ना ना करते केजरीवाल ही जाएंगे राज्यसभा, क्योंकि उनका ट्रैक रिकॉर्ड यही कहता है

अरविंद केजरीवाल राज्यसभा जाने से इनकार ही इकरार का इशारा करता है. संजीव अरोड़ा के चुनाव जीत जाने से ये केजरीवाल के राज्यसभा जाने का रास्ता ही साफ नहीं हुआ है, उनका जाना भी पक्का लगता है - और केजरीवाल की राजनीति का ट्रैक रिकॉर्ड ही सबसे बड़ा सबूत है.

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अरविंद केजरीवाल जो नहीं कहते वो पक्का करते हैं, और राज्यसभा का मामला कोई अलग नहीं है. अरविंद केजरीवाल जो नहीं कहते वो पक्का करते हैं, और राज्यसभा का मामला कोई अलग नहीं है.

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 24 जून 2025,
  • अपडेटेड 5:30 PM IST

अरविंद केजरीवाल का ये कहना कि वो राज्यसभा नहीं जा रहे हैं, महज राजनीतिक बयान है. और, ये कोई पहला वाकया नहीं है. लगे हाथ अरविंद केजरीवाल ने ये भी कहा है कि आम आदमी पार्टी की PAC यानी पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी जिसे भेजना चाहेगी, वो जाएगा. 

बिल्कुल सही बात है. पीएसी, आम आदमी पार्टी की सबसे ताकतवर निर्णायक समिति है, जिसका फैसला मानने के लिए अरविंद केजरीवाल भी बाध्य हैं. सवाल है कि जब पीएसी के सदस्यों ने एक बार तय कर लिया कि अरविंद केजरीवाल को ही भेजना है, तो वो भी क्या कर पाएंगे? 

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चलिये, फिलहाल अरविंद केजरीवाल की बात मान लेते हैं. लेकिन, ये बात भी वैसे ही मानना पड़ेगा जैसे उनके पहले वाली बातें. मसलन, अरविंद केजरीवाल का सुरक्षा लेने से इनकार कर देना. बंगला लेने से इनकार कर देना. वीआईपी कल्चर को नापसंद करना - और बाद में धीरे धीरे वो सब अपना लेना, जिससे पहले इनकार कर चुके हों. 

अरविंद केजरीवाल का ट्रैक रिकॉर्ड तो यही कहता है कि जो वो कहते हैं, उसे तो करने की कोशिश करते ही हैं. और, जिस बात से इनकार करते हों, उसे तो पक्के तौर पर कर ही डालते हैं - और इस हिसाब से अरविंद केजरीवाल के राज्यसभा जाने की योजना भी समझी जा सकती है. 

संजीव अरोड़ा को विधानसभा भेजना ही क्यों था?

मान लीजिये अरविंद केजरीवाल को राज्यसभा नहीं जाना था, फिर संजीव अरोड़ा को लुधियाना उपचुनाव में उम्मीदवार बनाने की जरूरत ही क्या थी? लुधियाना के लिए तो पहले से ही आम आदमी पार्टी में कई दावेदार थे. लुधियाना उपचुनाव में जैसी मेहनत की गई है, किसी के लिए भी की जा सकती थी. और, ऐसे नतीजे भी लाये जा सकते थे.

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लुधियाना के कारोबारियों को खुश करने के लिए किसानों की नाराजगी मोल ली गई. शंभू-खनौरी बॉर्डर जबरन खाली करा दिया गया. चुनाव की तारीख नहीं आई थी, तभी से अरविंद केजरीवाल ने मोर्चा संभाल लिया था. लुधियाना के लोगों से बड़े बड़े वादे किये. विकास के नाम पर लोगों को धमकाये भी, और संजीव अरोड़ा को पंजाब सरकार में मंत्री बनाये जाने का भी वादा किया. 

देखा जाये तो संजीव अरोड़ा के लिए तो बहुत फायदे का सौदा भी नहीं है. संजीव अरोड़ा पंजाब विधानसभा के बचे हुए कार्यकाल के लिए विधायक चुने गये हैं. ये मुश्किल से करीब एक साल की अवधि है. राज्यसभा के लिए वो अप्रैल, 2022 में चुने गये थे, यानी वहां करीब तीन साल का कार्यकाल बचा हुआ है. एक पल के लिए मान लेते हैं, 2027 के पंजाब विधानसभा चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी सत्ता में नहीं लौट पाती, फिर तो संजीव अरोड़ा का भी मौजूदा खेल खत्म हो जाएगा. 

अगर केजरीवाल नहीं, तो राज्यसभा कौन जाएगा?

संजीव अरोड़ा के चुनाव जीत लेने और अरविंद केजरीवाल के इनकार कर देने के बाद सवाल ये उठ रहा है कि आखिर आम आदमी पार्टी किसे राज्यसभा भेजेगी? मनीष सिसोदिया और सुरेंद्र जैन से लेकर पंजाब के कुछ नेताओं के नाम भी चल रहे हैं - लेकिन राज्यसभा तो वही जाएगा, जिसके वहां पहुंचने से आम आदमी पार्टी को कोई बड़ा फायदा हो सके. 

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सत्येंद्र जैन को राज्यसभा भेजने से अरविंद केजरीवाल को कोई फायदा नहीं होने वाला है. वो जिस तरह नये आइडिया और कार्यक्रमों पर काम करते हैं, उनका अरविंद केजरीवाल के साथ बने रहना जरूरी है. सत्येंद्र जैन राज्यसभा जाने के बजाय पंजाब में रहकर ज्यादा फायदा पहुंचा सकते हैं. 

मनीष सिसोदिया को भी राज्यसभा भेजने से कोई बहुत ज्यादा फायदा नहीं होने वाला है. राज्यसभा जाकर मनीष सिसोदिया भी वही काम करेंगे जो संजय सिंह पहले से करते आ रहे हैं. हां, एक फर्क ये जरूर है कि स्वाति मालीवाल केस में संजय सिंह की हड़बड़ी ने अरविंद केजरीवाल को नाराज कर दिया था. हो सकता है, अरविंद केजरीवाल के मन में कुछ हो, लेकिन बाहर से तो ऐसा कुछ नहीं नजर आता. 

लेकिन, राज्यसभा के मंच से अरविंद केजरीवाल के बोलने की ज्यादा अहमियत होगी. केजरीवाल भाषण भी अच्छा देते हैं. अपनी बात अच्छे तरीके से समझा लेते हैं, और लोगों से सीधे कनेक्ट भी हो जाते हैं. संजय सिंह आम आदमी पार्टी की आवाज जरूर बुलंद करते हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल की जगह तो वो ले नहीं सकते. 

वैसे भी अगर अरविंद केजरीवाल राज्यसभा जाते हैं तो संजीव अरोड़ा के बचे हुए तीन साल के कार्यकाल यानी अप्रैल, 2028 तक सांसद तो रहेंगे ही. तब तक पंजाब में विधानसभा चुनाव भी हो चुके होंगे, और सामने 2029 का लोकसभा चुनाव आ चुका होगा. दिल्ली में तो अगला चुनाव अब 2030 में होगा, जो काफी लंबा फासला है. 

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तमाम सूरत-ए-हाल तो यही संकेत दे रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल ही राज्यसभा जाएंगे. संभावनाओं को सिरे से कभी भी खारिज किया जा सकता है. लेकिन, अरविंद केजरीवाल का राजनीतिक मिजाज तो यही कहता है - और अब तक का उनका ट्रैक रिकॉर्ड सबूत भी है. 

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