
अमेरिकी राजनीतिक कार्यकर्ता और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बेहद करीबी चार्ली किर्क की 11 सितंबर को यूटा वैली यूनिवर्सिटी में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित करते वक्त गोली मारकर हत्या कर दी गई. हमलावर एक 22 साल का युवक था. अधिकारियों ने उसके पास से विनचेस्टर .30 कैलिबर की हंटिंग राइफल बरामद की, जिसमें एक दूरबीन माउंट लगा हुआ था. इस राइफल का इस्तेमाल 22 साल टायलर जॉनसन ने कथित तौर पर दक्षिणपंथी समूह टर्निंग पॉइंट यूएसए (TPUSA) के 31 वर्षीय संस्थापक किर्क के गले पर गोली मारने के लिए किया था.
एक साल में बिके 1.7 करोड़ हथियार
अमेरिका में तेज होती राजनीतिक बयानबाजी और बढ़ते गन कल्चर से इतर साल 2023 में करीब 1.67 करोड़ फायरआर्म्स बेचे गए. ये हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल मर्डर में उनके इस्तेमाल की संभावना को बढ़ाता है. किर्क की हत्या 15 जुलाई को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हत्या की कोशिश की याद दिलाती है. एक रूफटॉप शूटर थॉमस मैथ्यू क्रुक्स ने ट्रंप पर गोली चलाई, जिन्होंने अपने सीक्रेट सर्विस टीम की जवाबी कार्रवाई से पहले ही नीचे झुककर खुद को बचा लिया.
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सितंबर में एके-47 के जैसी राइफल से लैस एक और संभावित हत्यारे ने फ्लोरिडा में ट्रंप का पीछा किया. दोनों ही मामलों में हमलावर को मिलिट्री-ग्रेड असॉल्ट राइफलों खरीदने में कोई परेशानी नहीं हुई, क्योंकि अमेरिका हथियारों से भरा पड़ा है. ज्यादातर अमेरिकी एक घंटे से भी कम समय में बंदूक खरीद सकते हैं. अमेरिका में हर 100 लोगों के लिए 120 बंदूकें हैं.
संविधान में हथियार रखने का अधिकार
जॉर्ज वाशिंगटन ने मिलिशिया को अपने हथियारों और गोला-बारूद से लैस करके एक सेना तैयार की. उन्होंने 1783 में आठ साल के सशस्त्र संघर्ष के बाद अंग्रेजों को खदेड़ दिया और 1791 में अपने संविधान के दूसरे संशोधन में हथियार रखने के अधिकार को शामिल किया. इसके तहत अमेरिकियों को मिलिशिया बनाने का अधिकार दिया गया, जिसका बाद में हथियार रखने के अधिकार के तौर पर बखान किया गया. यह दूसरा संशोधन अमेरिका में बंदूक से जुड़ी सभी बहसों की बुनियाद है और इसके राजनीतिक ताने-बाने में गहराई से समाया हुआ है.

एंटी-गन कल्चर एक्टिविस्ट बंदूक मालिकों को यह समझाने में नाकाम रहे हैं कि दूसरा संविधान संशोधन सिंगल शॉट बंदूकों के दौर से शुरू हुआ था, न कि एडवांस मिलिट्री असॉल्ट राइफलों से, जिनका इस्तेमाल अमेरिका में अनगिनत सामूहिक हत्याओं में किया जाता है. जहां हर दिन 100 से ज़्यादा लोग बंदूक की हिंसा से मारे जाते हैं. इनमें से कुछ सामूहिक गोलीबारी में मारे जाते हैं, जहां तथाकथित शूटर्स बेकाबू हो जाते हैं. विडंबना यह है कि किर्क भी गन-कल्चर के बड़े समर्थक थे.
गन कल्चर के समर्थक थे किर्क
ट्रंप के करीबी किर्क ने 2023 के एक कार्यक्रम में कहा, 'दुर्भाग्य से, हर साल बंदूक से होने वाली कुछ मौतों की कीमत चुकाना सही है, ताकि हम भगवान से मिले अपने अधिकारों की रक्षा के लिए दूसरा संशोधन लागू कर सकें. यह एक समझदारी भरा कदम है.' यहां तक कि ट्रंप, जिनपर दो बार जानलेवा हमले की कोशिश हो चुकी है. उन्होंने भी फरवरी में एक कार्यकारी आदेश जारी कर फेडरल गन कंट्रोल उपायों को खत्म कर दिया और दूसरे संशोधन के पक्ष में अपनी बात रखी.
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इसके ठीक विपरीत, भारत में बंदूक का स्वामित्व कोई मुद्दा ही नहीं है, जो दुनिया में नागरिकों के पास बंदूक रखने के मामले में 120वें स्थान पर है. कड़े गन कंट्रोल लॉ के कारण नागरिकों के लिए बंदूक रखना मुश्किल हो जाता है. इसका संबंध औपनिवेशिक काल के एक कानून से है, भारतीय शस्त्र अधिनियम, 1878, जो भारत में बंदूक के स्वामित्व को नियंत्रित करता था.
ब्रिटिश काल से भारत में सख्त कानून
यह एक्ट अंग्रेजों की ओर से 1857 के महान स्वतंत्रता संग्राम के लगभग दो दशक बाद लागू किया गया था, जो एक सशस्त्र विद्रोह था और भारत में ब्रिटिश शासन के लिए सबसे गंभीर खतरा था. अंग्रेज चुप रहकर सशस्त्र मूल निवासियों को उन्हें दूसरे उपनिवेश से खदेड़ते हुए नहीं देखना चाहते थे, इसलिए उन्होंने यह अधिनियम लागू किया.
महात्मा गांधी ने भी इस एक्ट का विरोध किया था. प्रथम विश्व युद्ध के लिए 1918 में जारी एक भर्ती पत्र में, उन्होंने इसे एक 'काला कानून' कहा था क्योंकि इसने 'पूरे राष्ट्र को हथियारों से वंचित कर दिया था.' एक सदी से भी ज़्यादा समय बाद इस एक्ट की मूल भावना आज भी जीवित है. 2016 के शस्त्र नियमों के अनुसार, लाइसेंसिंग अधिकारियों को 'यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि आवेदक की संपत्ति की सुरक्षा या स्पोर्ट्स जैसी कोई वास्तविक ज़रूरत है,' न कि सिर्फ़ बंदूक रखने की इच्छा. इसका दूसरा पहलू यह है कि भारत में राजनीतिक मतभेदों के हिंसक गोलीबारी में बदलने का ख़तरा बहुत कम है.