‘पड़ोसी संकट में भारत ही बने पहला विकल्प’, जयशंकर ने JNU में कहा- 2047 तक नई विश्व व्यवस्था के लिए रणनीति जरूरी

JNU के पूर्व छात्र जयशंकर ने कहा कि देश के हितों की रक्षा के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर उसकी स्थिति को लगातार मजबूत करना जरूरी है. जयशंकर ने कहा, यह पड़ोसियों को प्राथमिकता देने की नीति का मूल है. भारत को इस उपमहाद्वीप में किसी भी संकट में पहला विकल्प बनना होगा. विभाजन के कारण भारत की रणनीतिक कमजोरी को दूर करना जरूरी है.

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विदेश मंत्री जयशंकर (Photo: PTI) विदेश मंत्री जयशंकर (Photo: PTI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 06 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 10:36 PM IST

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सोमवार को जोर देकर कहा कि भारत को अपने पड़ोसियों के किसी भी संकट की स्थिति में पहला और भरोसेमंद विकल्प बनना चाहिए. जयशंकर ने यह बात जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में ‘India and the World Order: Preparing for 2047’ विषय पर आयोजित अरावली समिट में कही. उन्होंने कहा कि राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति में भारत को 'सहयोग के ढांचे' को स्वयं संभालना होगा.

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जयशंकर ने कहा, यह पड़ोसियों को प्राथमिकता देने की नीति का मूल है. भारत को इस उपमहाद्वीप में किसी भी संकट में पहला विकल्प बनना होगा. विभाजन के कारण भारत की रणनीतिक कमजोरी को दूर करना जरूरी है.

वैश्विक परिदृश्य का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा कि आज की दुनिया में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है और सहयोग की संभावना घट रही है. उन्होंने कहा, 'यह सब चीजों के हथियारबंदी के कारण हो रहा है. सभी देशों के सामने चुनौतियां हैं. भारत को ऐसी अस्थिरता के बीच अपनी रणनीति बनानी होगी और लगातार आगे बढ़ना होगा. चुनौती यह है कि इस जटिल परिदृश्य को समझा जाए.'

JNU के पूर्व छात्र हैं जयशंकर

JNU के पूर्व छात्र जयशंकर ने कहा कि देश के हितों की रक्षा के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर उसकी स्थिति को लगातार मजबूत करना जरूरी है. उन्होंने कहा, भारत के दृष्टिकोण से मांग, जनसांख्यिकी और डेटा उसकी उभरती शक्ति को आगे बढ़ाएंगे. हमें 2047 तक की यात्रा के लिए विचार, शब्दावली और नैरेटिव तैयार करने होंगे.

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उन्होंने JNU के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ (SIS) को भी सुझाव दिया कि वह भारत को विकसित बनाने और एक अग्रणी शक्ति के रूप में उभरने में जिम्मेदारी निभाए. SIS ने भारत की क्षमता विकसित करने में अग्रणी भूमिका निभाई है और पूरे देश में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन के प्रसार के लिए प्रेरणा स्रोत रहा है. जयशंकर ने कहा और ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को हासिल करने के महत्व को रेखांकित किया.

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