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शिवालयों से शेयर बाजार तक... वाराणसी के टीजर में दिखे बैल के प्रतीक हर संस्कृति में कितने अहम हैं

राजामौली की आगामी फिल्म 'वाराणसी' में महेश बाबू का पौराणिक अवतार और नंदी बैल की भूमिका प्रमुख रूप से दिखाई दे रही है. नंदी बैल की पूजा, मंदिरों में उसकी स्थिति और विभिन्न पुराणों की कथाएं इस फिल्म की पृष्ठभूमि को गहराई प्रदान करती हैं. इसके साथ ही, बैल का सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व भी उजागर किया गया है.

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फिल्म वाराणसी का टीजर रिलीज हो चुका है, जिसमें एक्टर महेश बाबू बैल पर सवार नजर आ रहे हैं (Photo: X/@ssrajamouli)
फिल्म वाराणसी का टीजर रिलीज हो चुका है, जिसमें एक्टर महेश बाबू बैल पर सवार नजर आ रहे हैं (Photo: X/@ssrajamouli)

एसएस राजामौली के आगामी प्रोजेक्ट 'वाराणसी' की चर्चा जोरों पर है. इस फिल्म में महेश बाबू मुख्य भूमिका में नजर आने वाले हैं. फिल्म प्राचीन वाराणसी के अध्यात्मिक सिरे तक पहुंचती नजर आ रही है, क्योंकि इसके अनाउंसमेंट टीजर में कई पौराणिक किरदारों की झलक दिख रही है. देवी दुर्गा, उनका उग्र रूप छिन्नमस्ता, हनुमानजी, श्रीराम का रथ और आखिरी में नजर आते हैं, त्रिशूल थामे बैल पर सवार महेश बाबू. यह भी इत्तेफाक है कि उनका खुद का नाम महेश है और त्रिशूल लेकर बैल पर बैठे दौड़ लगाते वह खुद पौराणिक शिव के किसी रूप से मेल खा रहे हैं, जिनका खुद का एक नाम भी महेश है.

वाराणसी के टीजर से चर्चा में बैल

इस टीजर की वजह से अब तक ऐसा लग रहा है कि फिल्म में बैल का होना भी एक मुख्य किरदार की तरह है और महेश बाबू के इस लुक की काफी चर्चा है. इन्हीं चर्चाओं की वजह से बैल का महत्व भी चर्चाओं के केंद्र में आ गया है.

बैल भारतीय परंपरा और प्रतीकवाद में मुख्य स्थान रखता है. इसकी सबसे बड़ी पौराणिक मौजूदगी शिव के साथ ही देखी जाती है, जहां शिव को बैल पर सवार दिखाया जाता है. उनके वाहन के तौर पर दिखने वाले बैल का नाम नंदी है. यही नंदी शिव के सभी गणों के प्रमुख हैं और गणाध्यक्ष कहलाते हैं.

शिवालयों में बैल और प्रतीकवाद

शिवालयों में बैल यानी नंदी शिवलिंग की ओर मुख करके बैठे हुए दिखते हैं. उसमें सेवा भाव है, विनम्रता है और वह बहुत दयालु भी हैं, लेकिन इससे नंदी को कमजोर नहीं समझना चाहिए. वह शक्ति, सामर्थ्य और स्थायित्व का प्रतीक है.

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यानी सनातन में बैल के तौर पर नंदी की मौजूदगी संदेश देती है कि शक्ति और सामर्थ्य के बाद भी विनम्रता ही सबसे बड़ा धन है और सामान्य मनुष्य को नंदी से यह सीखना चाहिए.

Shiva and Nandi

नंदी की उत्पत्ति से जुड़ी कथाएं

नंदी की उत्पत्ति से जुड़ी कथाएं विभिन्न पुराणों में मिलती हैं और कई रोचक प्रसंगों के रूप में सामने आती हैं. शिव पुराण के एक प्रसिद्ध वर्णन के अनुसार, शिलाद नाम के एक ऋषि ने असाधारण गुणों वाले पुत्र की कामना करते हुए हज़ारों वर्षों तक कठोर तप किया. उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दिव्य वरदान दिया और इसी वरदान के फल से एक दिव्य बालक प्रकट हुआ. यही बालक नंदी था, जो आगे चलकर शिव के शाश्वत साथी बने.

