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कार में अकेले या सिर्फ लैपटॉप के साथ सफर कर रहे अधिकतर भारतीय! सर्वे में हुए दिलचस्प खुलासे

यह सर्वेक्षण अहमदाबाद, बेंगलुरु, पुणे, मुंबई, दिल्ली एनसीआर, चेन्नई, हैदराबाद और कोलकाता सहित 8 भारतीय शहरों में किया गया था, जिनमें से अधिकांश शहर अपने डेली मोबिलिटी रूटीन में आने वाली कई चुनौतियों के लिए जाने जाते हैं.

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सांकेतिक तस्वीर: अर्बन मोबिलिटी हैपिनेस सर्वे रिपोर्ट में कई खुलासे हुए हैं.
सांकेतिक तस्वीर: अर्बन मोबिलिटी हैपिनेस सर्वे रिपोर्ट में कई खुलासे हुए हैं.

कार खरीदारी... ड्राइविंग या फिर रख-रखाव ये सब ऐसे पहलू हैं जिनको लेकर हर किसी का व्यवहार या पैटर्न लगातार बदलता रहता है. बीते कुछ समय में शहरी क्षेत्र में इन्हीं पहलुओं पर लोगों का नजरिया और डेली रूटीन काफी हद तक बदला है. अर्बन मोबिलिटी हैपिनेस (Urban Mobility Happiness) के नाम से एक सर्वे रिपोर्ट आई है, जिसमें कार खरीदारी से लेकर उसके इस्तेमाल तक के तरीके पर दिलचस्प खुलासे हुए हैं. इस सर्वे को नीलसन (Nielsen) द्वारा कराया गया है. 

एमजी मोटर इंडिया ने अर्बन मोबिलिटी हैप्पीनेस सर्वे के निष्कर्षों पर अपनी रिपोर्ट जारी की है. नीलसन द्वारा किए गए इस सर्वेक्षण में प्रमुख भारतीय शहरों में रहने वाले लोगों की मोबिलिटी पैटर्न और यात्रा के दौरान उनके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी एकत्र की गई है. सही मायनों में ये सर्वे अर्बन मोबिलिटी की स्थिति का आइना है जो कि इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने वाले से लेकर कार मालिक इत्यादि सभी के लिए उपयोगी साबित हो सकता है. 

कैसे हुआ है सर्वे: 

बता दें कि, यह सर्वेक्षण अहमदाबाद, बेंगलुरु, पुणे, मुंबई, दिल्ली एनसीआर, चेन्नई, हैदराबाद और कोलकाता सहित 8 भारतीय शहरों में किया गया था, जिनमें से अधिकांश शहर अपने डेली मोबिलिटी रूटीन में आने वाली कई चुनौतियों के लिए जाने जाते हैं. सर्वेक्षण में उत्तरदाताओं में 18 से 37 वर्ष की आयु के पुरुष और महिलाएं शामिल की गई थीं, ये वो लोग हैं जिनके घर में कम से कम एक कार है. तो आइये जानते हैं क्या कहती है ये सर्वे रिपोर्ट- 

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74% ने उठाए पार्किंग इंफ्रास्ट्रक्चर पर सवाल: 

वाहन पार्किंग भारतीय शहरों में कार-मालिकों के सामने एक आम समस्या है. इस सर्वेक्षण में केवल 26% लोगों ने पार्किंग की व्यवस्थाओं को बेहतर माना है. जबकि 74% लोगों ने अपने शहरों में पार्किंग स्थानों की उपलब्धता और प्रबंधन को लेकर सवाल उठाए हैं. इस सर्वे के अनुसार लगभग 64% व्यक्तियों ने बताया कि या तो उन्होंने पार्किंग की अनुपलब्धता के कारण अपनी कारों का उपयोग नहीं करने का निर्णय लिया या उन्हें पार्किंग की उपलब्धता के अनुसार अपनी योजनाओं को बदलना पड़ा. 

71% कार मालिक अकेले करते हैं यात्रा: 

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि, भारतीय शहरों में अधिकांश कार-मालिकों के बीच शेयरिंग मोबिलिटी का ट्रेंड नहीं है. इस सर्वेक्षण में लगभग 71% उत्तरदाताओं ने बताया कि, वो या तो अकेले कार ड्राइव करते हैं या अधिक से अधिक एक अन्य यात्री को शामिल करते हैं. वहीं केवल 1% लोगों ने बताया कि, वो एक से अधिक लोगों के साथ रोजाना ड्राइव करते हैं. यानी कि ऐसे लोगों की संख्या काफी ज्यादा है जो चारपहिया वाहन में अकेले यात्रा करते हैं. 

सांकेतिक तस्वीर: ज्यादातर लोग रोजाना केवल लैपटॉप बैग लेकर यात्रा कर रहे हैं.
सांकेतिक तस्वीर: ज्यादातर लोग रोजाना केवल लैपटॉप बैग लेकर यात्रा कर रहे हैं.

