ने दावा किया कि उनका अध्ययन कोरोना वायरस का अल्ट्रासाउंड आधारित इलाज करने की तरफ पहली हिंट है. रिसर्चरों ने ये भी माना है कि रिसर्च पेपर के प्रारंभिक परिणाम कोरोना वायरस की फिजिकल प्रॉपर्टीज से जुड़े सीमित डाटा पर आधारित हैं.
उन्होंने कहा कि ये अभी भी देखना बाकी है कि अल्ट्रासाउंड कोरोना वायरस से निपटने में कितनी मदद कर सकता है. और ये मानवीय शरीर की जटिलताओं का ध्यान रखते हुए कोरोना वायरस को कितना नुकसान पहुंचा पाएगा. रिसर्च से जुड़े एक प्रोफेसर ने बताया कि ये फ्रीक्वेंसी और इंटेंसिटी मेडिकल इमेजिंग लेते समय भी सुरक्षित रहती हैं.
रिसर्चरों ने अल्ट्रासाउंड के कंपन की तीव्रता और आयाम को बढ़ाकर देखा तो शेल एक ध्वनिक घटना (जिसे रेजोनेंस माना जा सकता है) हो सकती थी. जिससे उन्होंने एक्सप्लेन किया कि कैसे ओपेरा सिंगर्स अगर सही पिच और सही वॉल्यूम पर गाना बजाएं तो वे शराब के ग्लास को भी तोड़ सकते हैं. दूसरी तरफ लोअर फ्रीक्वेंसी (25 मेगाहर्ट्स से 50 मेगाहर्ट्ज़) पर वायरस और तेजी से टूटता है. हवा और पानी (शरीर के द्रव के बराबर घनत्व वाले) दोनों में ही वायरस के टूटने की गति तेज रहती है.