दुनियाभर की आबादी में इजाफा हो रहा है. इसी तरह भारत की जनसंख्या भी बढ़ रही है. आबादी बढ़ने के साथ-साथ खेती की जमीनें घट रही हैं और खाद्य जरूरतें बढ़ रही हैं. परिणामस्वरुप वन क्षेत्रों की कटाई में बढ़ोतरी हो रही है. वन क्षेत्र रिहायशी इलाके या फिर खेती की जमीनों के तौर पर बदल रहे हैं. ऐसा होने से जलवायु परिवर्तन पर बुरा असर पड़ रहा है.
खाद्य संकट दूर कर सकता है मशरूम
डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल 47 लाख हेक्टेयर में फैले जंगल के क्षेत्र कम हो रहे हैं. कृषि भूमि की बढ़ती मांग वन क्षेत्र के कम होने की वजह बन रही है. जनसंख्या में जिस तरह से इजाफा हो रहा है उससे वन क्षेत्र में और भी कमी आने की संभावनाएं हैं. पेड़ों के साथ-साथ मशरूम की खेती न केवल लाखों लोगों का पेट भर सकती है. साथ ही इसकी मदद से जलवायु परिवर्तन की समस्या को भी कम किया जा सकता है.
गेमचेंजर साबित हो सकती है मशरूम की खेती
माइकोलॉजिस्ट पॉल स्टैमेट्स (बीबीसी स्टोरीवर्क्स चैप्टर) के इंटरव्यू में बताते हैं कि मशरूम की खेती गेमचेंजर साबित हो सकती है.. मशरूम की एक जड़ प्रणाली होती है मायसेलियम ये मशरूम की खेती के लिए पोषक तत्व के तौर पर काम कर सकती है. ये मिट्टी से लेकर पौधे तक पर उग जाता है. मायसेलियम हाइड्रोकार्बन लेने और तोड़ने में सक्षम है. यह जमीन के अंदर काफी नीचे तक फैल जाता है. सबसे पहले, यह विषाक्त पदार्थों को तोड़ सकता है, जिससे यह मिट्टी और इसके आस-पास के पौधों के लिए एक सुरक्षात्मक शक्ति बन जाता है.
बड़ी मात्रा में कार्बन सोखता है मायसेलियम
मायसेलियम भी वातावरण कार्बन को सोख लेता है, जो जलवायु को गर्म करने वाले कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल से बाहर रखता है, (कुछ कवक मिट्टी में 70 प्रतिशत अधिक कार्बन जमा कर सकते हैं). इसके अलावा, मायसेलियम उस संग्रहीत कार्बन में से कुछ को कार्बोहाइड्रेट में तोड़ने में सक्षम है, जो तब मिट्टी के लिए पोषक तत्व के रूप में कार्य करता है. मायसेलियम कुछ को कार्बोहाइड्रेट में तोड़ने में सक्षम है, जो तब मिट्टी के लिए पोषक तत्व के रूप में कार्य करता है.
मिट्टी के पोषक तत्वों को बढ़ावा मिलेगा
किसानों के खेत में फसल और सब्जियों की पैदावार और गुणवत्ता इस बात पर निर्भर करती है कि जिस खेत में किसान खेती कर रहा है उस खेत में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा कितनी अधिक है. जिस खेत की मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन कंटेट अधिक रहेगा उस खेत में पैदावार भी अच्छी होगी और उपज की गुणवत्ता भी अच्छी रहेगी. साथ ही उत्पाद में पोषक तत्व भी भरपूर मात्रा में रहेंगे. एक खेत में प्राकृतिक तरीके से जैविक कार्बन कंटेंट को एक प्रतिशत बढ़ने में 100 साल से अधिक का समय लग जाता है, जबकि जिस खेत की मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन कंटेट जैसे-जैसे 0.5 फीसदी से कम होती जाती है वैसे-वैसे मिट्टी बंजर होती जाती है. ऐसे में मायसीलियम से मिट्टी के पोषक तत्वों को बढ़ावा मिलेगा.
खाद्य संकट से निपटने में मदद
किसान जितना मशरूम की खेती करेंगे उतना ही मायसीलियम की जरूरत होगी. इसके लिए किसान अपने आसपास के जमीनों और पेड़ों पर मायसीलियम विकसित कर सकते हैं. इससे जमीन की उत्पादकता तो बढ़ेगी ही. साथ ही जिस पेड़ पर मायसीलियम का विकास किया जा रहा है, उस पेड़ को भी इस कवक के माध्यम से विकसित होने में मदद हासिल होगी.
मशरूम की खेती करने वाले किसान की कमाई तो होगी साथ ही. साथ ही भोजन के तौर पर इसका उपयोग कर खाद्य संकट भी कम किया जा सकता है. वहीं, मायसीलियम की मदद से भूमि की उत्पादकता और पेड़ों का विकास भी सही तरीके से होगा. इसके उपयोग से वन क्षेत्र और घने किए जा सकते हैं. इससे जलवायु परिवर्तन पर काफी हद तक कंट्रोल कर सकते हैं.