ईरान में एक लड़की को यूनिवर्सिटी कैंपस में अपने कपड़े उतारने के बाद गिरफ्तार किया गया है. आरोप है कि छात्रा को हिजाब ना पहनने पर यूनिवर्सिटी की मॉरलिटी पुलिस ने गेट पर ना सिर्फ रोक लिया था, बल्कि हिंसक भी हो गए थे और गलत बर्ताव किया था. घटना के विरोध में लड़की ने अपने कपड़े उतार दिए और इनरवियर में कैंपस में टहलने लगी थी. इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.
कुछ मीडिया रिपोर्टस में यह भी कहा जा रहा है कि लड़की ने देश के सख्त इस्लामी ड्रेस कोड के विरोध में अपने कपड़े उतारे. बाद में पुलिस ने उसे अरेस्ट कर लिया. यूनिवर्सिटी प्रशासन का कहना है कि छात्रा मानसिक रूप से ठीक नहीं है. वहीं, मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी ने छात्रा की तुरंत रिहाई की मांग की है. हालांकि, ईरान जैसा आज है, वैसा 70 के दशक तक नहीं था. तब ईरान, यूरोपीय देशों की तरह खुले विचारों वाला देश था. यहां जाने वाले लोग अक्सर महिलाओं की आजादी की तारीफ करते नहीं थकते थे. लेकिन, 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद यहां से राजा को जान बचाकर भागना पड़ा. उसके बाद ये देश पूरी तरह बदल गया. महिलाओं की आजादी खत्म हो गई और ईरान कट्टर इस्लामिक मुल्क बन गया, जहां हिजाब ना पहनने पर भी सजा दे दी जाती है.
कट्टरता से नियमों का पालन करवाता है ईरान
दरअसल, ईरान, शरिया कानून पर चलने वाला एक ऐसा मुल्क है, जो धार्मिक मान्यताओं का पालन पूरी कट्टरता से करता और करवाता है. कपड़ों से लेकर इबादत तक से जुड़े ऐसे कई कड़े नियम हैं जो लोगों के सार्वजनिक जीवन को नियंत्रित करते हैं. इन नियमों पर ईरानी सरकार की पैनी नजर रहती है और इनका उल्लंघन करने पर सख्त सजा दी जाती है. हालांकि, शनिवार के घटनाक्रम ने हर किसी को चौंका दिया. इस वीडियो ने दो साल पहले ईरान में हुई हिजाब क्रांति की भी यादें ताजा कर दीं.
ईरान के इतिहास को देखा जाए तो रजा शाह पहलवी के दौर में वहां का समाज काफी खुला हुआ था. उनके बेटे रजा पहलवी के शासन में भी ईरान पश्चिमी मुल्कों से भी ज्यादा 'खुला' था. यूनिवर्सिटी में महिलाओं की संख्या बढ़ने लगी थी. उनकी ड्रेस, बालों और अपने हिसाब से पहनावे पर कोई रोकटोक नहीं थी. महिलाओं को सड़कों पर भी पश्चिमी शैली के कपड़े पहने देखा जा सकता था. लेकिन 1979 की इस्लामिक क्रांति में रजा पहलवी को अपदस्थ कर दिया. उसके बाद ईरान में इस्लामिक कट्टरता बढ़ती गई. जानिए पूरी कहानी...
कभी पश्चिमी मुल्कों से भी ज्यादा 'खुला' था ईरान
70 के दशक में ईरान में पश्चिमी सभ्यता का बोलबाला था. ईरान की इस बोल्डनेस की वजह यहां के शासक रजा शाह पहलवी थे. 1936 में पहलवी वंश के रजा शाह ने हिजाब और बुर्का पर बैन लगा दिया था. महिलाओं की आजादी के लिहाज से ये बहुत क्रांतिकारी कदम था. बाद में उनके बेटे रजा पहलवी ईरान के शासक बने. लेकिन 1949 में नया संविधान लागू हो गया. इस बीच, 1952 में मोहम्मद मोसद्दिक प्रधानमंत्री बने और सालभर बाद 1953 में उनका तख्तापलट हो गया. उसके बाद रजा पहलवी ही देश के सर्वेसर्वा बन गए. रजा पहलवी के दौर में भी हिजाब और बुर्के पर बैन लगा रहा, लेकिन फिर पुरुषों ने महिलाओं का घर से निकलना बंद कर दिया. उन्होंने इस नियम में थोड़ी छूट जरूर दी, लेकिन वो पश्चिमी सभ्यता के पक्षधर थे. इन सबका नतीजा ये हुआ कि रजा पहलवी को जनता अमेरिका की 'कठपुतली' कहने लगी. उस समय उनके विरोधी थे- अयातुल्ला रुहोल्ला खामेनेई. 1964 में पहलवी ने खामेनेई को देश निकाला दे दिया था.

