पेंशन बुढ़ापे में सबसे बड़ा सहारा होता है. इसलिए सरकार लगातार पेंशन स्कीम में लोगों को जोड़ने की मुहिम चलाती है. इसी कड़ी में अब सरकार ने एक नई पहल की है, अगर किसी को बुढ़ापे में ज्यादा पेंशन चाहिए, तो उसके लिए EPS-95 एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है. अगर आप नौकरी-पेशा हैं और रिटायरमेंट के बाद ज्यादा पेंशन चाहते हैं, तो इस विकल्प पर गौर कर सकते हैं. हालांकि एक्सपर्ट अपने हिसाब EPS-95 की कमियां और खूबियां गिना रहे हैं. फिलहाल 3 मई तक हायर पेंशन के विकल्प को आप चुन सकते हैं.
दरअसल, आज हम बारीकी से समझाने की कोशिश करेंगे, अधिक पेंशन के लिए क्या इस स्कीम को चुनना चाहिए? या फिर ये फायदे का सौदा नहीं. किसके लिए ये सबसे बेहतर विकल्प है, और किसे इग्नोर करना चाहिए? हमने इन तमाम सवालों के जवाब देश के जाने-माने निवेश सलाहकार बलवंत जैन से लेने की कोशिश की.
EPS-95 क्या है?
जवाब- सबसे पहले ये जान लीजिए कि EPS 95 क्या है और यह कैसे काम करता है? प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले कर्मचाारियों के हित में सरकार ने साल 1995 को एक नया कानून लागू किया था. इस कानून का मसकद प्रावइेट सेक्टर में काम करने वाले को पेंशन का लाभ मिल सके. यह साल 1995 में लागू हुआ था और पेंशन से जुड़ा है. इसलिए इसका नाम EPS-95 दिया गया है. जब यह कानून बना था उस समय पेंशन फंड में अंशदान के लिए अधिकतम वेज 6,500 रुपये तय किया गया था. इसे बाद में बढ़ाकर 15,000 रुपये कर दिया गया. यानी इस राशि का 8.33 फीसदी हिस्सा पेंशन फंड जाता है. इस बीच साल 2014 में बदलाव किया गया, जिसके बाद कर्मचारी को अपने बेसिक और DA की कुल रकम पर 8.33 फीसदी पेंशन फंड में अंशदान की छूट मिल गई.
सवाल– कैसे कर सकते हैं अधिक पेंशन के लिए अप्लाई?
जवाब- हर EPFO सदस्य के लिए 2 खाते होते हैं, पहला कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) और दूसरा कर्मचारी पेंशन योजना (EPS), इसी में पेंशन के लिए राशि डिपॉजिट की जाती है. कर्मचारी के बेसिक और DA से हर महीने 12 फीसदी राशि काटकर EPF में डाली जाती है, इतनी ही राशि नियोक्ता की तरफ से डिपॉजिट की जाती है. लेकिन यहां थोड़ा समझना जरूरी है, क्योंकि नियोक्ता का पूरा अंशदान EPF खाते में नहीं जाता है. नियोक्ता के 12 फीसदी में से 8.33 फीसदी रकम EPF खाते में जाती है, जबकि 3.67% रकम EPS खाते में डाली जाती है.
सवाल – क्या ज्यादा पेंशन के लिए अप्लाई करने पर सैलरी कम हो जाएगी?
