
मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) और अनिल अंबानी (Anil Ambani) अपने पिता धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) के कारोबार को अलग-अलग आगे बढ़ा रहे हैं. मुकेश अंबानी के मुकाबले फिलहाल अनिल अंबानी का कारोबार कमजोर स्थिति में है. उनकी कंपनियां बैंकों के कर्ज के बोझ तले दबी हैं. हालांकि, जब दोनों भाइयों के बीच कारोबार का बंटवारा हुआ था, तब अनिल अंबानी को मजबूत स्थिति में माना जा रहा था. लेकिन धीरे-धीरे उनके कारोबार का ग्राफ नीचे आ गया और मुकेश अंबानी अपने बिजनेस में मजबूत होते चले गए. पिता धीरूभाई अंबानी की मृत्यु के बाद मुकेश और अनिल के बीच कारोबार का बंटवारा हुआ था.
कारोबार का बंटवारा
बात 2002 की है. रिलायंस इंडस्ट्रीज के फाउंडर धीरूभाई अंबानी का 70 साल की उम्र में निधन हो गया. भारतीय कारोबार जगत के लिए यह एक बड़ा झटका था. मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी को अपने पिता धीरूभाई अंबानी से विरासत में एक बड़ा कारोबारी साम्राज्य मिला. धीरूभाई अंबानी के निधन के बाद ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि दोनों भाई मिलकर कारोबारी साम्राज्य को आगे बढ़ाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. महज दो साल के भीतर ही मुकेश और अनिल अंबानी के रिश्तों की कड़वाहट जगजाहिर हो गई. दोनों भाइयों के बीच खाई इतनी चौड़ी हो गई कि मां कोकिलाबेन को दखल देकर बंटवारा करना पड़ा.

समझौते पर दस्तखत
कोकिलाबेन ने मुकेश को ऑयल रिफाइनरीज और पेट्रोकेमिकल का कारोबार सौंप दिया, तो अनिल के हिस्से में टेलीकॉम, फाइनेंस और एनर्जी यूनिट्स आईं. दोनों भाइयों ने एक-दूसरे से होड़ या प्रतिस्पर्धा नहीं करने के एक समझौते पर साइन भी किए. तय हुआ कि मुकेश टेलीकॉम कारोबार में पैर नहीं रखेंगे, जबकि अनिल ऊर्जा और पेट्रोकेमिकल से दूर रहेंगे.
बंटवारे में अनिल अंबानी को वो सभी कारोबार मिले, जिसकी वो जिद कर रहे थे. लेकिन जिस टेलीकॉम कारोबार को मुकेश अंबानी ने सींचा था, वो उनके हाथ से निकल गया. पर उस वक्त मुकेश खामोश रहे. शुरुआत अनिल अंबानी के कारोबार के लिए स्थितियां अनुकूल रहीं. लेकिन कुछ समय के बाद इसमें गिरावट का दौर शुरू हो गया और फिर 2008 की मंंदी ने उन्हें तगड़ा झटका दिया. दूसरी तरफ मुकेश अंबानी के हिस्से आए कारोबार ने सफलता की राह पकड़ ली थी.
2008 की मंदी ने अनिल को दिया झटका
जानकारों का कहना है कि अनिल पारिवारिक कारोबार के बंटवारे के फौरन बाद से ही पूंजी निगलने वाले प्रोजेक्ट में उतरने को उतारू थे. अनिल अंबानी के हर कारोबारी फैसले महत्वाकांक्षा के फेर में पड़कर लिए गए थे. इसके अलावा वह कॉम्पिटीशन में बिना किसी रणनीति के कूद जाने में दिलचस्पी रखते रहे. अनिल अंबानी के लिए 2008 की वैश्विक मंदी ने भी बड़ा झटका दिया. एक अनुमान के मुताबिक इस मंदी में अनिल अंबानी को 31 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. इसके बाद अनिल अंबानी जिस कारोबार में हाथ लगा रहे थे, वहां उन्हें निराशा मिल रही थी.
मुकेश अंबानी का चमका कारोबार
दूसरी तरफ मुकेश अंबानी संभल-संभल कर कदम रख रहे थे. इसी बीच, दोनों भाइयों के बीच प्रतिस्पर्धा नहीं करने की शर्त 2010 में खत्म हो गई. इसे मुकेश अंबानी ने भुनाते हुए तुरंत मोबाइल मार्केट में उतरने का फैसला किया. इसकी तैयारी में अगले सात साल में उन्होंने 2.5 लाख करोड़ रुपये निवेश किए.

फिर नई कंपनी रिलायंस जियो इन्फोकॉम के लिए हाई स्पीड 4G वायरलेस नेटवर्क तैयार किया. मुकेश अंबानी के इस कदम ने एक ही झटके में गांव-गांव तक उनकी पहचान बना दी. इस दौरान मुकेश अंबानी के ऊर्जा और पेट्रोकेमिकल कारोबार ने भी हर दिन नया मुकाम हासिल किया.
आज मुकेश अंबानी का कारोबार चमक रहा है, लेकिन अनिल अंबानी की कंपनियां कर्ज में डूबी हैं. हाल ही में मुकेश अंबानी ने अनिल अंबानी की रिलायंस इंफ्राटेल को अधिग्रहण करने मंजूरी हासिल कर ली है. NCLT ने रिलायंस इंफ्राटेल के टावर और फाइबर की संपत्तियों के अधिग्रहण के लिए रिलायंस जियो को भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के एस्क्रो खाते में 3,720 करोड़ रुपये जमा करने को कहा है.