आज के आधुनिक दौर के अधिकतर व्रत-त्योहार और जो भी उत्सव हैं, उनके तार द्वापरयुग और श्रीकृष्ण से जाकर जुड़ जाते हैं. इन्हीं में से एक है बिहार का प्रसिद्ध सामा-चिकेवा उत्सव. अक्टूबर के आखिरी और नवंबर की शुरुआत में जब सर्दियां धीरे-धीरे वातावरण में कदम बढ़ा रही होती हैं, दिवाली और छठ के ठीक बाद इसी माहौल में सामा-चिकेव का उत्सव मनाया जाता है.
इसमें कोई पूजा नहीं है, कोई मंत्र या श्लोक नहीं हैं और न ही भक्ति की कोई परंपरा. सामा-चिकेवा विशुद्ध रूप से आस्था के साथ आनंद का उत्सव है और इसे कहानी के पात्रों के आधार पर खेल-खेल में ही मनाया जाता है.
भाई-बहन के आपसी प्रेम और विश्वास की कहानी
जैसा कि पहले बताया सामा-चिकेवा की कहानी भी श्रीकृष्ण से ही जाकर जुड़ती है. हालांकि पौराणिक वर्णन के बजाय इसका अधिक विस्तार लोक कथाओं और किवदंतियों में ही मिलता है. सामा का शुद्ध रूप श्यामा है, जिसे श्रीकृष्ण की पुत्री बताया जाता है. चिकेवा जिसका असली नाम चकवाक्य है, वह श्रीकृष्ण का पुत्र है. इस तरह श्यामा और चकवाक्य भाई-बहन हैं.
क्या है सामा-चिकेवा की कहानी?
किसी-किसी कहानी में यह पात्र उलटे हो जाते हैं. सामा को श्रीकृष्ण का पुत्र सांब (शाम्ब या शंभ) बताया जाता है और चिकेवा का नाम चातकी है. इस कथा में भी दोनों भाई-बहन हैं.

चुगला और चुगिला... जो सामा से बदला लेना चाहते थे
होता यूं है कि चातकी या श्यामा जो श्रीकृष्ण की पुत्री है वह एक तपस्वी से प्रेम करती थी और उसी से विवाह करना चाहती थी. इसी बीच चुगला नाम के एक युवक ने उससे विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे श्यामा ने ठुकरा दिया. चुगला की बहन थी चुगिला. जो श्यामा के सांवले-सलोने रूप से जलन रखती थी. चुगिला भी सुंदर थी, लेकिन उसकी चुगली की आदत और बुरा बोलने के कारण कोई उसके रूप पर ध्यान नहीं देता था. इससे चुगिला भी श्यामा से जलती थी.
चुगला-चुगिला ने रचा षड्यंत्र
इस तरह दोनों भाई -बहन चुगला और चुगिला ने श्यामा को बदनाम करने के लिए षड्यंत्र बुना. चुगिला ने श्यामा के प्रेम को बदनीयत से प्रचारित किया और श्रीकृ्ष्ण से जाकर चुगली कर दी कि श्यामा तो वृंदावन का नाम डुबोती है. वह मुनियों-तपस्वियों की तपस्या भंग करने का खेल खेलती है. उनका मखौल बनाती है, सखियों के साथ उनका मजाक बनाती है. श्यामा को लगता है कि वह चिड़ियों जैसा सुंदर गाती है तो पेड़ों के पीछे छिपकर चिड़ियों की आवाज निकालती है.
चुगली सुनकर श्रीकृष्ण ने दिया श्राप
ऐसी-ऐसी चुगली उस चुगिला ने श्रीकृष्ण से जाकर लगा दी. एक दिन श्रीकृष्ण ने भी श्यामा को सुंदर आवाज में गाते सुना, संयोग से वहां एक मुनि अपनी संध्या पूजा कर रहे थे और श्यामा का गीत सुनकर भाव विभोर हो गए. ये सब श्रीकृष्ण ने देखा तो उन्होंने चुगिला की बात को सच मानते हुए अपनी पुत्री श्यामा को शाप दे दिया कि तुम चिड़िया जैसा सुंदर गाती हो न तो जाओ जाकर चिड़िया ही बन जाओ.
अब श्माया चिड़िया बनकर फुदक-खुदक कर चहचहाने लगी और इसी आवाज में विलाप करने लगी. श्यामा के प्रेमी मुनि को भी इससे बहुत दुख हुआ तो वह भी तपस्या के लिए चले गए.
चिड़िया बनी सामा की विशेष बोली
अब कुछ दिनों बाद श्यामा का भाई जो कहीं बाहर गया था, वह घर लौटा तो अपनी प्यारी चुलबुली श्यामा बहन को न पाकर बहुत दुखी हुआ. उधर भाई को देखकर श्यामा झरोखे पर आ गई और 'भाई मैं हूं, भाई मैं हूं' ऐसा कहकर उसका ध्यान अपनी ओर दिलाने की कोशिश करने लगी. लेकिन वह बस इतना कह पाती... 'भैये मैं यूं- भैये मैं यूं'
मिथिला के जंगलों में एक सुंदर छोटी श्यामा चिड़िया आज भी चहचहाती-गूंजती पाई जाती है. वह बहुत मीठा बोलती है और जब लगातार बोलती है तो ऐसा ही लगता है कि वह कह रही है भैये मैं यूं- भैये मैं यूं. इसी श्यामा चिड़िया को सामा का रूप माना जाता है.

भाई ने चड़िया बनी सामा को पहचाना
भाई ने जब चिड़िया की बार-बार ऐसी आवाज सुनी तो पहचान गया कि वही उसकी बहन है. तब भाई ने सारी बात की और श्रीकृष्ण को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह शाप वापस नहीं ले सकते थे. तब भाई अपनी बहन श्यामा के लिए तपस्या करने लगा. कहते हैं कि भाई की तपस्या इतनी कठिन और भयंकर थी कि उसके ताप से सारा वृंदावन जलने लगा. उसकी तपस्या देखकर देवता प्रगट हुए (देवता के रूप में कहीं शिव, कहीं अग्नि देव तो कहीं-कहीं ब्रह्न तो कहीं खुद श्रीकृष्ण और विष्णु का ही नाम लिया जाता है)
देवता ने श्यामा के भाई को ऐसी कठिन तपस्या से रोका और कहा कि तुम जो चाहते हो वो होगा, लेकिन पहले ये तप रोक दो, नहीं तो सब जल जाएंगे. तब भाई ने कहा- मैं बस इतना चाहता हूं कि मेरी बहन फिर से नारी बन जाए और जिन लोगों के कारण उसे ये सब सहना पड़ा, उनके मुंह जल जाएं. देवता ने कहा- ऐसा ही होगा. ऐसा कहते ही जोर की बारिश होने लगी. इससे सब जगह तो ठंडक हो गई, लेकिन चुगला-चुगिला के मुंह झुलस गए. चुगिला कुरूप हो गई, और चुगला की आवाज चली गई. श्यामा चिड़िया फिर से नारी बनकर घर वापस आ गई.
श्रीकृष्ण ने दिया अमरता का वरदान
दोनों भाई-बहन बड़े प्यार से गले मिले. श्यामा ने भाई को तिलक किया. उसकी लंबी आयु की कामना की और उसके सारे रोग-दोष अपने ऊपर चढ़ा लेने की मनौती मानी. श्रीकृष्ण ने दोनों भाई-बहनों को अमरता का वरदान दिया. तब से अंग प्रदेश के हर क्षेत्र में सामा-चिकेवा भाई-बहन के त्योहार के रूप में मनाया जाता है.