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रथ, रेल और रेसिंग कार...गुरुग्राम के इस म्यूजियम में देखिए आदिम से आधुनिक काल तक पहिए की विकास यात्रा

गुरुग्राम के तौरू कस्बे में हेरिटेज ट्रांसपोर्ट म्यूजियम ऐसी ही जादुई दुनिया है, जहां 1900 के दशक की विंटेज कारें तो हैं हीं, बल्कि ट्रेनों का पूरा इतिहास, बाइक्स की पीढ़ियां, नाव और नदी-समुद्री परिवहन की अलग-अलग वंशबेल और ऑटो, ट्रक, बसों का पुरातन से नूतन तक का असीमित संसार शामिल है. असल में ये पहिये की विकास गाथा है जो संस्कृति के विकास में भी सहायक रहा है.

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पहिये की विकास यात्रा
पहिये की विकास यात्रा

कुछ लोगों ने मिलकर एक बड़ा पेड़ काटा, मुश्किल यह थी कि पेड़ का तना भारी था और उसे वहां से ले जाना मुश्किल था. कई लोग मिलकर भी उसे उठा नहीं सके. खींचने या धक्का देने पर भी वह मुश्किल से थोड़ी दूरी ही खिसक पाया. तभी उन लोगों में से एक व्यक्ति का दिमाग चला, उसने गौर किया कि जब इस बेलनाकार बड़े टुकड़े को धक्का दिया गया था, तो ये घूमते हुए कुछ दूरी तक आगे बढ़ा था.

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उसने सुझाव दिया कि तने को उठाने की बजाय लुढ़काया जाए, सबने मिलकर ऐसा किया आश्चर्य... लकड़ी का जो टुकड़ा अपनी जगह से हिल भी नहीं रहा था, अब वह लुढ़कते हुए बेहद आसानी से आगे बढ़ चुका था. कितना आगे? इतना कि आज इस घटना को घटित हुए करीब ईसा से 3500-4000 वर्ष बीत गए हैं, लेकिन ये छोटी घटना भविष्य में जाकर एक बड़े अविष्कार की वजह बन गई.

यह सिर्फ पेड़ के एक बड़े तने की लुढ़ककर एक जगह से दूसरी जगह पहुंचने की कहानी नहीं है, बल्कि ये पहिये की खोज यात्रा थी, उसके निर्माण की यात्रा थी, जिसकी धुरी पर चढ़कर संस्कृतियों ने सभ्यता का जामा पहना और आज पहिया सिर्फ जमीन पर ही सफर नहीं तय कर रहा है, बल्कि अब ये दो ग्रहों के बीच की दूरी तय करने निकल पड़ा है.

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ट्रांसपोर्ट म्यूजियम

चिड़िया गाड़ीः 4000 साल पुरानी सभ्यता में पहिये की निशानी
गुरुग्राम के हेरिटेज ट्रांसपोर्ट म्यूजियम में दाखिल होते ही, जैसे ही आपकी नजर पहियों की पूरी सीरिज पर पड़ेगी तो आदिमानव ने पहिया कैसे खोजा? इसकी पूरी थ्योरी आंखों के सामने घूम जाएगी. बेहद बारीक से बारीक डीटेल, हर खास जानकारी और युगों से लेकर शताब्दियों के सफर में पहिये की इस अग्रणी भूमिका को समझाने में यह म्यूजियम इतना प्रभावशाली है कि कांच के शोकेस में रखी 'चिड़िया गाड़ी' आपको अपनी ओर आकर्षित करेगी, और फिर जब इसकी डीटेलिंग को पढ़ेंगे तो पाएंगे कि यह नन्हीं सी 'चिड़िया गाड़ी' (Bird Cart) असल में सिंधु घाटी सभ्यता से मिली वो निशानी है, जो बताती है कि इस दौर में पहियों का इस्तेमाल खूब चलन में था और तब के खिलौनों में इसकी झलक देखी जा सकती है.  