81% लोगों की कार में केवल लैपटॉप बैग: 

शहरी क्षेत्र में रोजाना ऑफिस जाने वालों की संख्या सबसे ज्यादा रहती है और जैसा कि उपर रिपोर्ट में बताया गया है कि, ज्यादातर लोग अकेले यात्रा करते हैं. ऐसे में लोगों के पास रोजाना ज्यादा लगेज (सामान) नहीं होता है. इस सर्वे रिपोर्ट में बताया गया है कि, 81% लोग अपने रोजाना ट्रैवेलिंग के दौरान कार में केवल एक लैपटॉप बैग रखते हैं. 

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पेट्रोल या डीजल कौन सी कार है पसंदीदा: 

पेट्रोल की कीमतें भले ही आसमान छू रही हों, लेकिन पेट्रोल कारों की डिमांड अभी भी सबसे ज्यादा है. इस सर्वे में शामिल प्रमुख भारतीय शहरों के ज्यादातर लोगों ने पेट्रोल कारों का पक्ष लिया है. सर्वेक्षण के अनुसार, 50% उत्तरदाताओं के पास पेट्रोल वाहन हैं, जबकि 35% के पास डीजल वाहन हैं. बहरहाल, कार मालिकों के बीच वैकल्पिक पावरट्रेन टेक्नोलॉजी की ओर बढ़ने का रुझान बढ़ रहा है.

डेली ट्रैवेलिंग में खर्च होता है ज्यादा समय: 

इस सर्वेक्षण में लगभग 71% उत्तरदाताओं ने बताया कि वे काम या कॉलेज जाने जैसे अपने दैनिक आवागमन में 30 मिनट से एक घंटे से अधिक समय व्यतीत करते हैं। वहीं कम से कम 61% लोगों का कहना है कि, पांच साल पहले की तुलना में अब यात्रा में लगने वाला समय काफी बढ़ गया है. इससे ये साफ है कि सड़कों पर वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ी है जिसका नतीजा है कि भारी ट्रैफिक जाम के चलते कम दूरी के लिए भी ज्यादा समय लग रहा है. 

फ्यूल पर हर महीने 6,000 रुपये का खर्च: 

ईंधन की बढ़ी हुई कीमतों का देश के भीतर एक सार्वभौमिक प्रभाव पड़ा है, शहरी कार-मालिक कोई अपवाद नहीं हैं. इस सर्वे में लगभग 52% लोगों ने बताया कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी का उन पर अत्यधिक गहरा प्रभाव पड़ा है. साथ ही, लगभग 50% लोगों ने प्रति माह ईंधन पर 6,000 रुपये से अधिक खर्च करने की जानकारी दी है. 

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Urban Mobility Happiness Survey Report
Urban Mobility Happiness Survey Report

वायु और ध्वनि प्रदूषण: 

अधिकांश शहरवासियों के लिए वायु और ध्वनि प्रदूषण एक प्रमुख चिंता का विषय है, जो कि इस सर्वे रिपोर्ट में साफ तौर पर देखने को मिल रहा है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि, 80% से अधिक लोगों का मानना है कि उनके शहर की हवा प्रदूषित है और उनके क्षेत्र में ध्वनि प्रदूषण जैसी समस्या से भी दो-चार होना पड़ रहा है. इसके अलावा, 69% लोगों का कहना है कि नया वाहन खरीदते समय पर्यावरण को भी ध्यान में रखा जाता है. 

छोटी कारों का क्रेज: 

कॉम्पैक्ट स्मार्ट कारों को अर्बन मोबिलिटी की चुनौतियों का एक संभावित समाधान माना जा रहा है. इस सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग 90% लोगों ने महसूस किया कि एक कॉम्पैक्ट स्मार्ट कार यानी कि छोटी कार शहर में उनके यात्रा के समय को कम कर सकती है, जिससे वे हर दिन अपने आवागमन के दौरान आने वाली कई चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं. ऐसा कई लोग मानते हैं कि छोटी, कॉम्पैक्ट कारें न केवल ड्राइविंग में आसान होती हैं बल्कि भारी ट्रैफिक में इन्हें आसानी से निकाला भी जा सकता है. 

80% लोगों को ड्राइविंग से एंजाइटी: 

सर्वेक्षण में पाया गया कि 80% से अधिक लोगों ने शहर में अपनी दैनिक यात्रा के दौरान स्ट्रेस या एंजाइटी महसूस करते हैं. बड़े शहरों में वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जिसके चलते ट्रैफिक भी बढ़ रहा है. ऐसे में डेली ड्राइविंग के दौरान लोगों को एंजायटी और स्ट्रेस महसूस होना आम बात है. 

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