कुचिपुड़ी नृत्य की समृद्ध परंपरा को जीवंत करने के लिए, प्रतिभाशाली नृत्यांगना श्रीतनया तातिपामला 13 मई 2025 को नई दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर के स्टीन ऑडिटोरियम में "नट्योल्लासम" नामक एक विशेष कुचिपुड़ी नृत्य प्रदर्शन प्रस्तुत करेंगी. यह प्रदर्शन शाम 7 बजे शुरू होगा और इसमें 17वीं शताब्दी में कुचिपुड़ी परंपरा के संस्थापक सिद्धेंद्र योगी द्वारा रचित प्रसिद्ध नृत्य-नाटिका "भामाकल्पम" के चुनिंदा अंश शामिल होंगे. इस प्रदर्शन की कोरियोग्राफी प्रख्यात गुरु डॉ. वेम्पति चिन्ना सत्यम ने की है.
कुशल कलाकार देंगे प्रस्तुति
श्रीतनया, जो गुरु सीता नागजोथी और पी. नागजोथी की शिष्या हैं, अपनी नृत्य कला से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने के लिए तैयार हैं. इस प्रदर्शन में उनके साथ कुशल कलाकारों की एक मंडली होगी, जिसमें नट्टुवंगम पर अभिनया नागजोथी, स्वर के लिए वेंकटेश्वरन कुप्पुस्वामी, मृदंगम पर मनोहर बालचंद्रन, वायलिन पर जी. राघवेंद्र प्रसाद और बांसुरी पर सिद्धार्थ दलवाहेरा शामिल हैं.
"भामाकल्पम" कुचिपुड़ी नृत्य शैली का एक अनमोल रत्न है, जो अपनी भावपूर्ण अभिव्यक्ति और जटिल नृत्य संरचनाओं के लिए जाना जाता है. यह नृत्य-नाटिका भक्ति, प्रेम और मानवीय भावनाओं को सुंदरता से दर्शाती है. यह आयोजन नृत्य प्रेमियों और कला की परख करने वाले और शास्त्रीय नृत्य परंपरा को कायम रखने वाले पारखियों के लिए एक यादगार अनुभव होने वाला है. इंडिया हैबिटेट सेंटर में होने वाला यह कार्यक्रम दिल्ली के सांस्कृतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण पड़ाव होगा.
क्या है भामाकल्पम?
भामाकल्पम आंध्र प्रदेश की प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य शैली कुचिपुड़ी का एक ऐतिहासिक नृत्य-नाटक है, जिसकी रचना सिद्धेन्द्र योगी ने की थी. इस नृत्य नाटक की कथा श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसमें उनके प्रेम, अहंकार, ईर्ष्या और पुनर्मिलन जैसी भावनाओं को गहराई से दर्शाया गया है.सत्यभामा को एक आत्मविश्वासी, साहसी लेकिन प्रेम में डूबी हुई नायिका के रूप में रखा गया है, जो अपने पति श्रीकृष्ण के प्रति अधिकार और प्रेम की जटिल भावनाओं से जूझती है.
भामाकल्पम में नृत्य, संगीत, अभिनय और संवाद का अद्भुत संयोग देखने को मिलता है. यह नाटक पारंपरिक तेलुगु पद्य में रचा गया है और इसमें नायिका की मनोव्यथा को बेहद नाटकीय ढंग से पिरोया किया गया है. इस नाटक ने कुचिपुड़ी को जनसामान्य तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसे मंदिरों की सीमाओं से निकालकर रंगमंच की शोभा बना दिया. भामाकल्पम को भारतीय नृत्य-नाटकों की परंपरा में एक मील का पत्थर माना जाता है.