The Bird Cart
The Bird Cart : सिंधुघाटी सभ्यता में चिड़िया गाड़ी, बच्चों का खिलौना

1900 के दशक की विंटेज कारें
गुरुग्राम से महज एक घंटे की ड्राइव पर मौजूद हेरिटेज ट्रांसपोर्ट म्यूजियम ऐसी ही जगह है, जहां नए ही नहीं पुराने से पुराने जमाने के और इतने पुराने जो कि आपको प्राचीनता में ले जाते हैं, परिवहन के साधनों का चमचमाता खजाना बिखरा पड़ा है. गुरुग्राम के तौरू कस्बे में हेरिटेज ट्रांसपोर्ट म्यूजियम ऐसी ही जादुई दुनिया है, जहां 1900 के दशक की विंटेज कारें तो हैं हीं, बल्कि ट्रेनों का पूरा इतिहास, बाइक्स की पीढ़ियां, नाव और नदी-समुद्री परिवहन की अलग-अलग वंशबेल और ऑटो, ट्रक, बसों का पुरातन से नूतन तक का असीमित संसार शामिल है.

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रथ, रेल और रेसिंग कारों की दुनिया
भारत ही क्या, दुनिया के किसी भी देश के राजसी ठाठ-बाट की बात आती है तो इस शान-ओ-शौकत के किस्सों का बड़ा हिस्सा पहियों पर आधारित है, जिसमें शामिल हैं, रथ, बग्घियां और इनके अनगिनत अलग-अलग स्वरूप और नाम.

रथ, इक्का, बग्घी
राजसी इक्का, ऊंट गाड़ी, बग्घी... पहिये की शान-ओ-शौकत वाली सवारी

पहियों की पूरी वंशयात्रा भी लुभावनी
2013 में स्थापित, यह भारत का पहला ऐसा और बड़ा परिवहन म्यूजियम है, जिसमें 3,500 से अधिक परिवहन के साधन और उनका अमर इतिहास दिखाई देता है. जैसे ही म्यूजियम में घूमना शुरू करते हैं तो आपके सामने नजर आएंगे विघ्नहर्ता गणेश. गणपति की यह प्रतिमा, कारों के अलग-अलग पुर्जों से डिजाइन की गई है, जो भक्ति के साथ टेक्नीक का खूबसूरत संगम है. आगे बढ़िए तो पहियों की विकास यात्रा, जहां उस पहिए की रेप्लिका भी मौजूद है, जिसे आदिवासी मानव ने सबसे पहले बनाया था और फिर क्रम से वो सभी पहिये दिखाई देते हैं, जिनसे होकर आदमी का और खुद पहिये का विकास भी आगे बढ़ते हुए आधुनिक दौर तक पहुंचा है.  

महाराजा एक्सप्रेस का लग्जरी कोच

अगले ही क्रम में दिखाई देती है, भारतीय रेलवे की शान, महाराजा एक्सप्रेस का सबसे पहला कोच. इस कोच को यहां करीने से संवारा गया है और इसके भीतर झांकना आपको इसकी लग्जरी का एहसास तो कराएगा ही साथ ही रेट्रो के दौर की ओर भी ले जाएगा. फिर इसके बाद अगला ही सिलसिला शुरू हो जाएगा, पालिकियों, बग्घियों और रथों का जो फिर इक्के, तांगे, बैलगाड़ी, घोड़ा गाड़ी और ऊंट गाड़ी से होते हुए हाथी के हौदे तक पहुंचेगा. हाथी के हौदे से याद आया कि राजे-महाराजे सिर्फ हौदे ही नहीं सजवाते थे, बल्कि उनके हाथी भी खूबसूरत कढ़ाईदार कपड़ों से ढंके होते थे. इस कालीन और पर्देनुमा कपड़े को 'हाथी पूल' कहते हैं, जिसमें कई बार सोने के तागे से बुनी हुई डिजाइन और कसीदकारी देखी जा सकती है. इसके भी खूबसूरत उदाहरण म्यूजियम में दिख जाएंगे.