जवाब- नियम के मुताबिक अगर कोई कर्मचारी ज्यादा पेंशन के लिए अप्लाई करता है तो सैलरी पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है. बदलाव का असर नियोक्ता के अंशदान में देखने को मिलेगा. अगर किसी कर्मचारी की बेसिक सैलरी और DA हर महीने 20 हजार रुपये है तो इस हिसाब 2400 रुपये कर्मचारी के हिस्से से EPF खाते में डाला जाता है और नियोक्ता को भी 2400 रुपये का योगदान देना होता है, लेकिन नियोक्ता का सारा पैसा EPF खाते में नहीं जाता है. नए नियम के तहत नियोक्ता का 8.3 फीसदी हिस्सा यानी 1660 रुपये पेंशन खाते में जाने लगेगा. बाकी 740 रुपये EPF खाते में जाएगा. अभी तक 15,000 रुपये बेसिक और DA वाले को कर्मचारी को नियोक्ता का EPS में अंशदान 8.33 फीसदी यानी 1,249.50 रुपये जाता है, बाकी पैसा EPF खाते में जाता था. लेकिन अब 2014 से EPS में अंशदान पर वेज कैप खत्म कर दिया गया और आपकी बेसिक और डीए के कुल पैसे का 8.33 फीसदी रकम डालने का विकल्प खुला है. यानी अब बेसिक और डीए मिलाकर जितना फंड बनता है, उसमें से 8.33 फीसदी राशि पेंशन में डालने का विकल्प मिलेगा.
सवाल – क्या नियोक्ता पर हायर पेंशन का बोझ पड़ने वाला है?
जवाब- बोझ किसी के ऊपर नहीं पड़ने वाला है, न तो कर्मचारी के ऊपर न ही नियोक्ता पर, केवल नियोक्ता की ओर से EPF खाते में जमा होने वाली राशि अब EPS खाते में जाएगी, यानी नियोक्ता की ओर 12 फीसदी में से 8.33 फीसदी राशि EPS खाते में जमा कराई जाएगी. बाकी 3.67 फीसदी राशि EPF में जमा होगी. यानी नियोक्ता की ओर से पेंशन फंड में ज्यादा अमाउंट जाएगा, जबकि EPF में कम फंड जाएगा.
सवाल – कितनी मिलेगी पेंशन, खुद ऐसे करें कैलकुलेट?
जवाब - इसके लिए एक फॉर्मूला है... पेंशन योग्य वेतन x नौकरी के साल/70. मान लीजिए 15 हजार रुपये बेसिक + डीए है. और 35 साल तक नौकरी की तो इस हिसाब से पेंशन मासिक 7,500 रुपये बनती है. बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने इसका फॉर्मूला में बदलाव करते हुए नौकरी के अंतिम 60 महीने यानी पिछले 5 साल के औसत वेतन को पेंशन योग्य सैलरी करार दिया.
इस हिसाब से नौकरी के आखिरी 60 महीने का औसत वेतन (बेसिक + DA) 20 हजार रुपये है तो फिर इस राशि में नौकरी के कुल साल को गुना करना है, और फिर उसमें 70 से भाग किया जाएगा. इस तरह के 10000 रुपये महीने पेंशन मिलने की संभावना बनती है. अगर किसी की एक लाख बेसिक+डीए है तो फिर इस फॉर्मूले से पेंशन 50000 रुपये महीने मिलेगी. जो कि 15 हजार बेसिक वाले से फॉर्मूले से 42,500 रुपये ज्यादा है. 15 हजार बेसिक फॉर्मूले से पेंशन हर महीने 60 साल के बाद 7500 रुपये बन रही थी.
सवाल –हायर पेंशन चुनने पर कर्मचारी का क्या नफा-नुकसान होने वाला है?
जवाब- सीधे शब्दों में कहें तो इस बदलाव से रिटायरमेंट के बाद एकमुश्त मिलने वाली राशि कम हो जाएगी. जबकि पेंशन ज्यादा मिलने लगेगी. बलवंत जैन का कहना है कि इस योजना के लाभ-नुकसान दोनों हैं. अगर नौकरी में अब कम साल बचे हैं तो फिर हायर पेंशन को इग्नोर करना चाहिए. सारा फोकस एकमुश्त राशि की तरफ होना चाहिए. ऐसे लोगों के लिए पुरानी व्यवस्था के तहत ही आगे बढ़ना चाहिए. लेकिन नौकरी में अधिक साल बचे हैं तो फिर इसे विकल्प के तौर पर देख सकते हैं. कम से कम 20 साल बची नौकरी वालों के लिए EPS-95 फायदे का सौदा साबित हो सकता है.
सवाल- ज्यादा पेंशन के लिए कैसे करें अप्लाई?
