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जानिए क्या है बायो बिटुमेन तकनीक, जिससे सड़क बनाने में होगा पराली का इस्तेमाल

Bio Bitumen Technique: प्रदूषण से बचने के लिए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी एक बड़ा प्लान तैयार कर रहे हैं. गडकरी के मुताबिक, अब सड़कों को बनाने में पराली का उपयोग किया जाएगा. यह प्लान अगले दो से तीन महीने के अंदर लागू कर दिया जाएगा. आइए जानते हैं किस तरह सड़कें बनाने में पराली का इस्तेमाल किया जाएगा.

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Stubble Burning
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उत्तर भारत समेत देश के कई हिस्सों में प्रदूषण एक गंभीर समस्या बना है. दिल्ली-एनसीआर में दिवाली के बाद बढ़ी पराली जलाने की घटनाओं के से पॉल्यूशन लेवल खतरनाक स्तर को पार कर चुका है. प्रदूषण से निपटने और पराली जलाने की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए विभिन्न राज्यों की सरकार अपने-अपने स्तर पर कार्य कर रही हैं.

प्रदूषण से निपटने के लिए गडकरी का ये है प्लान

प्रदषण से बचने के लिए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बड़ा प्लान तैयार कर रहे हैं. गडकरी के मुताबिक, अब सड़कों को बनाने में पराली का उपयोग किया जाएगा. ऐसा संभव होगा बायो-बिटुमन तकनीक से. दरअसल, अब तक बायो-बिटुमन में बजरी व अन्य पत्थरों का उपयोग होता था. अब गडकरी के नए प्लान के मुताबिक, इसे बनाने में पराली का इस्तेमाल किया जाएगा. यह प्लान अगले दो से तीन महीने के अंदर प्रभाव में आ जाएगा.

क्या है बायो बिटुमेन?

यह सड़कों पर डाला जाने वाला काले रंग का द्रव होता है. इसमें बजरी व अन्य पत्थरों का इस्तेमाल कर सड़क बनाई जाती है. बायो बिटुमेन ऐसे पदार्थाें से मिलाकर बनाया जाता है, जिससे कार्बन उत्सर्जन कम हो. इसका उपयोग सड़कों और छतों के निर्माण के लिए उपयोग किया जाता है.

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बायो बिटुमेन तकनीक कैसे करती है काम?

काले रंग के इस द्रव्य को कोलतार भी कहते हैं. यह चिपचिपा होता है, जो मकान और सड़क बनाने के लिए उपयोग होने वाले तत्वों को एक साथ बांध कर रखती है. इसका ज्यादातर उपयोग पक्की सड़कों की सतहों को बांधने के लिए किया जाता है. इससे सड़कें लंबी समय तक सुरक्षित रहती हैं.

ये तकनीक पराली के इस्तेमाल से कम करेगी प्रदूषण 

बायो बिटुमेन तकनीक से सड़क बनाने में अभी तक पराली का उपयोग नहीं देखा गया है. भारत इस तरह का पहला प्रयोग करने जा रहा है. सड़कें बनाने में अब तक डामर या कंक्रीट का उपयोग होता है. इसमें कार्बन उत्सर्जन ज्यादा होता है. ये स्थिति प्रदूषण के लिए भी हानिकारक है. ऐसी स्थिति में सड़क पराली का उपयोग प्रदूषण के स्तर को कम कर सकता है. इसके अलावा किसानों को पास अतिरिक्त मुनाफा कमाने का भी मौका होगा.

 

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