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पालकियों के सजावटी हत्थे
पालकियों के सजावटी हत्थे, ये हत्थे राजचिह्न के प्रतीक भी होते थे. इनमें सिंहमुख, गजमुख, मकरमुख, अश्वमुख, मत्स्य मुख जैसी आकृतियां शामिल हैं

नावों से लेकर हवाई जहाजों का भी संसार

कुल मिलाकर इस म्यूजियम में रथ से रेसर कार तक, और पालकियों से लेकर हवाई जहाज तक भारत के परिवहन के इतिहास को जीवंत रूप में देखा जा सकता है. इस म्यूजियम के कर्ता-धर्ता और संरक्षक तरुण ठकराल बताते हैं कि "जब हमने 2013 में म्यूजियम शुरू किया, तो निजी म्यूजियम का कॉन्सेप्ट नया था. लोग सोचते थे कि मैं पागल हो गया हूं, लेकिन मेरा मानना था कि यह संग्रह युवाओं को प्रेरित करेगा." 

नाव

हर कार के साथ उसकी खासियत की कहानी भी दर्ज
वह बताते हैं कि इसे यहां पर करीने से सजाने और परिवहन के हर साधन को यहां जगह देने में बहुत रिसर्च की गई है. यहां ऐसा नहीं है कि किसी भी साधन या गाड़ी-वाहन को सिर्फ उनके एंटीक होने के कारण शामिल कर लिया गया है, बल्कि हर उस वाहन को शामिल करते हुए उनकी एतिहासिकता का पूरा ब्योरा भी दर्ज किया गया है, ताकि लोग जब इन कारों, बाइक्स या ट्रक-ट्रेन, बस से नॉस्टेल्जिया फील करें तो इसके साथ ही वह उससे जुड़ी कहानियां भी जानें.

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अमिताभ-धर्मेंद्र की यादगार लाल कार

उनकी इस बात की बानगी इस तरह देखी जा सकती है, कि कार वाले सेक्शन में उन्होंने हर कार के साथ उनकी ऐतिहासिक घटनाओं को भी शामिल कर रखा है. जैसे कि वो कार, जिसमें प्रिसेंस डायना एक्सीडेंट के वक्त सवार थीं. या वो लाल छोटी कार, जिसमें अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र बैठे हैं और गाना गा रहे हैं, फिल्म राम-बलराम से ये गीत आप कहां भूले होंगे, 'एक रास्ता, दो राही, एक चोर एक सिपाही' इस गाने में जो कार इस्तेमाल हुई है, उसे आप यहां देख सकते हैं. तीन पहिए वाली ये छोटी सी कार अलग ही नजर आती है.

ट्रांसपोर्ट म्यूजियम

दिल तो पागल है, शाहरुख-माधुरी की कार

वहीं 'दिल तो पागल है' फिल्म की लाल कार भी यहां मौजूद है, जिसमें शाहरुख खान और माधुरी दीक्षित सफर करते नजर आते हैं. असल में यह म्यूजियम सिर्फ वाहनों का संग्रह नहीं, बल्कि नॉस्टैल्जिया का खजाना है. यहां हर कोई, बच्चा, युवा या बुजुर्ग सभी की आंखों को पसंद आने वाली और लुभाने वाली हर वो चीज मौजूद है, जिससे वे अपनी जिंदगी में बेहद जुड़ाव महसूस करते रहे हैं.

पहली साइकिल, पहली बाइक और पहली कार का नॉस्टेल्जिया

अपनी पहली कार, पुराने जमाने के वाहनों के विज्ञापन, बचपन की कोई पसंद की बाइक या फिर कोई पहली सवारी... यहां घूमते हुए ऐसी यादों का आना और फिर पलकों का जरा सा भीग जाना स्वाभाविक है. ठकराल कहते हैं, "परिवहन हर किसी को जोड़ता है. यही वजह है कि जब से अब तक यह म्यूजियम खुला है, लोगों के यहां आने की आंकड़ा, लाखों में भी दहाई से पार जा चुका है.

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ट्रांसपोर्ट म्यूजियम

बीतते दौर की निशानी, भविष्य की संभावनाओं का ठिकाना

यहां मौजूद परिवहन का हर एक साधन अपने आप में एक कहानी है, यह बीतते जा रहे दौर की निशानी है और भविष्य इस दिशा में कहां तक नजर बनाए हुए है, उसे समझने का एक जरिया है. संस्कृत में एक सूक्ति है, चरैवेति चरैवेत... यानी गतिशील रहो. म्यूजियम इसी गतिशीलता के मंत्र को जरा ठहरकर समझने का माध्यम है, साधन है और इसे देखना अपने आप में साधना है.

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