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Rate Cut से आम आदमी को क्या लेना-देना? कैसे ब्याज दरें घटने से आपकी जेब पर असर?

Policy Rate Impact: महंगाई के कम या ज्यादा होने पर आमतौर पर दुनियाभर के तमाम देशों में पॉलिसी रेट में बदलाव देखने को मिलता है. US में ब्याज दरों में कटौती के बाद अब भारत में भी रेपो रेट (Repo Rate) कम होने की उम्मीद बढ़ गई है.

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अमेरिका में पॉलिसी रेट कट से भारत में ब्याज दरें घटने की उम्मीद बढ़ी
अमेरिका में पॉलिसी रेट कट से भारत में ब्याज दरें घटने की उम्मीद बढ़ी

अमेरिका (America) में करीब चार साल के लंबे अंतराल के बाद आखिरकार फेडरल रिजर्व ने बड़ा फैसला लेते हुए पॉलिसी रेट में कटौती (US Fed Rate Cut) का ऐलान कर दिया. ब्याज दरें पूर्वानुमानों के अनुरूप ही 50 बेसिस पॉइंट या 0.50 फीसदी घटाई गई हैं. महंगाई के काबू में आने की बात कहते हुए दरों में बदलाव का फैसला किया गया है. इसके बाद तमाम तरह के लोन कम होने की उम्मीद है. लेकिन आप जानते हैं आखिर किसी भी देश में पॉलिसी रेट या रेपो रेट आखिर कैसे Loan EMI या फिर सेविंग्स पर असर डालता है? आइए समझते हैं Rate Cut का आम आदमी के लिए क्या मतलब होता है?  

अमेरिका के फैसले से RBI पर बढ़ सकता है दवाब
सबसे पहले बात कर लेते हैं अमेरिकी फेडरल रिजर्व के ऐलान के बारे में तो बता दें कि US Fed ने जहां ब्याज दरें कम करके 4.75 फीसदी से 5 फीसदी के स्तर पर ला दी हैं, तो वहीं आने वाले समय में इसमें और कटौती के संकेत भी दिए हैं. बता दें इससे पहले पॉलिसी रेट लंबे समय से 5.25 फीसदी से 5.5 फीसदी के स्तर के बीच था. फेड रिजर्व के चीफ जेरोम पॉवेल ने ब्याज दरों में कमी का ऐलान करने के साथ ही कहा कि ब्याज दर में कटौती को लेकर किसी भी तरह की कोई देरी नहीं की गई है.

अमेरिका

उन्होंने आगे कहा कि दरें भले ही 50 बेसिस पॉइंट कम की गई हैं, लेकिन महंगाई को लेकर अभी काम खत्म नहीं हुआ है. ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि अमेरिका समेत कई अन्य देशों द्वारा ब्याज दर में कटौती के बाद अब भारत पर भी रेपो रेट (Repo Rate) घटाने का दवाब देखने को मिला सकता है, क्योंकि देश में भी लंबे समय से ये दरें स्थिर हैं, जबकि महंगाई तय किए गए दायरे में है. हालांकि, अंतिम फैसला भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ही लेगी. गौरतलब है कि भारत में ब्याज दरें या रेपो रेट लंबे समय से 6.5 फीसदी पर स्थिर है, जिस पर आरबीआई की 6 सदस्यीय MPC की अगली बैठक में फैसला हो सकता है. ये बैठक अगले महीने 7 से 9 अक्टूबर तक होगी. 

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महंगाई का ब्याज दर से सीधा कलेक्शन
अमेरिका हो या फिर भारत या कोई दूसरा देश, सभी को महंगाई और ब्याज दरों को मैनेज करते हुए चलना पड़ता है. दुनियाभर के केंद्रीय बैंक चरम पर पहुंची महंगाई को कम करने के लिए Repo Rate में इजाफा करते हैं और आमतौर पर महंगाई थमने पर इसमें कटौती कर राहत देते हैं. इस कनेक्शन के बारे में साफ शब्दों में समझें, ये पूरा खेल किसी भी इकोनॉमी में सप्लाई और डिमांड से जुड़ा होता है. देश में डिमांड बढ़ने और सप्लाई कम होने की स्थिति में महंगाई में बढ़ोतरी देखने को मिलती है.  

