भारतीय जनता पार्टी ने राजस्थान सरकार पर किसानों से कर्ज में धोखाधड़ी करने और बैंकों द्वारा उनकी जमीनें जब्त किए जाने का आरोप लगा रही है. इन आरोपों के बीच कांग्रेस सरकार ने किसानों को बड़ी राहत देने की योजना बनाई है. सरकार किसान ऋण राहत विधेयक( Farmers Debt Relief Commission Bill) को विधानसभा में 2 अगस्त को पेश करने वाली है. इस विधेयक के पारित होने के बाद किसान ऋण राहत आयोग के गठन का रास्ता साफ हो जाएगा.
जबरन कर्ज वसूली नहीं की जा सकेगी
आयोग के गठन के बाद बैंक या कोई भी वित्तीय संस्थान किसी भी कारण से फसल बर्बाद होने की स्थिति में ऋण वसूली के लिए दबाव नहीं बना सकेंगे. किसान फसल खराब होने की स्थिति में कर्ज माफी की मांग को लेकर इस आयोग में आवेदन कर सकेंगे. आयोग किसानों का कर्ज माफ करने या फिर उनकी मदद करने करने का फैसला ले सकती है. राज्य कृषक ऋण राहत आयोग में अध्यक्ष सहित 5 सदस्य होंगे। हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश अध्यक्ष होंगे.
आयोग में होंगे इतने सदस्य
आयोग में सेवानिवृत्त आईएएस, जिला एवं सत्र न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, बैंकिंग क्षेत्र में काम कर चुके अधिकारी और एक कृषि निर्यातक को सदस्य बनाया जाएगा. सहकारी समितियों के अतिरिक्त रजिस्ट्रार स्तर के एक अधिकारी को इसका सदस्य सचिव बनाया जाएगा. किसान ऋण राहत आयोग का कार्यकाल 3 वर्ष का होगा. आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल भी 3 वर्ष का होगा. सरकार अपने स्तर पर आयोग का कार्यकाल बढ़ा भी सकेगी और किसी सदस्य को हटा भी सकेगी.
आयोग के पास अदालत की तरह शक्तियां होंगी
विधेयक की तैयारी में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा किसान ऋण राहत आयोग के पास अदालत की तरह शक्तियां होंगी. यदि किसी क्षेत्र में फसल खराब हो जाती है और इसके कारण किसान बैंकों से लिया गया कृषि ऋण चुकाने में असमर्थ होता है. ऐसी स्थिति में आयोग के पास उस किसान और क्षेत्र को संकटग्रस्त घोषित करने और उसे राहत देने का आदेश देने का अधिकार होगा.
आयोग के पास होंगे ये अधिकार
उन्होंने कहा कि अगर किसान कर्ज न चुका पाने की वजह से आवेदन करता है या आयोग खुद समझता है कि हालत वाकई खराब हैं तो वह उसे संकटग्रस्त किसान घोषित कर सकता है. परेशान किसान का मतलब है कि फसल बर्बाद होने के कारण वह कर्ज नहीं चुका पा रहा है. संकटग्रस्त किसान घोषित होने के बाद बैंक उस किसान से जबरन कर्ज की वसूली नहीं कर सकेगा.
क्षेत्र को संकटग्रस्त घोषित करने के बाद समझौते के आधार पर बैंकों से लिए गए ऋण की अदायगी की प्रक्रिया भी तय करने का अधिकार आयोग को होगा. किसानों के पक्ष में कोई भी फैसला लेने से पहले आयोग बैंकों के प्रतिनिधियों को भी सुनवाई का मौका देगा. आयोग कर्ज का पुनर्निर्धारण और ब्याज कम करने जैसे फैसले भी ले सकेगा. आयोग किसानों को दिए जाने वाले ऋण के संबंध में प्रक्रिया तय करने और सरल बनाने के लिए सुझाव भी दे सकेगा.
संकटग्रस्त इलाकों में किसानों की हालत को देखते हुए आयोग अपनी रिपोर्ट में सरकार से किसानों का कर्ज माफ करने की सिफारिश भी कर सकेगा. आयोग के फैसले को सिविल कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती. किसान ऋण राहत आयोग को सिविल कोर्ट के बराबर शक्तियां दी गई हैं. ऋण राहत आयोग के किसी भी निर्णय को सिविल न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती. आयोग किसी भी अधिकारी या व्यक्ति को तलब कर सकेगा.
आयोग के प्रतिनिधि किसानों के बीच जाएंगे
इस कानून के तहत किसी भी कर्ज से राहत का दावा करने वाला किसान आयोग के समक्ष आवेदन दायर करेगा और उसके बाद आयोग अपना निर्णय लेगा. किसान ऋण राहत आयोग समय-समय पर क्षेत्रीय बैठकें भी करेगा. आयोग के प्रतिनिधि विशेष रूप से किसानों का पक्ष जानने और स्थिति का जायजा लेने के लिए उन इलाकों में जाएंगे जो संकटग्रस्त हैं और जहां फसलों को नुकसान हुआ है. ऋण माफी आयोग की बैठक में 5 में से 3 सदस्यों का उपस्थित रहना जरूरी होगा. जिलों में होने वाली बैठकों के लिए आयोग 2 या अधिक सदस्यों की एक बेंच गठित करेगा और बैठक करेगा.
किसान पर किसी भी प्रकार का मुकदमा, आवेदन, अपील एवं याचिका पर रोक रहेगी
यदि किसान ऋण माफी आयोग किसी क्षेत्र को संकटग्रस्त क्षेत्र घोषित कर देता है, तो ऐसे क्षेत्र में कोई भी बैंक या वित्तीय संस्थान किसानों से ऋण वसूलने के लिए उनकी संपत्तियों को बेचकर या जब्त करके या उनकी नीलामी करके कोई कार्रवाई नहीं कर सकेगा. जब तक मामला आयोग के पास लंबित रहेगा तब तक किसान के विरुद्ध किसी भी प्रकार का मुकदमा, आवेदन, अपील एवं याचिका पर रोक रहेगी.