...जब नंदी को मिला शाप

एक अन्य परंपरा के अनुसार, नंदी मूल रूप से नंदिकेश्वर नामक एक दिव्य प्राणी थे, जिन्हें शापवश वृषभ (बैल) रूप लेना पड़ा. बाद में शिव की तपस्या करने पर उनका शाप परिवर्तित कर दिया गया, वे वृषभ रूप में ही रहेंगे, लेकिन शिव के परम भक्त और उनके वाहन के रूप में पूजित होंगे. इस कथा का दूसरा वर्जन यह है कि किशोर नंदी एक बार किसी ऋषि की साधना में विघ्न डालने के लिए बैल की तरह रंभाते हुए आवाज निकाल रहे थे. इस पर क्रोधित हुए ऋषि ने उन्हें बैल बन जाने का शाप दिया था.

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एक तीसरी कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है. देवताओं और असुरों द्वारा अमृत प्राप्ति के लिए जब क्षीरसागर का मंथन हुआ, तो अनेक दिव्य वस्तुओं के साथ एक अद्भुत श्वेत वृषभ भी प्रकट हुआ. यह वृषभ भगवान शिव को समर्पित किया गया और नंदी के रूप में विख्यात हुआ. हालांकि समुद्र मंथन से कामधेनु गाय प्रकट हुई थी, जो अपने साथ एक दिव्य बछड़े के साथ आई थी. यही बछड़ा नंदी था.

इन सभी कथाओं का सार एक ही है, नंदी का एक सामान्य अस्तित्व रहा है और वहां से वह दिव्य पद तक पहुंचा है. भक्ति और शिव-कृपा के माध्यम से उनकी यह आध्यात्मिक यात्रा यह संदेश देती है कि सत्यनिष्ठ भक्ति से कोई भी जीव अपनी सीमाओं को पार कर सकता है.

बैल का हिंदू परंपरा में गहरा प्रतीकात्मक अर्थ

नंदी का स्वरूप हिंदू परंपरा में गहरे प्रतीकात्मक अर्थ रखता है. वृषभ के रूप में वे शक्ति, उर्वरता और धर्म के प्रतीक हैं. प्राचीन भारतीय संस्कृति में वृषभ को नियंत्रित शक्ति और वीरता का प्रतीक माना गया है, बलवान, किन्तु अनुशासित. नंदी का श्वेत रंग मन की पवित्रता और सत्त्वगुण का प्रतीक है. जिस तरह वृषभ मनुष्य का सेवक और सहायक होता है, उसी तरह नंदी की शिवभक्ति देवता और भक्त के आदर्श संबंध को दर्शाती है.

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मंदिरों में नंदी की बैठी हुई मुद्रा विशेष महत्व रखती है. वे सदैव शिवलिंग की ओर मुख करके बैठे होते हैं. उनकी यह अडिग दृष्टि भक्त को एकाग्रता और एकनिष्ठ भक्ति का संदेश देती है. नंदी आत्मा हैं और शिव परमात्मा. आमने-सामने की यह स्थिति बताती है कि आत्मा को परमात्मा से मिलन की चाह होनी चाहिए.

खेती में पशुधन माना जाता है नंदी

ग्रामीण भारत में नंदी को पशुधन और खेतों के रक्षक के रूप में भी आदर मिलता है. किसान स्वस्थ पशुओं और भरपूर फसल की कामना करते हुए नंदी का आशीर्वाद लेते हैं. शिव उपासना में नंदी का स्थान इतना महत्वपूर्ण है कि उनके बिना कोई भी शिव मंदिर पूर्ण नहीं माना जाता. अधिकांश देवताओं के वाहन छोटे रूप में दिखाए जाते हैं, लेकिन नंदी को अक्सर एक स्वतंत्र मंडप नंदी मंडप भी प्राप्त होता है.