महंगाई को काबू में करने के लिए Central Bank मार्केट से लिक्विडिटी कम करने के लिए पॉलिसी रेट बढ़ाने का कदम उठाते हैं, जिसके कदम से कदम मिलाते हुए तमाम बैंक Loan Rates में इजाफा करते हैं. इससे ग्राहक लोन कम लेते हैं और बाजार में लिक्विडिटी भी कम हो जाती है. मतलब लोन महंगा होने से इकोनॉमी में कैश फ्लो में गिरावट आती है और डिमांड में कमी आती है, जिससे महंगाई काबू में आने लगती है. इसके बाद बैंक रेट्स कम करने पर जोर देते हैं. 

रेपो रेट में बदलाव का लोन पर असर
जब Repo Rate में बदलाव किया जाता है, तो लोन सस्ता होने की उम्मीद जाग जाती है और कहा जाता है कि बैंक अब Loan Interest Rate कम कर देंगे. इसके लिए समझना जरूरी है कि आखिर ब्याज दरें, आपके लोन की ईएमआई से कैसे जुड़ी होती हैं. तो बता दें कि होम लोन (Home Loan), पर्सनल लोन (Personel Loan) और ऑटो लोन (Auto Loan) समेत अन्य सभी बैंकिंग लोन रेपो रेट से ही कनेक्टेड होते हैं.

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रेपोरेट

रेपो रेट दरअसल, वो दर होती है, जिसपर रिजर्व बैंक अन्य बैंकों को कर्ज देता है. इसलिए जब रेपो रेट में इजाफा होता है, तो बैंकों को रिजर्व बैंक से महंगी दर पर कर्ज मिलता है. इस वजह से आम लोगों को मिलने वाला लोन भी महंगा हो जाता है. वहीं जब इसमें कटौती की जाती है, तो बैंक भी अपने लोन की ब्याज दरें घटा देते हैं और इससे Loan EMI भी उसी हिसाब से घट सकती है. 

कैलकुलेशन से समझें EMI पर असर 
उदाहरण के जरिए समझते हैं कि आखिर रेपो रेट या पॉलिसी रेट घटने बढ़ने का लोन की EMI पर कैसे असर पड़ता है, तो मान लीजिए आपने 30 लाख रुपये का होम लोन 20 साल के लिए 6.7 फीसदी की ब्याज दर पर लिया था और उस समय रेपो रेट 4 फीसदी पर स्थिर थी. इतनी ब्याज दर पर आपकी EMI महीने 22,722 रुपये जाती थी. लेकिन अब ब्याज दरें 6.5 फीसदी पर हैं यानी 2.50 का इजाफा हुआ है, तो रेपो रेट के अनुरूप ही बैंक की बढ़ोतरी होने पर आपके लोन पर ब्याज दर भी बढ़कर 9.2 फीसदी हो गई होगी. ऐसे में आपकी ईएमआई भी बढ़कर 27,379 रुपये प्रति माह हो जाएगी. मतलब साफ है कि ईएमआई पर होने वाले खर्च के लिए आपकी जेब पर 4,657 रुपये प्रति माह का बोझ बढ़ जाता है. वहीं अगर ये इसी दर से कम होती तो ईएमआई भी कम हो जाती. 

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FD इंटरेस्ट रेट पर भी प्रभाव
एक ओर जहां रेपो रेट में इजाफे का असर लोन की ईएमआई पर दिखता है, तो वहीं सेविंग अकाउंट्स की ब्याज दरों में भी बदलाव देखने को मिलता है. अगर कोरोना काल के बाद से देश में देखें, तो महंगाई बढ़ने पर एक ओर जहां आरबीआई ने रेपो रेट में एक के बाद एक कई बार बढ़ोतरी की थी, तो वहीं दूसरी ओर बैंकों ने लोन महंगा करने के साथ ही ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अपने फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) पर इंटरेस्ट रेट में तगड़ा इजाफा किया था. आज सरकारी बैंकों में 7-8 फीसदी ब्याज ऑफर किया जा रहा है, तो कुछ स्माल फाइनेंस बैंक को 9 फीसदी तक का इंटरेस्ट रेट ऑफर कर रहे हैं. 

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