कृषि कानूनों की वापसी जरूर हो गई है लेकिन किसानों की मांग अभी अधूरी है. उन अधूरी मांगों को लेकर भी संयुक्त किसान मोर्चा केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहा है. दवाब बनाया जा रहा है कि अगर मांगे पूरी नहीं हुई तो चुनावी राज्यों में बीजेपी की मुसीबत बढ़ेगी.
किसानों की बीजेपी को चेतावनी
इसी कड़ी में संयुक्त किसान मोर्चा ने आज एक अहम बैठक की थी. बैठक के दौरान कई मुद्दों पर चर्चा हुई. किसानों पर दर्ज हुए मुकदमों का मुद्दा उठा, एमएसपी पर बात की गई और आगे की रणनीति पर भी विस्तार से चर्चा हुई. बताया गया कि अगर केंद्र सरकार ने किसानों की मांग नहीं मानी तो उत्तराखंड-उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ प्रदर्शन को तेज किया जाएगा. इसके अलावा ये भी ऐलान किया गया कि 31 जनवरी को पूरे देश में विश्वासघात दिवस मनाया जाएगा.
उस बैठक के दौरान दूसरे राजनीतिक दलों के लिए भी बड़ा संदेश रहा. साफ कर दिया गया कि किसानों का वोट उसी दल को मिलेगा जो 6 मांगों को अपने घोषणापत्र में शामिल करेगा. उन मांगों में किसानों के ऊपर से मुकदमे वापस लेने से लेकर सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली देने तक शामिल है. गन्ना भुगतान और एमएसपी को लेकर भी योजना में स्पष्टता की मांग की गई है. इससे पहले भी किसान संगठन कह चुके हैं कि चुनाव में किसानों का वोट उसी को जाएगा जो उनके समाज की बात करेगा.
आगे की क्या रणनीति?
इससे पहले भी संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा था कि 23 और 24 फरवरी को ट्रेड यूनियनों द्वारा घोषित राष्ट्रव्यापी हड़ताल का समर्थन करेगा. मोर्चा ने कहा कि भारत सरकार ने 9 दिसंबर के पत्र के किसी भी वादे को पूरा नहीं किया, जिसके आधार पर हमने मोर्चा वापस लेने का फैसला किया. आंदोलन के दौरान मामले को तत्काल वापस लेने के वादे पर केंद्र सरकार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और हिमाचल सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है.