दक्षिण भारत में नंदी की कई भव्य मूर्तियां विश्वभर में प्रसिद्ध हैं. मैसूर के चामुंडी हिल्स पर स्थित विशाल नंदी 4.9 मीटर ऊंचा और 7.6 मीटर लंबा है. तंजावुर के बृहदेश्वर मंदिर में स्थापित एकाश्म (एक ही पत्थर से बनी) नंदी की प्रतिमा 3.7 मीटर से अधिक ऊंची है.

नंदी से जुड़ी एक अनोखी परंपरा उनके कान में मनोकामना फुसफुसाने की है. श्रद्धालु मानते हैं कि नंदी उनकी इच्छाएं सीधे शिव तक पहुंचाते हैं. इस प्रकार वे केवल प्रतीक नहीं, बल्कि भक्त और शिव के बीच एक माध्यम बन जाते हैं. कई मंदिरों में नंदी की स्वतंत्र पूजा और विशेष श्रृंगार भी किया जाता है. त्यौहारों पर उन्हें चंदन, फूलमालाओं और वस्त्रों से सजाया जाता है.

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Bull and Nandi

नंदी बैल से जुड़ी कथाएं

नंदी की भक्ति और उनके दिव्य स्थान को उजागर करने वाली कई कथाएं मिलती हैं. एक प्रसिद्ध कथा शिव–पार्वती विवाह की है. जब शिव बारात निकलने लगी तब देवताओं को लगा कि शिव के लिए उपयुक्त वाहन मौजूद नहीं है. तभी नंदी ने खुद को एक अद्भुत श्वेत वृषभ में परिवर्तित किया, जो रत्नों से सुसज्जित था.

जलंधर नामक असुर से जुड़ी एक कथा में भी नंदी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. जब देवता जलंधर को परास्त नहीं कर पाए, तब नंदी ने उसकी कमजोरी बताकर विजय का मार्ग दिखाया. यह कथा दिखाती है कि बुद्धि और ज्ञान कई बार बल से अधिक प्रभावी होते हैं. नंदी ने ही रावण को पहले ज्ञान दिया और उसके अहंकार का बोध कराया था, लेकिन जब रावण ने उन पर आक्रमण किया तब नंदी ने ही रावण को शाप दिया कि वह बंदरों-भालुओं के समूह के आक्रमण के कारण ही मारा जाएगा.

महाशिवरात्रि के अवसर पर नंदी की विशेष पूजा होती है. भक्त पूरी रात जागरण करते हैं, शिवलिंग पर अभिषेक करते हैं और नंदी को भी चंदन, पुष्प और वस्त्र अर्पित किए जाते हैं. कहते हैं कि एक बार नंदी ने महाशिवरात्रि पर पूर्ण उपवास किया था. उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें अपना शाश्वत साथी बनने का वर दिया.

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केदारनाथ धाम और शिव का बैल अवतार

12 ज्योतिर्लिंगों और चार धामों में से एक केदारनाथ थाम में शिव खुद बैल के रूप में विराजित हैं. पांडव जब महाभारत युद्ध के बाद शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए उनकी खोज कर रहे थे, तब शिव ने खुद को बैल के रूप में बदल लिया गायों के झुंड में जा घुसे. फिर भी भीम ने उन्हें पहचान लिया. भीम शिव के पांव पकड़ने के लिए दौड़े, लेकिन बैल बने शिव ने खुद को धरती के भीतर धंसाना शुरू कर दिया. जब तक भीम उन्हें पकड़ पाते तब तक सिर्फ बैल की कूबड़ ही ऊपर रह गई थी. तबसे शिव केदारनाथ में बैल के कूबड़ लिंग के तौर पर ही दर्शन देते हैं.

12 राशियों में भी है स्थान

बैल का स्थान 12 राशियों में भी प्रमुख है, जहां वृषभ नाम की राशि बैल को ही समर्पित है और आकाश में नक्षत्रों का एक समूह बैल के आकार का दिखाई देता है.

