अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ की युद्ध (US-China Tariff War) अब चरम पर पहुंच गई है. दोनों में से कोई हार मानता नजर नहीं आ रही है. अमेरिका चीनी आयात पर लगातार भारी भरकम टैरिफ लगा रहा है, तो वहीं चीन भी पलटवार करते हुए US को कड़ी टक्कर दे रहा है. बुधवार को ट्रंप ने चीन से आयात किए जाने वाले प्रोडक्ट्स पर टैरिफ लिमिट को 125 परसेंट कर दिया है, जबकि एक दिन पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति ने चीन पर 104 फीसदी का टैरिफ लगाया था, जिसके बदले चीन ने भी अमेरिकी इंपोर्ट पर 84 फीसदी टैरिफ लगा दिया था.
अब China-US के बीच टैरिफ की इस लड़ाई के पीछे अमेरिका के असली खेल की बात करें, तो नजर आता है कि कहीं न कहीं ट्रंप प्रशासन मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में चीन की कमर तोड़ना चाहता है, क्योंकि भले ही अमेरिका आर्थिक महाशक्ति है लेकिन Manufacturing Sector में चीन का दबदबा है. आइए समझते हैं इसके बारे में विस्तार से....
चीन कहलाता है 'दुनिया की दुकान'
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में दबदबे की बात आती है, तो अमेरिका नहीं बल्कि चीन का नाम टॉप पर रहता है. दरअसल, ड्रैगन को 'दुनिया की दुकान' के नाम से भी जाना जाता है. मैन्युफैक्चरिंग के मामले में फिलहाल कोई और देश उसकी होड़ नहीं कर सकता. ये ऐसे ही नहीं कहा जाता है संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी प्रभाग द्वारा प्रकाशित आंकड़ों को देखें, तो साल 2022 में वैश्विक विनिर्माण उत्पादन में चीन का योगदान 31 फीसदी थी, जबकि 2023 में ये 29 फीसदी रहा था.
दूसरी ओर अमेरिका की बात करें, तो इस लिस्ट में संयुक्त राज्य अमेरिका का योगदार 2022 में महज 16 फीसदी और 2024 में करीब 15 फीसदी रहा था. यहां बता दें कि पहले अमेरिका इस मामले में सबसे आगे रहा करता था, लेकिन साल 2010 के बाद चीन ने इसे पीछे छोड़ दिया और तब से ये Manufacturing Sector में नंबर एक बना हुआ है, जिसपर अब ट्रंप की टेढ़ी नजर है.
Tariff के असर को ऐसे समझिए
बता दें कि टैरिफ लगाने के बाद एक प्रोडक्ट की कीमत बढ़ जाती है. ट्रंप ने चीन पर 125 फीसदी टैरिफ लगाया है. इसका मतलब यह है कि अब जो भी अमेरिकी बिजनेसमैन चीन से सामान मंगाएंगे उसकी कीमत में 125 फीसदी का इजाफा हो जाएगा. अगर चीन में बना एक सामान अमेरिकी बिजनेसमैन को पहले 1 लाख रुपये में मिलता था तो अब टैरिफ लगाने के बाद उसकी कीमत 2.25 लाख रुपये हो जाएगी. इससे चीन के निर्यात में गिरावट आ सकती है.
इलेक्ट्रिक कार से खिलौनों तक में नंबर-1
चीन इलेक्ट्रिक कार, सोलर पैनल, कपड़ों और खिलौनों सहित कई चीज़ों का निर्माण करता है और फिर इसे दुनिया भर में निर्यात करता है. इसके पास फैक्ट्रियों, असेंबली लाइन और सप्लाई की एक पूरी चेन है. Donald Trump ने 125% का हाई टैरिफ लगातार चीन की मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री पर सीधा प्रहार किया है. पिछले वर्ष दोनों आर्थिक शक्तियों के बीच वस्तुओं का व्यापार लगभग 585 अरब डॉलर तक पहुंच गया. चीन का वैश्विक विनिर्माण में दबदबा इतना है कि इसके मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की कुल वैल्यू दुनिया के सात सबसे बड़े विनिर्माण क्षेत्र में अग्रणी देशों के कुल प्रोडक्शन जितना है. वहीं अमेरिकी अर्थव्यवस्था अभी विनिर्माण पर बहुत कम निर्भर है.
निर्यात है चीन की रीढ़, जिसे तोड़ रहा US
चीन को 'विश्व का कारखाना' बनाने में यहां कम लागत वाले श्रम, कुशल प्रोडक्शन सिस्टम और मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर का अहम रोल है, जिसके चलते China मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में बेहद मजबूत स्थिति है. ट्रंप के हाई टैरिफ के असर के बारे में बात करें, तो इससे चीनी फैक्ट्रियों को तगड़ा नुकसान हो सकता है. मूडीज बीते दिनों आई एक रिपोर्ट का जिक्र करें, तो इसमें एक्सपर्ट्स ने कहा है कि निर्यात ही दरअसल चीन की अर्थव्यवस्था (China Economy) की रीढ़ रहा है. अगर टैरिफ इसी तरह बढ़ता रहता है, तो अमेरिका को होने वाले निर्यात में एक चौथाई से लेकर एक तिहाई की कमी आ सकती है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन की आय का बड़ा हिस्सा निर्यात से जुड़ा हुआ है और 125 फीसदी का टैरिफ लगने से चीनी सामान की विदेशी डिमांड बुरी तरह प्रभावित हो सकती है और ट्रेड सरपल्स में भारी कमी आ सकती है.
US-China में कितना कारोबार?
यहां बता दें कि अमेरिका और चीन के बीच बड़ा कारोबार है. एक ओर जहां चीन अमेरिका से एयरोस्पेस प्रोडक्ट, केमिकल्स, कोयला और पेट्रोलियम गैस, टेलीकॉम मशीनरी, कंप्यूटर प्रोडक्ट समेत इंडस्ट्रियल मशीनरी और ऑटो पार्ट्स समेत अन्य सामान खरीदता है, तो वहीं चीन अमेरिका को कई तरह के सामान बेचता है, जो इसे अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बनाता है. मुख्य रूप से, चीन से अमेरिका को निर्यात होने वाले उत्पादों में इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट्स जैसे स्मार्टफोन, कंप्यूटर, टेलीविजन के अलावा औद्योगिक मशीनें, उपकरण, कपड़े, जूते, और अन्य उत्पाद शामिल हैं.