रुपया गिर रहा है, डॉलर मजबूत हो रहा है. आर्थिक गलियारों के साथ-साथ राजनीतिक गलियारों में इसकी खूब चर्चा हो रही है, क्योंकि इसी हफ्ते भारतीय करेंसी गिरकर 91 रुपये प्रति डॉलर के स्तर को पार कर गया और सर्वकालिक निम्न स्तर पर पहुंच गया.
इस बीच भारतीय रुपये के लगातार कमजोर होने पर सरकार का अहम बयान आया है. प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC) के सदस्य संजीव सान्याल का कहना है कि वो रुपये की कमजोरी को लेकर बिल्कुल भी चिंतित नहीं हैं. उनका मानना है कि सिर्फ मुद्रा का कमजोर होना अपने आप में किसी अर्थव्यवस्था की खराब हालत का संकेत नहीं होता.
एक कार्यक्रम में बोलते हुए संजीव सान्याल ने कहा कि कई देश ऐसे उदाहरण हैं, जब उस देश की इकोनॉमी तेजी से बढ़ रही थी, तो उस दौरान वहां की मुद्रा कमजोर हो रही थी. उन्होंने कहा कि जब जापान तेजी से विकास कर रहा था, तो उस दौरान वहां की करेंसी 'येन' कमजोर थी. वहीं चीन में भी 90 के दशक और 2000 के दशक में यही स्थिति थी. जब चीन ने लंबे समय तक अपनी मुद्रा को कमजोर बनाए रखा, ताकि निर्यात और औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिल सके.
रुपये को लेकर घबराने की जरूरत नहीं
अर्थशास्त्री संजीव सान्याल की मानें तो रुपये की मौजूदा स्थिति को लेकर घबराने की बिल्कुल जरूरत नहीं है. उन्होंने जोर देकर कहा कि असली चिंता की बात तब होती है, जब मुद्रा की कमजोरी से महंगाई को बढ़ाने लगे. लेकिन फिलहाल भारत में ऐसा कोई संकेत नहीं दिख रहा है. हमारे देश में महंगाई पूरी तरह से काबू में है. उनके मुताबिक जब तक रुपये की गिरावट से घरेलू कीमतों पर बड़ा दबाव नहीं पड़ता, तब तक इसे आर्थिक संकट के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.
दरअसल, यह बयान ऐसे समय आया है, जब रुपया हाल ही में डॉलर के मुकाबले 91 के स्तर से नीचे चला गया. हालांकि, इस रिकॉर्ड गिरावट के बावजूद सरकार का रुख साफ है कि देश की आर्थिक बुनियाद मजबूत है और सिर्फ डॉलर मजबूत होने से आर्थिक संकट का दावा कर देना गलत है.
इससे पहले देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने भी रुपये की कमजोरी को लेकर चिंता नहीं करने की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि सरकार और RBI की रुपये चाल पर नजर बनी हुई है. उन्होंने ये भी कहा था कि महंगाई दर बिल्कुल RBI के दायरे में है, फिर बेवजह घबराने की जरूरत नहीं है.
रुपया कमजोर पड़ने के कई कारण
तमाम एक्सपर्ट्स भी मान रहे हैं कि साल 2025 में रुपये पर दबाव के पीछे कई वैश्विक कारण हैं. डॉलर की मजबूती, वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता और भू-राजनीतिक तनाव जैसे मामलों का असर उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं पर दिख रहा है. इस साल भारत का रुपया भले ही कमजोर हुआ हो. लेकिन इसकी उतार-चढ़ाव की तीव्रता कई अन्य देशों की तुलना में कम रही है.
इसके अलावा संजीव सान्याल ने कहा कि ट्रेड डील को लेकर अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ भारत की बातचीत सकारात्मक दिशा में चल रही है. लेकिन किसी भी सौदे में राष्ट्रीय हित सर्वोपरि रहेगा. उन्होंने स्पष्ट किया कि बातचीत में समझौते और त्याग दोनों होते हैं, लेकिन भारत किसी दबाव में आकर कतई फैसला नहीं लेगा.