सालों से चल रहे गृहयुद्ध में यमन लगभग तबाह हो चुका है जहां के लोग दुनिया के सबसे विनाशकारी मानवीय संकट में से एक का सामना कर रहे हैं. यमन की राजधानी सना में जहां ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों का कब्जा है वहीं, अदन शहर से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त यमन की सरकार चलती है. सऊदी अरब हूतियों के खिलाफ अदन स्थित सरकार का समर्थन करता आया है और दोनों पक्षों के बीच लड़ाई में उसने यमनी सरकार की भारी मदद की है.
2023 में सऊदी-ईरान के बीच शांति समझौते से यमन में अपेक्षाकृत शांति तो है लेकिन कोई समझौता नहीं हो पाया है. अब सऊदी अरब ने ऐसी घोषणा की है जिससे ईरान समर्थित हूतियों को भारी झटका लगा है.
सऊदी प्रेस एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, सऊदी अरब यमन को 36.8 करोड़ डॉलर यानी 32अरब 45 करोड़ 88 लाख से अधिक रुपये देने जा रहे हैं. एजेंसी ने बताया कि यह पैसा यमन के विकास और पुनर्निर्माण के लिए सऊदी प्रोग्राम के तहत दिया जा रहा है.
पैकेज में बजट सहायता, पेट्रोलियम डेरिवेटिव के लिए फंडिंग और अदन में प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान हॉस्पिटल के लिए पैसा शामिल है. सऊदी अरब ने कहा कि यह मदद यमन की अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और यमन सरकार के रिफॉर्म प्रोग्राम्स को समर्थन देने के लिए है.
सऊदी की एजेंसी ने कहा कि यह सहायता किंग सलमान के निर्देशन में और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की सिफारिशों के आधार पर दी गई है.
सऊदी और ईरान के बीच दोस्ती-दुश्मनी का किस्सा हमेशा से चलते आया है. शिया मुस्लिम बहुल ईरान और सुन्नी मुस्लिम बहुल सऊदी अरब के रिश्तों में धर्म एक बड़ा मुद्दा है और इसी के आधार पर दोनों देशों के रिश्तें भी तय होते रहे हैं.
2016 में सऊदी अरब ने एक शिया धर्मगुरु को फांसी दे दी थी जिसके विरोध में ईरान में भारी विरोध-प्रदर्शन हुए थे और प्रदर्शनकारियों ने सऊदी दूतावास को आग के हवाले कर दिया था. इसके बाद सऊदी ने ईरान से अपने राजनयिक संबंध तोड़ लिए थे और ईरान से लोगों के हज पर मक्का-मदीना आने पर भी पाबंदी लगा दी गई थी.
हालांकि, 2023 में चीन के सहयोग से ईरान और सऊदी अरब ने सामान्यीकरण समझौता किया और धीरे-धीरे दोनों दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं.
ईरान समर्थित हूतियों ने भी अब सऊदी के तेल ठिकानों पर हवाई हमले लगभग बंद कर दिए हैं. लेकिन अब सऊदी के अदन स्थित सरकार को मदद से हूतियों को करारा झटका लगा है. इससे ईरान पर भी दबाव बढ़ेगा.
सऊदी सरकार की हालिया मदद से अदन में यमन की सरकार को आर्थिक मजबूती मिलेगी और पब्लिक सेक्टर के वेतन का भुगतान करने में मदद मिलेगी. इससे सरकार के कंट्रोल वाले इलाकों में स्कूल, अस्पताल और मार्केट ठीक से काम करेगा. लोगों को राहत सामग्री और ईंधन उपलब्ध कराया जाएगा जिससे उनमें सरकार के प्रति संतोष की भावना जागेगी.
वहीं, हूती, जो यमन के अधिकांश हिस्सों पर अपना कब्जा रखते हैं, के नियंत्रण वाले इलाकों में लोग भूख, बेरोजगारी और महंगाई से परेशान हैं.
2014 में हूती विद्रोहियों ने तत्कालीन यमनी राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह को राजधानी सना से बेदखल कर दिया था और खुद राजधानी के शासन बन बैठे थे. हालांकि, यमन की सरकार ने अदन आदि इलाकों में अपनी पकड़ बनाए रखी. सालेह के सत्ता से जाने के बाद से ही यमन गृहयुद्ध की चपेट में है जिससे वहां की करेंसी कमजोर हो गई है और महंगाई आसमान छू रही है.
मार्च 2015 में सऊदी के नेतृत्व में अरब देशों ने एक सैन्य गठबंधन बनाया और यमन में निर्वासित सरकार को बहाल करने के लिए हूतियों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. हालांकि, हूतियों ने हार नहीं मानी और सऊदी के सैन्य गठबंधन को आखिरकार अपने युद्ध की तीव्रता कम करनी पड़ी. यमन में गृहयुद्ध खत्म करने के लिए कोई समझौता तो नहीं हुआ है, लेकिन वहां फिलहाल थोड़ी शांति है. इजरायल के हमलों को छोड़ दें तो, वहां कोई अन्य पक्ष ज्यादा हिंसक नहीं हो रहा है.
यमन में अब भी दो सरकारें चलती हैं: एक राजधानी सना और आसपास के इलाकों में हूतियों की सरकार और अदन में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त यमन की सरकार.