भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ने से आम आदमी घबराया हुआ है. इस बीच वित्त मंत्रालय का कहना है कि आर्थिक गतिविधियों पर उसकी नजर बनी हुई है. वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने हाल ही में कुछ महत्वपूर्ण आर्थिक प्रभावों और जोखिमों पर फोकस किया है, जो न केवल वित्त वर्ष 2025-26 के बजट को प्रभावित कर सकते हैं, बल्कि भारत की दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता पर भी असर डाल सकते हैं.
खाद्य महंगाई पर फिलहाल कोई असर नहीं
हालांकि वित्त मंत्रालय का कहना है कि भारत-पाक तनाव के बावजूद खाद्य मुद्रास्फीति के कोई तत्काल संकेत नहीं दिख रहे हैं. यानी भारत-पाक तनाव से फिलहाल खाने-पीने की चीजें महंगी नहीं होने वाली है. क्योंकि मजबूत घरेलू उत्पादन, पर्याप्त बफर स्टॉक और सुचारू आपूर्ति श्रृंखला ने खाद्य कीमतों को स्थिर रखा है. अगर तनाव लंबे समय तक बना रहता है, तो सीमा पार व्यापार या लॉजिस्टिक्स में व्यवधान खाद्य आपूर्ति को प्रभावित कर सकता है, जिससे कीमतों में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है.
सरकार की पैनी नजर
इस बीच वित्त मंत्रालय के अधिकारी स्थिति पर कड़ी नजर रख रहे हैं और किसी भी संभावित वृद्धि (एस्कलेशन) के जोखिमों के प्रति सतर्क हैं. अगर भारत-पाकिस्तान रे बीच तनाव और बढ़ता है, तो इससे आर्थिक संसाधनों पर दबाव पड़ सकता है, विशेष रूप से रक्षा व्यय में बढ़ोतरी से. मूडीज की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत सार्वजनिक निवेश और निजी खपत के कारण स्थिर है. लेकिन पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को बाहरी वित्तपोषण और व्यापारिक रुकावटों के कारण गंभीर दबाव का सामना करना पड़ सकता है.
वित्त मंत्रालय ने चिंता जताई है कि रक्षा जरूरतों पर ज्यादा खर्च होने से सरकारी खजानों पर थोड़ा भार बढ़ सकता है. FY26 के बजट में रक्षा के लिए 6.81 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो FY25 की तुलना में 9.5% अधिक है और कुल बजट का 13.45% हिस्सा है. यह बढ़ा हुआ रक्षा व्यय बुनियादी ढांचे और अन्य दीर्घकालिक विकास परियोजनाओं के लिए नियोजित निवेश को प्रभावित कर सकता है. FY26 में बुनियादी ढांचे के लिए 10-12.5% की बढ़ोतरी का अनुमान है. लेकिन तनाव बढ़ने पर यह लक्ष्य जोखिम में पड़ सकता है.
राजकोषीय घाटे का दबाव
सरकार ने FY26 में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.4% तक लाने का लक्ष्य रखा है, जो FY25 के 4.8% से कम है. हालांकि, अतिरिक्त रक्षा व्यय इस लक्ष्य को संशोधित करने के लिए मजबूर कर सकता है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगर तनाव बढ़ता है, तो राजकोषीय घाटा बढ़ सकता है, क्योंकि संसाधन उत्पादक निवेशों से सुरक्षा की ओर स्थानांतरित होंगे. केंद्र और राज्य सरकारों का संयुक्त राजकोषीय घाटा 7% से अधिक हो सकता है, जिससे निजी क्षेत्र की उधारी पर दबाव पड़ सकता है और विदेशी पूंजी पर निर्भरता बढ़ सकती है.
बढ़ सकता है रक्षा बजट
केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए 6.81 लाख करोड़ रुपये रक्षा बजट निर्धारित किया है, जो कि FY25 के मुकाबले 9.5% अधिक है. यह आवंटन सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण और तत्परता बनाए रखने के लिए आवश्यक है. हालांकि, यह अन्य बजटीय प्राथमिकताओं के साथ संतुलन की चुनौती को भी उजागर करता है. सरकार का लक्ष्य ऋण-से-जीडीपी अनुपात को 56% तक कम करना है, लेकिन निरंतर रक्षा व्यय इस लक्ष्य को चुनौती दे सकता है.