जवाब- अगर आप हायर पेंशन के विकल्प को चुनते हैं तो अपने जहां काम करते हैंस वहां के HR से संपर्क कर सकते हैं. अधिकतर कंपनियों में HR की ओर से कर्मचारियों को इस बारे में मेल के जरिये सूचित कर दिया गया है, अगर आप इस विकल्प को चुनते हैं तो नए नियम के अनुसार EPF खाते में जाने वाली राशि अब EPS खाते में जाने लगेगी.
सवाल- क्या रिटायर्ड कर्मचारी भी हायर पेंशन को चुन सकता है, कैसे?
जवाब- रिटायर्ड कर्मचारी भी हायर पेंशन के लिए अप्लाई कर सकता है. उन्हें भी नये नियम के मुताबिक पेंशन मिलेगी. लेकिन तब ज्यादा पेंशन मिलेगी जब उनके EPS में अकाउंट में ज्यादा पैसा रहेगा. इसके लिए रिटायर्ट कर्मचारी को EPF का फंड EPS में डालना होगा. बलवंत जैन ने बताया कि रिटायर्ड कर्मचारी को अधिक पेंशन के लिए पेंशन फंड में EPF की राशि ब्याज समेत जमा कराना होगा.
आइए जानते हैं नफा-नुकसान का गणित:
पहला गणित (पुरानी व्यवस्था के तहत)-
अगर किसी की सैलरी में बेसिक और DA एक लाख रुपये है, तो पुरानी व्यवस्था के तहत EPF में नियोक्ता का अंशदान हर महीने 10,750 रुपये यानी सालाना 1.29 लाख बैठता है, फॉर्मूले के तहत 35 साल की नौकरी में नियोक्ता का PF में कुल अंशदान 45.15 लाख रुपये हो जाएगा. इस पर औसतन 8 फीसदी सालाना ब्याज मान लिया जाए तो कुल रकम 1,94,92,177 रुपये होगी. यानी रिटायरमेंट पर नियोक्ता की तरफ कर्मचारी के हाथ में करीब 2 करोड़ रुपये की रकम आएगी और हर महीने 7,500 रुपये की पेंशन मिलेगी.
दूसरा गणित (नई व्यवस्था के तहत)-
वहीं 1 लाख की सैलरी पर EPF में नियोक्ता का अंशदान हर महीने 3,670 रुपये यानी साल में 44,040 रुपये. 35 साल की नौकरी में नियोक्ता का पीएफ में कुल अंशदान 15,41,400 रुपये बनता है. इस पर औसतन 8 फीसदी का ब्याज मान लिया जाए तो कुल रकम होगी 66,54,639 रुपये. यानी आप 1,28,37,538 (1 करोड़ 28 लाख 37 हजार 538) रुपये का योगदान करके 42,500 रुपये हर महीने पेंशन के तौर पर पाएंगे.
तीसरा गणित-
एक समीकरण ये निकलता है कि अगर आप पुरानी व्यवस्था के तहत EPF की कुल राशि में से 1,28,37,538 रुपये फिक्स्ड डिपॉजिट कर देते हैं तो और उसपर सालाना 6 फीसदी रिटर्न मिलता है तो हर महीने 64,187 रुपये मिलेंगे और आपका पूरा पैसा भी सेफ रहेगा. हालांकि, यह गणित 35 साल तक एक समान सैलरी के तहत निकाला गया है, ताकि आप आसानी से समझ सकें. अगर FD पर ज्यादा ब्याज मिलता है तो हर महीने मिलने वाली राशि बढ़ जाएगी.
चौथा गणित-
हायर पेंशन अपनाने पर बढ़ी हुई पेंशन का फंड इनकम टैक्स के दायर में आ जाएगा. यानी एक तरह उसे सैलरी मानी जाएगी. उसपर आयकर स्लैब के हिसाब से टैक्स का प्रावधान है. अगर आप उसे दायरे में आएंगे, तो टैक्स भरना पड़ेगा. वहीं अगर हायर पेंशन को नहीं अपनाते हैं तो फिर आपका EPF फंड पूरी तरह से टैक्स फ्री रहता है. यानी पुरानी व्यवस्था में टैक्स नहीं देना पड़ेगा.