हरियाणा से लेकर राजस्थान, यूपी, बिहार और मध्य प्रदेश तक के किसान इस समय डीएपी (डाई-अमोनियम फॉस्फेट) की किल्लत से जूझ रहे हैं. डीएपी दूसरी सबसे ज्यादा खपत वाली खाद है. इसके लिए किसानों को दो-दो दिन लाइन में लगना पड़ रहा है और कुछ सूबों में तो पुलिस के पहरे में इसका वितरण हो रहा है.
तमाम सरकारी दावों के बावजूद आखिर ऐसा क्यों है कि गेहूं और सरसों जैसी महत्वपूर्ण फसलों की बुवाई के वक्त किसानों को डीएपी संकट का सामना करना पड़ रहा है. कई राज्यों में किसानों ने 1350 रुपये वाले 50 किलो डीएपी बैग को ब्लैक में खरीदने के लिए दो-दो हजार रुपये चुकाए हैं, क्योंकि अगर इसका इस्तेमाल नहीं करेंगे तो फसलों के उत्पादन पर बुरा असर पड़ सकता है.
हालात ये हैं कि बीजेपी और कांग्रेस ही नहीं दूसरी पार्टियों के शासन वाले सूबों में भी किसानों को डीएपी की कमी का सामना करना पड़ रहा है. वजह ये है कि देश में डीएपी की जितनी मांग है इसकी उतनी उपलब्धता नहीं है. ऐसे में अधिकांश राज्यों को उनकी जरूरत जितनी डीएपी की आपूर्ति नहीं हो पाई है.
भारत सरकार अपने किसानों को डीएपी उपलब्ध करवाने के लिए आयात पर निर्भर है और इस साल इसके आयात में गिरावट आई है. जिसका असर साफ-साफ ग्राउंड पर दिखाई दे रहा है. लेकिन ऐसा क्यों हुआ? हम आजादी के 77 साल बाद भी किसानों को खाद तक उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं. किसानों को इसके लिए लाठी खानी पड़ रही है.
किन राज्यों में कम सप्लाई
-बीजेपी शासित मध्य प्रदेश में सितंबर 2024 के दौरान 1,57,000 मीट्रिक टन डीएपी की जरूरत थी, जबकि उपलब्धता सिर्फ 69,702.9 मीट्रिक टन की ही हो पाई.
-बीजेपी के शासन वाले यूपी में सितंबर 2024 के दौरान 1,95,000 मीट्रिक टन डीएपी की जरूरत थी और यहां पर 1,35,474 टन की ही उपलब्धता हो पाई.
-बीजेपी और उसके सहयोगियों के शासन वाले महाराष्ट्र में 65,000 मीट्रिक टन डीएपी की जरूरत थी, जबकि उपलब्धता सिर्फ 15,671.7 मीट्रिक टन की ही हो सकी.
-बीजेपी के शासन वाले छत्तीसगढ़ में सितंबर 2024 के दौरान 10,000 मीट्रिक टन डीएपी की जरूरत थी, जबकि उपलब्धता सिर्फ 6,840.1 मीट्रिक टन की ही रही.
-कांग्रेस शासित कर्नाटक में सितंबर 2024 के दौरान 41.630 मीट्रिक टन डीएपी की जरूरत थी, जबकि उपलब्धता सिर्फ 23,367.96 मीट्रिक टन की ही थी.
-कांग्रेस शासित तेलंगाना में सितंबर के दौरान 20,000 मीट्रिक टन की जरूरत के मुकाबले 12,139.7 मीट्रिक टन की ही उपलब्धता रही.
-टीएमसी के शासन वाले पश्चिम बंगाल में सितंबर 2024 के दौरान 32,680 मीट्रिक टन की जरूरत के मुकाबले सिर्फ 27,830.61 मीट्रिक टन डीएपी पहुंचा.
हरियाणा में क्यों बढ़ा संकट?
सितंबर 2024 में हरियाणा में चुनाव चल रहे थे और वहां पर उस महीने डीएपी की जरूरत से अधिक बिक्री हुई है. सितंबर में वहां पर 60,000 मीट्रिक टन डीएपी की जरूरत थी जबकि बिक्री 64,345 मीट्रिक टन हुई. इसके बावजूद अक्टूबर में वहां के किसान संकट का सामना कर रहे हैं.
हरियाणा सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि 27 अक्तूबर, 2024 तक राज्य में पुराने स्टॉक को मिलाकर 27,357 मीट्रिक टन डीएपी उपलब्ध थी. भारत सरकार द्वारा अक्टूबर महीने के दौरान 1,15,150 मीट्रिक टन डीएपी का आवंटन किया गया है, जिसमें से 27 अक्तूबर तक 68,929 मीट्रिक टन मिला है.
डीएपी का सियासी दांव
किसानों के मुद्दे सियासी तौर पर बेहद संवेदनशील होते हैं. इस वक्त गेहूं और सरसों की बुवाई चल रही है. ऐसे में इतनी महत्वपूर्ण खाद की शॉर्टेज से किसान परेशान हैं. डीएपी की किल्लत हुई तो विपक्ष ने सरकार को घेरने में देर नहीं लगाई. कांग्रेस नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा, 'खाद की सप्लाई न होने के कारण किसानों को कई दिनों तक लंबी कतारों में इंतजार करना पड़ रहा है. फिर भी उन्हें खाद नहीं मिल पाती और उन्हें इसे ब्लैक मार्केटिंग से खरीदना पड़ता है.'