फिर ईरान में हुई इस्लामी क्रांति...
साल 1963 में ईरान के शासक रजा पहलवी ने श्वेत क्रांति का ऐलान किया. आर्थिक और सामाजिक सुधार के लिहाज से ये बड़ा ऐलान था. लेकिन ईरान को पश्चिमी मूल्यों की तरफ ले जा रहा था, इसलिए जनता ने इसका विरोध शुरू कर दिया. 1973 में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें गिरने लगीं. इससे ईरान की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी. 1978 का सितंबर आते-आते जनता का गुस्सा फूट पड़ा. पहलवी के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन होने लगे थे. इनकी अगुवाई मौलवियों ने की. कहा जाता है कि इन मौलवियों को फ्रांस में बैठे अयातुल्ला रुहोल्ला खामेनेई से निर्देश मिल रहे थे. कुछ ही महीनों में हालात बद से बदतर होने लगे. आखिरकार 16 जनवरी 1979 को रजा पहलवी अपने परिवार के साथ अमेरिका चले गए. जाते-जाते उन्होंने विपक्षी नेता शापोर बख्तियार को अंतरिम प्रधानमंत्री बना दिया.
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ईरान में खामेनेई की वापसी
शापोर बख्तियार ने खामेनेई को ईरान लौटने की इजाजत दे दी. लेकिन एक शर्त भी रखी- खामेनेई वापस भी आ जाएंगे तो भी बख्तियार ही प्रधानमंत्री रहेंगे. फरवरी 1979 में खामेनेई ईरान वापस आ गए. बख्तियार के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी प्रदर्शन थमने का नाम नहीं ले रहे थे. इस बीच, खामेनेई ने मेहदी बाजारगान को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया. अब देश में दो-दो प्रधानमंत्री हो गए थे. धीरे-धीरे सरकार कमजोर होती जा रही थी. सेना में भी फूट पड़ गई और सेना से लेकर जनता तक... हर कोई खामेनेई के आगे झुकने लगा.
रातोरात बदला ईरान
1979 के मार्च में ईरान में जनमत संग्रह हुआ. इसमें 98 फीसदी से ज्यादा लोगों ने ईरान को इस्लामिक रिपब्लिक बनाने के पक्ष में वोट दिया. उसके बाद ईरान का नाम 'इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान' हो गया. खामेनेई के हाथों में सत्ता आते ही नए संविधान पर काम शुरू हो गया. नया संविधान इस्लाम और शरिया पर आधारित था. विपक्ष ने इसका विरोध किया, लेकिन खामेनेई ने साफ कहा कि नई सरकार को '100% इस्लाम' पर आधारित कानून के तहत काम करना चाहिए. लाख विरोध के बावजूद 1979 के आखिर में नए संविधान को अपना लिया गया.
नए संविधान के बाद लागू हो गया शरिया कानून
नए संविधान के बाद ईरान में शरिया कानून लागू हो गया. कई सारी पाबंदियां लगा दी गईं. महिलाओं की आजादी छीन ली गई. अब उन्हें हिजाब और बुर्का पहनना जरूरी था. 1995 में वहां ऐसा कानून बनाया गया, जिसके तहत अफसरों को 60 साल तक की औरतों को बिना हिजाब निकलने पर जेल में डालने का अधिकार है. इतना ही नहीं, ईरान में हिजाब ना पहनने पर 74 कोड़े मारने से लेकर 16 साल की जेल तक की सजा हो सकती है. इसने ईरान को पूरी तरह से बदल दिया. यानी इस्लामिक क्रांति ने ईरान को पूरी तरह बदल दिया, इसने 'खुले' ईरान को 'बंद' कर दिया.
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फिर कभी वापस नहीं लौटा राजा का परिवार
ईरानी समाज को आधुनिकता की ओर ले जाने वाले शाह का लोग इसलिए विरोध करने लगे थे क्योंकि उन्हें लगता था देश में कुछ ज्यादा ही भोगविलास और पश्चिमीकरण हो रहा है. खुद महिलाओं ने देश में शाह को गद्दी छोड़ने के लिए आंदोलन में हिस्सा लिया. सड़कों पर उतरीं. लेकिन अब इस देश के बहुत से लोग उन्हें याद करते हैं. मोहम्मद रजा पहलवी की मौत इस्लामिक क्रांति के कुछ ही समय बाद 27 जुलाई 1980 को 60 साल की उम्र में हो गई थी. क्रांति के समय ही उन्होंने परिवार सहित देश छोड़ दिया था. इसके बाद उनका परिवार कभी वापस ईरान नहीं लौटा.