रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप (RADG) के प्रमुख अनिल अंबानी आज 64 साल के हो गए. एक दौर था, जब बिजनेस वर्ल्ड में अनिल अंबानी का बड़ा नाम था, क्योंकि उस समय उनका बड़ा कारोबार भी था. साल 2010 से पहले अनिल अंबानी दुनिया के टॉप-10 अमीरों की लिस्ट में शामिल थे और एक समय ऐसा भी आया जब वो दुनिया के छठे सबसे अमीर व्यक्ति बन गए. लेकिन समय के साथ उनकी स्थिति कमजोर पड़ने लगी और अब उनका लगभग सभी बिजनेस संकट में है.
दरअसल, दिवंगत धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) द्वारा रिलायंस ग्रुप स्थापना 1958 में की थी. साल 2002 में उनके निधन के बाद देश के इस बड़े कारोबारी घराने में बंटवारा हुआ और धीरूभाई के दोनों बेटों के बीच कंपनियों को बांटा गया. बड़े बेटे मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) को पुराने बिजनेस से संतोष करना पड़ा, जिनमें पेट्रोकेमिकल, टेक्सटाइल रिफाइनरी, तेल-गैस कारोबार शामिल था. तो वहीं छोटे बेटे अनिल अंबानी (Anil Ambani) के खाते में नए जमाने के बिजनेस आए. उन्हें टेलीकॉम, फाइनेंस और एनर्जी बिजनेस सौंपा गया.
अनिल अंबानी नए जमाने का बिजनेस मिलने के बाद भी वे कुछ खास कमाल नहीं कर पाए और आज उनकी कई कंपनियां दिवालिया हो गईं. वहीं दूसरी ओर मुकेश अंबानी ने अपनी सूझ-बूझ से कारोबार को बुलंदियों पर पहुंचा और आज एशिया के सबसे अमीर इंसान हैं. आइए नजर डालते हैं अनिल अंबानी कहां गलती कर गए.
कभी टॉप-10 अमीरों में शामिल थे अनिल अंबानी
Anil Ambani के पास टेलीकॉम, पावर और एनर्जी बिजनेस था, जो नए जमाने में सफलता की गारंटी माना जा रहा था. इन सेक्टर्स में वे देश का बड़ा खिलाड़ी बनना चाहते थे और उन्होंने कई महत्वकांक्षी योजनाएं बनाईं, लेकिन सटीक प्लानिंग न होने के कारण उन्हें फायदे की जगह भारी नुकसान झेलना पड़ा. बंटवारे के पास उनके पास जो कंपनियां आई थीं, उनकी दम पर साल 2008 में अनिल अंबानी दुनिया के टॉप अमीरों की लिस्ट में छठे पायदान पर थे, जबकि आज हालत ये है कि उनकी कंपनियां बिकने की कगार पर हैं. पांच प्वाइंट में समझते हैं कि आखिर उनकी बर्बादी के क्या बड़े कारण रहे.
पहला कारण
अनिल अंबानी को जब नए जमाने का कारोबार मिला, तो उन्होंने बेहद जल्दबाजी में बिना सटीक प्लानिंग के कारोबार को आगे बढ़ाने की जल्दबाजी की, जो उन्हें बहुत भारी पड़ी. वे बिना तैयारी के एक के बाद एक नए प्रोजेक्ट्स में रकम लगाते गए.
दूसरा कारण
अनिल अंबानी उस समय ऊर्जा से लेकर टेलीकॉम सेक्टर का किंग बनने के लिए जिन नए प्रोजेक्ट में दांव लगा रहे थे, उनमें लागत अनुमान से ज्यादा आ रही थी और रिटर्न न के बराबर मिल रहा था. ये उनके पतन के बड़े कारणों में से एक है.
तीसरा कारण
एक्सपर्ट के मुताबिक, अनिल अंबानी के पतन के कई कारणों में से एक उनका किसी एक कारोबार पर पूरी तरह फोकस न करना रहा और वे एक से दूसरे बिजनेस में कूदते रहे. क्रियान्वयन में खामी की वजह से उनका कई प्रोजेक्ट्स में बड़ा पैसा लगा गया.
चौथा कारण
अनुमान से ज्यादा लागत होने के चलते उन्हें परियोजनाओं को पूरा करने के लिए एडिशनल एक्विटी और देनदारों से कर्ज लेना पड़ा. कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता गया और जिन प्रोजेक्ट्स में उन्होंने कर्ज का पैसा लगाया, उनसे रिटर्न भी न मिल सका.
पांचवां कारण
अनिल अंबानी द्वारा ज्यादातर बिजनेस से जुड़े फैसले महत्वाकांक्षा के फेर में पड़कर लिए गए थे. इसके अलावा वह कॉम्पिटीशन में बिना किसी रणनीति के कूद जाने में दिलचस्पी रखते रहे. इसके चलते कर्ज का बोझ और 2008 की ग्लोबल मंदी ने उन्हें दोबारा उठने का समय भी नहीं दिया.
ग्लोबल मंदी से पहले अनिल अंबानी के ग्रुप (ADAG) की कंपनियों की मार्केट वैल्यू करीब 4 लाख करोड़ रुपये थी. लेकिन, वे इस मुकाम पर टिके नहीं रह सके. उन्हें मिली कंपनियों की बर्बादी में R Power और R Com का जिक्र बेहद जरूरी है. इसे उदाहरण के तौर पर समझें तो अनिल अंबानी ने ऊर्जा क्षेत्र में टॉप पर पहुंचने के लिए कई प्रोजेक्ट में दांव लगाया था, इसमें से एक सासन प्रोजेक्ट था. इसकी लागत उस समय अनुमान से 1.45 लाख डॉलर ज्यादा पहुंच गई, इस परियोजना की फंडिंग एडिशनल एक्विटी और देनदारों के कर्ज से हुई थी और कंपनी पर कर्ज 31,700 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया. देनदारी बढ़ती गई, कर्ज बढ़ता गया और हाथ में कुछ नहीं आया.
इसके अलावा टेलीकॉम सेक्टर में उनकी गलती ने उन्हें आर्थिक तौर पर कमजोर करने में अहम रोल प्ले किया. R Com के जरिए अनिल अंबानी अमीरों की तकनीक लेकर गरीबों को सौंपने के काम में जुटे थे. इस समय उन्होंने CDMA आधारित नेटवर्क अपनाया, जो कि GSM नेटवर्क के मुकाबले महंगा सौदा था. तब के समय में आरकॉम का ARPU 80 रुपये था, जो हर समय इंडस्ट्री के औसत 120 रुपये से कम रहा था. इस तरह हर यूनिट पर आरकॉम को नुकसान उठाना पड़ा और वो आरकॉम 25,000 करोड़ से ज्यादा के कर्ज तले दब गई.
मुकेश अंबानी भारत में सबसे अमीर
एक ओर जहां अनिल अंबानी अपनी कंपनियों को फायदे का सौदा बनाने में कामयाब नहीं हो सके, तो दूसरी ओर उनके बड़े भाई मुकेश अंबानी ने अपनी सूझ-बूझ और सही रणनीति के चलते ग्रुप के पुराने कारोबार को रफ्तार दी. इसके साथ ही अन्य सेक्टर्स में भी एंट्री लेते हुए बिजनेस सेक्टर में अलग मुकाम पाया.