उधर, कांग्रेस नेत्री कुमारी शैलजा ने आरोप लगाया कि सरसों, गेहूं और कुछ अन्य फसलों की खेती के लिए जरूरी डीएपी की कमी ने किसानों को लंबी कतारों में खड़े होने के लिए मजबूर किया है. कई जगहों पर स्थिति गंभीर हो गई है और किसान विरोध प्रदर्शन करने के लिए मजबूर हैं.
डीएपी के लिए आयात पर निर्भरता
भारत में यूरिया के बाद सबसे ज्यादा खपत डीएपी की होती है. हर साल लगभग 100 लाख टन डीएपी की मांग है. जिसका अधिकांश हिस्सा आयात से पूरा किया जाता है. इसलिए आयात प्रभावित होते ही संकट बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है. साल दर साल डीएपी के लिए भारत की निर्भरता आयात पर बढ़ रही है.
रसायन और उर्वरक मंत्रालय के मुताबिक साल 2019-2020 में हमने 48.70 लाख मीट्रिक टन डीएपी का आयात किया था, जो 2023-24 में बढ़कर 55.67 लाख मीट्रिक टन हो गई. साल 2023-24 में में डीएपी का घरेलू उत्पादन महज 42.93 लाख मीट्रिक टन था.
संकट क्यों पैदा हुआ?
रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने अपने बयान में इस साल डीएपी संकट होने की वजह बताई है. सरकार ने कहा, 'जनवरी से चल रहे लाल सागर संकट के कारण डीएपी का आयात प्रभावित हुआ, जिसकी वजह से उर्वरक जहाजों को केप ऑफ गुड होप के माध्यम से 6500 किलोमीटर की ज्यादा दूरी तय करनी पड़ी. इस तथ्य पर ध्यान दिया जा सकता है कि डीएपी की उपलब्धता कई भू-राजनीतिक कारकों से कुछ हद तक प्रभावित हुई है. जिसमें से एक यह भी है. उर्वरक विभाग द्वारा सितंबर-नवंबर, 2024 के दौरान डीएपी की उपलब्धता में वृद्धि करने के लिए प्रयास किए गए हैं.'
क्या कीमत में वृद्धि का असर पड़ा?
उधर, उर्वरक विभाग के मुताबिक डीएपी की कीमत सितंबर, 2023 में 589 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन से लगभग 7.30 फीसदी बढ़कर सितंबर, 2024 में 632 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन हो गई थी. हालांकि, अगर वैश्विक बाजार में डीएपी सहित पीएंडके उर्वरक की खरीद कीमत बढ़ती है, तो कंपनियों की खरीद क्षमता प्रभावित नहीं होती है. दाम बढ़ने की बजाय कोविड काल से डीएपी की एमआरपी 1350 रुपये प्रति 50 किलोग्राम बैग बरकरार रखी गई है.
मांग-आपूर्ति में कितना गैप
दरअसल, देश के कई हिस्सों में इस समय डीएपी का जो संकट दिखाई दे रहा है उसकी शुरुआत सितंबर में ही हो गई थी. आंकड़े बता रहे हैं कि डीएपी की जरूरत और उपलब्धता में तब 2.34 लाख मीट्रिक टन की भारी कमी थी. इसका असर अक्टूबर में भी देखने को मिला है. पुलिस के पहरे में डीएपी वितरण की जो तस्वीरें आ रही हैं उसकी तस्दीक मांग और आपूर्ति के आंकड़े कर रहे हैं. सितंबर 2024 में 9.35 लाख मीट्रिक टन की जरूरत थी जबकि उपलब्धता सिर्फ 7.01 लाख मीट्रिक टन की रही.
पहले भी आया था संकट
साल 2021 के अक्टूबर महीने में भी किसानों ने डीएपी का बड़ा संकट देखा था. तब एनसीआर में आने वाले हरियाणा के मेवात में पुलिस थाने में खाद बांटी गई थी. यही नहीं, तब मध्य प्रदेश में भी जगह-जगह किसानों को खाद के लिए लंबी लाइनों में लगना पड़ा था. तब सितंबर 2021 में देश में डीएपी की मांग और आपूर्ति में रिकॉर्ड 3.44 लाख मीट्रिक टन का गैप था. सितंबर 2021 में 10.39 मीट्रिक टन की जरूरत थी और उपलब्धता सिर्फ 6.95 लाख मीट्रिक टन की थी. इसलिए 2021 में भी किसानों को डीएपी संकट का सामना करना पड़ा था.
कब ज्यादा थी आपूर्ति?
दूसरी ओर, जिन वर्षों में मांग से अधिक आपूर्ति रही है उनमें ऐसी कोई दिक्कत नहीं आई थी. सितंबर 2023 में जरूरत 7.18 लाख मीट्रिक टन की थी और उपलब्धता 12.08 लाख मीट्रिक टन थी. सितंबर 2022 में 8.26 लाख टन की तरूरत थी और हमारे पास 12.23 लाख टन डीएपी मौजूद थी. जबकि सितंबर 2020 में 8.09 लाख टन की जरूरत के मुकाबले 18.01 लाख टन डीएपी उपलब्ध थी. इसलिए इन वर्षों में किसानों को डीएपी संकट का सामना नहीं करना पड़ा था.
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