बैल सिर्फ हिंदू प्रतीकों में ही नही, बल्कि विश्व की कई संस्कृतियों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. बैल की लोकप्रियता की जड़ें चीनी राशि-चक्र की प्राचीन कथा में मिलती हैं. एक बार जब जेड सम्राट (Jade Emperor) ने राशि चक्र के बारह जानवर चुनने के लिए एक जानवरों की दौड़ करवाई थी, तो बैल ने थके हुए चूहे को अपनी पीठ पर चढ़ने दिया.

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बैल मेहनती और ईमानदार था, इसलिए वह लगातार दौड़ता रहा और सभी जानवरों से पहले फिनिश लाइन के बहुत करीब पहुंच गया, लेकिन चालाक चूहे ने आखिरी पल में बैल की पीठ से छलांग लगा दी और सबसे पहले लाइन पार कर ली.

इस तरह भले ही मेहनती बैल दूसरे स्थान पर रहा, लेकिन प्राचीन किसानों के दिल में वह हमेशा पहले स्थान पर रहा. कारण था उसका खेती में अमूल्य योगदान. बैल किसानों की सबसे कीमती संपत्ति थे. चीन में तो बैल को परिवार का सदस्य ही मानते थे.

चीन, कोरिया, रूस और तुर्की में बैल

चीन में कैलेंडर ईयर के अलग-अलग नाम हैं, जिनमें एक नाम 'बैल का वर्ष' (Year of the Ox) भी है. इसका महत्व बौद्ध परंपरा में भी है. 2021 भी चीनी संस्कृति में 'बैल का वर्ष' ही था. अंग्रेजी में बैल को कहने के लिए कई शब्द हैं.  सबसे पहला शब्द “ox” बहुत पुराना है. यह प्रोटो-इंडो-यूरोपीय भाषा के 'uksḗn' से आया है. यह शब्द तोखारी भाषा में से आया है जो चीन में बोली जाती थी, और आज तुर्की भाषाओं में 'öküz' (ओकूज़) के रूप में जीवित है.
  
कोरियाई संस्कृति भी चीनी राशि चक्र मानती है. यहां बैल मेहनत, ईमानदारी और धैर्य का प्रतीक है. बैल का साल शांतिपूर्ण और सुखी माना जाता है. किसान के लिए बैल “चलता हुआ खजाना” था – ज़रूरत पड़ने पर बेचकर पैसे मिल जाते थे. रूस में भी पुराने समय में बैल को बलिदान का पवित्र पशु माना जाता था. उसकी हड्डियां सुख-समृद्धि लाती थीं, ऐसा माना जाता था. वहीं तुर्की में भी बैल मेहनती, परिश्रमी और ताकतवर का प्रतीक है. 

Sensex and share market bull

अर्थव्यवस्था में भी बैल का प्रतीक
अर्थव्यवस्था में भी बैल महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. निवेश की शब्दावली में बुल एक खास टर्म है. शेयर बाज़ार की दुनिया में “बुल” और “बेयर” दो ऐसे शब्द हैं, जो किसी भी निवेशक के लिए बेहद अहम माने जाते हैं. बुल मार्केट का मतलब है कीमतों का लगातार ऊपर जाना, जबकि बेयर मार्केट उस स्थिति को दर्शाता है जब बाज़ार में गिरावट का दौर चल रहा हो. विशेषज्ञों के मुताबिक इन शब्दों के पीछे सबसे मान्य व्याख्या जानवरों के आक्रमण के तरीके से जुड़ी है. 

बैल हमला करते समय अपने सींग ऊपर की ओर मारता है, जिसे कीमतों के ऊपर जाने से जोड़ा गया. वहीं, भालू पंजे नीचे की ओर मारता है, जो बाज़ार में गिरावट का प्रतीक बन गया. 
आज की भाषा में, बाज़ार में 20% से अधिक बढ़त को बुल मार्केट और 20% से अधिक गिरावट को बेयर मार्केट माना जाता है. ये शब्द किसी एक शेयर, एक सेक्टर या पूरे बाज़ार पर लागू हो सकते हैं.

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