सवा अरब की आबादी वाले भारत में अब तक आधिकारिक तौर पर कोरोना के सिर्फ 172 मामलों की पुष्टि हुई है जबकि इससे 3 मौतें हुई हैं. इटली, ईरान और अमेरिका जैसे देशों की तुलना में यह आंकड़ा काफी कम है. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भारत में कोरोना वायरस के कम मामलों को लेकर सवाल उठने लगे हैं. तमाम रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि भारत में कोरोना वायरस के कम मामलों की वजह यहां पर्याप्त टेस्ट ना होना है.
अमेरीकी अखबार न्यू यॉर्क टाइम्स ने भारत में कोरोना वायरस के परीक्षण और स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर विस्तार से रिपोर्ट छापी है. न्यू यॉर्क टाइम्स ने लिखा है, जहां कोरोना वायरस से प्रभावित तमाम देश कोरोना वायरस के टेस्ट की संख्या लगातार बढ़ा रहे हैं लेकिन भारतीय प्रशासन ने तमाम आलोचनाओं के बावजूद टेस्ट का दायरा बढ़ाने से इनकार कर दिया है. इससे दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश में कोरोना के कई मामले उजागर नहीं हो पाने का खतरा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सभी देशों से इस महामारी पर रोक लगाने के लिए ज्यादा से ज्यादा परीक्षण करने की सलाह दी है लेकिन भारत अभी सिर्फ उन लोगों का ही परीक्षण कर रहा है जो या तो कोरोना वायरस से प्रभावित किसी देश की यात्रा करके लौटे हैं या फिर कोरोना वायरस के किसी पुष्टि मामले से जुड़े हैं और उनमें 14 दिनों के क्ववेरंटाइन में रखने के बाद भी लक्षण नजर आए हों. मंगलवार को भारतीय प्रशासन ने सांस संबंधी गंभीर बीमारियों के मरीजों का इलाज कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों को भी परीक्षण के दायरे में शामिल किया है.
भारतीय अधिकारियों का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन भारत पर लागू नहीं होती हैं क्योंकि यहां बीमारी बाकी देशों की तुलना में गंभीर चरण में नहीं है.
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के अध्यक्ष बलराम भार्गव का कहना है कि भारत में डब्ल्यूएचओ की ज्यादा से ज्यादा टेस्ट कराने की गाइडलाइन लागू करने का वक्त अभी नहीं आया है क्योंकि अभी तक यहां कम्युनिटी ट्रांसमिशन की पहचान नहीं हुई है. इसलिए इससे लोगों के बीच ज्यादा डर और ज्यादा हाइप का माहौल बनेगा.
एसोसिएट प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत फिलहाल, हर रोज सिर्फ 90 टेस्ट ही कर रहा है जबकि देश की क्षमता रोजाना 8000 टेस्ट करने की है, अभी तक कुल 11500 परीक्षण ही किए गए हैं. आईसीएमआर का कहना है कि कोरोना वायरस के परीक्षण के विस्तार की फिलहाल जरूरत नहीं है. हालांकि, प्रशासन कम्युनिटी ट्रांसमिशन से निपटने के लिए लैब टेस्टिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर के विस्तार की तैयारी कर रहा है. फिलहाल, भारत में कोरोना वायरस की टेस्टिंग के लिए कुल 52 सेंटर्स हैं.
मध्य-पूर्व के प्रमुख अखबार अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले सप्ताह एक ब्रिटिश नागरिक कोरोना वायरस के टेस्ट के लिए नई दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल पहुंची लेकिन उसे कहा गया कि वह भारत के टेस्टिंग के दायरे में नहीं आती है और उसे लौटा दिया गया. नाम ना छापने की शर्त पर महिला ने बताया कि उसने अस्पताल के अधिकारियों के सामने आशंका जताई थी कि वह हॉस्पिटलिटी सेक्टर में है और उसके किसी संक्रमित शख्स के संपर्क में आने की पूरी संभावना है. हालांकि, उसका टेस्ट नहीं किया गया और वह कुछ दिन पहले ही अपने परिवार के पास फ्रांस लौट गई.
अलजजीरा ने लिखा है, कोरोना परीक्षण के संकुचित दायरे की वजह से तमाम बीमार लोगों को घर वापस भेज दिया जा रहा है और कुछ विश्लेषकों को आशंका है कि भारत में सरकारी आंकड़ों से कई गुना अधिक मामले हो सकते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 40 करोड़ लोग घनी आबादी वाले शहरों में रहते हैं जहां कई लोग बिना साफ पानी और जरूरी हाइजीन के बिना जीने को मजबूर हैं, ऐसी परिस्थितियों में यहां बीमारी तेजी से फैल सकती है.
न्यू यॉर्क टाइम्स ने लिखा है, भारत केवल घबराहट का माहौल बनने और हॉस्पिटल में भीड़ बढ़ने की वजह से ही नहीं बल्कि इसमें आने वाली लागत की वजह से भी टेस्ट की संख्या बढ़ाने में हिचक रहा है. जहां कोरोना वायरस के टेस्ट मरीजों के लिए फ्री है वहीं सरकार को हर एक टेस्ट की 5000 रुपए की लागत आती है. पहले से ही ज्यादा बोझ और फंडिंग की कमी से जूझ रहे पब्लिक हेल्थकेयर सिस्टम में कोरोना वायरस पर ज्यादा खर्च दूसरी स्वास्थ्य समस्याओं के फंड पर असर डालेगा. भारत अपने कुल बजट का सिर्फ 3.7 फीसदी ही स्वास्थ्य क्षेत्र पर करता है.
कोरोना वायरस भारत में इसलिए भी तेजी से फैल सकता है क्योंकि स्वास्थ्य अधिकारी क्वेरंटाइन में लोगों को रखने में जूझ रहा है. लोग आइसोलेशन वार्ड में गंदगी व तमाम समस्याओं की वजह से भाग जा रहे हैं.
स्पेन में पढ़ाई कर रहे एक भारतीय छात्र आदित्य भटनागर ने एसोसिएट प्रेस से बताया कि बर्सिलोना की फ्लाइट से दिल्ली लौटने पर उन्हें व उनके साथ 50 यात्रियों को आइसोलेशन वार्ड में रखा गया था. भटनागर ने बताया कि हर कमरे में 8 लोग थे लेकिन वहां काफी गंदगी थी. कोरोना वायरस के परीक्षण के इंतजार में बैठे लोगों को मास्क और सैनिटाइजर तक उपलब्ध नहीं कराया गया. कई लोग आइसोलेशन वार्ड से भागकर होटल में खुद को 14 दिनों के लिए आइसोलेट कर रहे हैं जहां पर वे प्रति दिन के हिसाब से 4000 रुपए तक चुका रहे हैं.
आईसीएमआर चीफ बलराम भार्गव का कहना है कि भारत में अभी भी वायरस संक्रमण के सोर्स का पता आसानी से चल रहा है. अगर कम्युनिटी ट्रांसमिशन की पहचान होती है तो टेस्टिंग के प्रोटोकॉल में भी बदलाव कर दिया जाएगा. इसके अलावा वे कम्युनिटी ट्रासमिशन की पहचान के लिए रैंडम सैंपलिंग भी कर रहे हैं. शुरुआती 1022 रैंडम सैंपल्स में 500 के रिजल्ट निगेटिव आए हैं जबकि बाकी के रिजल्ट आना बाकी है.