सावन का महीना आते ही उत्तर भारत के हृदयस्थल में एक अलौकिक ऊर्जा दौड़ने लगती है. देवों के देव महादेव शिव के भक्त अपनी इच्छाओं, मन्नतों, विश्वासों और आस्था की गठरी लिए कांवर उठाते हैं और गंगा जल लेकर पैदल देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम की ओर बढ़ जाते हैं. बिहार के सुल्तानगंज से जल लेकर यह यात्रा शुरू होती है, जिसे श्रद्धालु नंगे पांव 105 किलोमीटर तक चलकर पूरा करते हैं.
बिहार के दरभंगा जिले से हर साल की तरह इस साल भी सैकड़ों कांवड़ियों ने अपनी जीवन गाथा, भावनाएं और श्रद्धा लेकर कांवर यात्रा शुरू की. लेकिन यह यात्रा केवल शारीरिक यात्रा नहीं है, यह एक भावनात्मक और आध्यात्मिक सफर है, जिसमें हर यात्री की एक अलग कहानी होती है. कोई मन्नत पूरी होने पर आता है, कोई चमत्कार से प्रेरित होकर, तो कोई सिर्फ आस्था में डूबा हुआ.
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कांवर यात्रा से मिली जीवन की संतुष्टि
दरभंगा के जाले निवासी विपिन ठाकुर सात वर्षों से बाबा धाम की यात्रा कर रहे हैं. पहले वे साधारण यात्रा करते थे, लेकिन बाद में कांवर यात्रा की महत्ता समझी और नंगे पांव चलना शुरू किया. वे कहते हैं कि यह सिर्फ धार्मिक नहीं, मानसिक और आत्मिक संतोष का भी विषय है. वहीं, नेपाल के 25 वर्षीय मोहन कुमार कोई योजना नहीं बनाए थे, लेकिन मन के भीतर अचानक एक लहर उठी और वे कांवर लेकर निकल पड़े. वे कहते हैं, घर में रोजगार की समस्या है, मन बेचैन था. बाबा के दरबार में जाकर प्रार्थना करूंगा कि वह सब कुछ ठीक करें.
1974 से शुरू की यात्रा, आज भी जारी
58 वर्षीय किसान कामेश्वर सिंह कहते हैं कि 1974 में उन्होंने पहली बार कांवर यात्रा की थी, तब किसी ने प्रेरणा नहीं दी थी, बस दिल से बाबा के बुलावे को महसूस किया. वे अब तक लगभग हर साल बाबा के दरबार जाते हैं. उनका अनुभव बताता है कि श्रद्धा कभी बूढ़ी नहीं होती. दरभंगा के आशीष दास ने बताया कि उन्होंने एक भीषण सड़क दुर्घटना में जब बाबा को याद किया, तो वे चमत्कारिक रूप से बच गए. तभी से उन्होंने कसम खाई कि वे हर महीने की पहली तारीख को बाबा का जलाभिषेक करेंगे. वे कहते हैं, बाबा का स्मरण भर मुझे तनाव मुक्त कर देता है.
कांवर यात्रा से स्वास्थ्य लाभ भी
गांधी नगर के निवासी रितेश कुमार पिछले दो दशकों से कांवर यात्रा कर रहे हैं. वे मानते हैं कि यह यात्रा सिर्फ धार्मिक नहीं, स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है. नंगे पांव सौ किलोमीटर चलना शरीर को ऊर्जावान बनाता है और बाबा के दर्शन से आत्मा को शांति मिलती है.
50 वर्षों की लगातार कांवर यात्रा, मिथिला परंपरा का गौरव
58 वर्षीय वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत झा सिर्फ सात वर्ष की उम्र से कांवर यात्रा कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि बाबा भोलेनाथ मिथिला के दूल्हा माने जाते हैं और कांवर यात्रा यहां की संस्कृति से जुड़ी है. मैं इस यात्रा को केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, सांस्कृतिक विरासत मानता हूं.
पहली परीक्षा में बाबा से मांगी सफलता, आज भी हर महीने जाते हैं
पोस्टमास्टर और धर्मशास्त्र के पीएचडी धारक विवेकानंद मिश्रा ने पहली बार कांवर यात्रा तब शुरू की जब उन्होंने मैट्रिक परीक्षा पास करने के लिए बाबा से मन्नत मांगी थी. तब से वे हर महीने बाबा का जलाभिषेक करने जाते हैं, कई बार दण्ड प्रणाम यात्रा भी की है. बाबा के दर्शन के बाद शांति और आनंद की अनुभूति शब्दों में नहीं बताई जा सकती.
कोरोना काल में भी नहीं छोड़ी यात्रा
58 वर्षीय LIC एजेंट पशुपतिनाथ झा कहते हैं कि उन्होंने 1985 में पहली बार कांवर यात्रा की थी. तब से यह यात्रा उनकी जीवनशैली बन गई. वे चार बार सालाना यात्रा करते हैं. कोरोना काल में जब लोग घरों में बंद थे, तब भी उन्होंने बाबा के दर्शन की व्यवस्था किसी न किसी तरह की. बाबा की कृपा से कभी बाधा नहीं आई.
सिर्फ घूमने निकले, लेकिन अब हर अंतिम सोमवारी को बेचैन हो जाते हैं
अन्हरियाबाग मोहल्ले के श्रवण कुमार ने आठवीं तक पढ़ाई की है और ऑटो चालक हैं. पहले सिर्फ दोस्तों के साथ घूमने के इरादे से निकले थे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यह यात्रा उनके लिए गहरी आस्था बन गई है. वे कहते हैं, आज तक मैंने अपने लिए कुछ नहीं मांगा, फिर भी बाबा से एक अलग ही जुड़ाव है जो हर बार बुला लेते हैं.
सांप के काटने से मौत के मुंह से लौटे, बाबा ने दी नई जिंदगी
मुजफ्फरपुर के रहने वाले 39 वर्षीय विश्वजीत कुमार महथा टेक्सटाइल कंपनी में फीटर के पद पर काम करते हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें एक बार सांप ने काट लिया था और वे लगभग मृत हो गए थे. तब परिवार ने बाबा से मन्नत मांगी और चमत्कारिक रूप से वे ठीक हो गए. यही उनके जीवन का मोड़ बना. वे कहते हैं, अब बाबा के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते. जब मैं कांवड़ लेकर बाबा के दर्शन करता हूं तो जैसे शरीर की सारी थकान दूर हो जाती है.
नेपाल से बाबा के दरबार तक बारिश की अर्जी लेकर निकले
नेपाल के निवासी 25 वर्षीय मुकेश कुमार साह पहली बार बाबा धाम जा रहे हैं. उनका कहना है, हमारे यहां इस बार बारिश नहीं हुई है. पूरा क्षेत्र सूखा पड़ा है. हम बाबा से बारिश की अर्जी लेकर जा रहे हैं. हमें पूरा भरोसा है कि बाबा हमारी बात जरूर सुनेंगे. वे दस लोगों की टोली के साथ चल रहे हैं और कांवर यात्रा को आस्था की सबसे बड़ी मिसाल मानते हैं.