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जहरीले सांपों से दोस्ती, इंसानी जान बचाने का जुनून और..., बगहा की 'स्नेक लेडी' जानकी दीदी की पूरी कहानी

बिहार के बगहा जिले के वाल्मीकिनगर क्षेत्र की जानकी देवी समाजसेवा की मिसाल बनी हैं. लोग जिन्हें ‘स्नेक लेडी’ कहते हैं. अनपढ़ होने के बावजूद वह हजारों सांपों का सुरक्षित रेस्क्यू कर चुकी हैं. जानकी दीदी को 50 से ज्यादा बार सांप डंस चुके हैं, फिर भी उनका हौसला नहीं टूटा. हुनर से प्रभावित होकर डिस्कवरी चैनल ने उन्हें नौकरी का ऑफर भी दिया था.

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डिस्कवरी चैनल से मिल चुका है नौकरी का ऑफर.(Photo: Abhishek Pandey/ITG)
डिस्कवरी चैनल से मिल चुका है नौकरी का ऑफर.(Photo: Abhishek Pandey/ITG)

इंडो-नेपाल बॉर्डर से सटे बिहार के बगहा जिले के वाल्मीकिनगर क्षेत्र के बिसही गांव में जानकी देवी का नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है. लोग उन्हें प्यार और सम्मान से ‘स्नेक लेडी’ कहकर बुलाते हैं. पढ़ी-लिखी नहीं होने के बावजूद जानकी दीदी अपने साहस, अनुभव और समाजसेवा के जज्बे के लिए जानी जाती हैं. जहरीले सांपों से बिना डरे लोगों की जान बचाना ही उनके जीवन का मकसद बन चुका है.

ग्रामीणों का कहना है कि जब भी किसी घर या खेत में सांप निकल आता है, सबसे पहले जानकी दीदी को ही बुलाया जाता है. लोग आंख बंद कर उन पर भरोसा करते हैं.

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जानकी दीदी

पलक झपकते काबू में आ जाता है सांप

कोबरा हो, किंग कोबरा या फिर अजगर- जानकी दीदी एक नजर में पहचान लेती हैं कि सांप जहरीला है या नहीं. उनका अनुभव इतना गहरा है कि वह सांप को बिना नुकसान पहुंचाए सुरक्षित पकड़ लेती हैं. अब तक वह हजारों से ज्यादा सांपों का रेस्क्यू कर चुकी हैं. कई बार सांपों को वन विभाग को सौंपा गया, तो कई बार उन्हें सुरक्षित जंगल में छोड़ दिया गया.

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ग्रामीणों का दावा है कि कई बार तो सांप भी जानकी दीदी को देखकर शांत हो जाते हैं, जैसे उन्हें पहचानते हों.

7 साल की उम्र से शुरू हुआ खतरनाक सफर

जानकी दीदी ने महज सात साल की उम्र में सांप पकड़ना शुरू कर दिया था. उनका परिवार भी इस काम से जुड़ा रहा है, इसलिए बचपन से ही उन्हें सांपों के बीच रहना आता था. समय के साथ यह हुनर उनकी पहचान बन गया.

कोरोना काल में बेटे की मौत ने उन्हें गहरा सदमा दिया, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने समाजसेवा का रास्ता नहीं छोड़ा और आज भी लोगों की मदद करती हैं.

50 से ज्यादा बार सांपों ने डंसा, फिर भी नहीं टूटा हौसला

जानकी दीदी का कहना है कि अब तक उन्हें 50 से ज्यादा बार सांप डंस चुका है. इसके बावजूद उन्हें कभी कोई गंभीर असर नहीं हुआ. कुछ खास दिनों में हल्का असर महसूस होता है, लेकिन डर कभी उनके मन में नहीं आया.

इसी वजह से इलाके में उनकी छवि किसी चमत्कारी महिला जैसी बन गई है.

बगहा

डिस्कवरी चैनल तक पहुंची पहचान

करीब 15 साल पहले जानकी दीदी के हुनर से प्रभावित होकर डिस्कवरी चैनल ने उन्हें नौकरी का ऑफर दिया था. हालांकि परिवार और गांव की जिम्मेदारियों के कारण उन्होंने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया. उस समय वन विभाग के पास प्रशिक्षित स्नेक कैचर नहीं थे, इसलिए अधिकारी भी अक्सर जानकी दीदी को ही बुलाते थे.

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वन विभाग की रोक, फिर भी जागरूकता जारी

हाल के वर्षों में वन विभाग ने उन्हें सांप पकड़ने से रोक दिया है, जिसके बाद वह आधिकारिक तौर पर रेस्क्यू नहीं कर पा रही हैं. इसके बावजूद जानकी दीदी गांव-गांव जाकर लोगों को सांपों, जंगल और पर्यावरण के महत्व के बारे में जागरूक करती हैं. वह खेतों में मजदूरी कर अपना जीवन यापन करती हैं.

सांप ही नहीं, सुरक्षित डिलीवरी में भी माहिर

जानकी दीदी सिर्फ स्नेक कैचर ही नहीं हैं, बल्कि सुरक्षित नॉर्मल डिलीवरी कराने में भी माहिर हैं. आसपास के गांवों से महिलाएं प्रसव के लिए उनके पास आती हैं. जटिल मामलों में भी वह सहजता से सुरक्षित डिलीवरी करा देती हैं.

पैसे से दूर, सेवा के करीब

सबसे खास बात यह है कि जानकी दीदी अपने किसी भी काम के बदले पैसे नहीं लेतीं. उनका मानना है कि यह हुनर उन्हें समाजसेवा के लिए मिला है. खतरे से आंख मिलाकर लोगों की जान बचाना ही उनकी असली पहचान है. बगहा से लेकर वाल्मीकिनगर तक ‘स्नेक लेडी’ जानकी दीदी का नाम आज सम्मान और भरोसे की मिसाल बन चुका है.

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