नौकरियों की समस्या केवल भारत जैसे विकासशील देशों में ही नहीं है. अमेरिका जैसी विश्व की आर्थिक महाशक्ति में दिग्गज संस्थानों से पढ़ाई करने के बावजूद एक प्रतिष्ठित नौकरी हासिल करना अब पहले से कहीं ज्यादा मुश्किल हो गया है. यहां तक कि हार्वर्ड बिजनेस स्कूल जैसे नामचीन संस्थानों के ग्रेजुएट्स भी इस चुनौती का सामना कर रहे हैं.
HBS के आंकड़ों के मुताबिक 2024 बैच के 23 फीसदी MBA ग्रेजुएट्स नौकरी की तलाश में हैं, जो 2023 के 20 फीसदी और 2022 के 10 परसेंट के मुकाबले काफी ज्यादा है.
जॉब को लेकर अमेरिका में भी संकट
इस समस्या को लेकर हार्वर्ड के करियर डेवलपमेंट डिपार्टमेंट का कहना है कि हार्वर्ड का नाम अब नौकरी की गारंटी नहीं देता. नौकरी के लिए आपके पास सही स्किल्स का होना जरूरी है. ये समस्या सिर्फ हार्वर्ड तक सीमित नहीं है.
HBS की रिपोर्ट में कहा गया है कि स्टैनफोर्ड, वॉर्टन और NYU स्टर्न जैसे टॉप बिजनेस स्कूलों के नौकरी प्लेसमेंट रिकॉर्ड भी कमजोर रहे हैं. शिकागो बूथ और नॉर्थवेस्टर्न केलॉग में 2022 के मुकाबले बेरोजगार ग्रेजुएट्स की संख्या तीन गुना बढ़ गई है.
अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए ये चुनौती और भी बड़ी है। यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया डार्डन के एक ग्रेजुएट के मुताबिक टेक्नोलॉजी में करियर शिफ्ट करना बेहद मुश्किल भरा रहा है, उन्होंने 1 हजार से ज्यादा आवेदन किए और जमकर नेटवर्किंग की, लेकिन अभी भी संघर्ष जारी है.
MBA करने के बाद भी बेरोजगार
वीजा स्पॉन्सरशिप की जरूरत वाले ग्रेजुएट्स के लिए नौकरी पाना और मुश्किल हो गया है. MBA के लिए नौकरी का ट्रेंड एकदम बदल चुका है. ऑन-कैंपस रिक्रूटमेंट अब कम हो गया है और कंपनियां ग्रेजुएशन के करीब छोटे, टारगेटेड हायरिंग कार्यक्रमों पर ध्यान दे रही हैं.
वहीं अमेजन, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी टेक कंपनियों ने भर्तियों में कटौती की है. मैकिन्से जैसे कंसल्टिंग फर्म्स ने भी MBA ग्रेजुएट्स की भर्ती कम कर दी है. हालात सुधारने के लिए हार्वर्ड बिजनेस स्कूल ने एक नया AI टूल शुरू किया है, जो स्किल्स के आधार पर नौकरी तलाशने और कोर्स के जरिए स्किल गैप भरने में मदद करता है.
इसके अलावा, एक चार दिनों की क्लास शुरू की गई है, जो नेटवर्किंग के साथ ही असरदार प्रेजेंटेशन के जरिए स्किल्स को एम्प्लॉयर्स तक पहुंचाता है. हालांकि, कुछ ग्रेजुएट्स के लिए ये इंतजार भावनात्मक और आर्थिक तौर पर चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है. कुछ ग्रेजुएट्स को नौकरी के लिए 2025 तक का इंतजार करना पड़ा है और वो अपनी उम्मीद से कम सैलरी पर काम करने को मजबूर हैं.
वहीं कुछ ग्रेजुएट्स ने सैकड़ों आवेदन और नेटवर्किंग के बाद सफलता हासिल की है. कहा जा रहा है कि ये सुपर-सिलेक्टिव एनवायरनमेंट अब एक अस्थाई दौर नहीं, बल्कि नई हकीकत है.