1976 में ढाका विश्वविद्यालय की मस्जिद के पास विद्रोही बंगाली कवि काजी नजरुल इस्लाम को दफनाए जाने के लगभग 50 साल बाद, अब इंकलाब मंच के छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी को सुपुर्द-ए-खाक किया गया है. एक सुनियोजित साजिश के तहत हादी की हत्या कर दी गई थी.
हादी को शनिवार को सुपुर्द-ए-खाक करने के लिए ढाका में जनसैलाब उमड़ पड़ा. लाखों लोग सड़कों पर उतर आए, आसपास के कस्बों और शहरों से हजारों लोग राजधानी ढाका पहुंचे और हादी के जनाजे के लिए पूरा शहर भर गया.
हादी को अब ‘बिद्रोही कवि’ काजी नजरुल इस्लाम के बगल में सुपुर्द-ए-खाक किया गया है. लेकिन बांग्लादेश में बहुत से लोग इस समानता को स्वाभाविक मान रहे हैं. जिस तरह नजरुल की कविताएं हादी के लिए हथियार बन गई थीं, जैसा कि वायरल रील्स और शॉर्ट्स में देखा जा रहा है. ठीक उसी तरह शेख हसीना के विरोधी इस कट्टर नेता हादी को ‘न्यू बांग्लादेश’ के छात्र नेताओं ने एक ‘बिप्लोबी’ यानी क्रांतिकारी के रूप में पेश करना शुरू कर दिया है.
हादी अपनी रैलियों में काजी नजरुल इस्लाम की पंक्तियों को पढ़ा करता था. वह इन पंक्तियों को दोहराते हुए कहता था कि मैं हूं तूफान, मैं हूं बवंडर. मैं हूं अदम्य रुद्र, बेचैन गर्जना. मेरी हंसी से आकाश फटता है, मेरे स्पर्श से आसमान तैरने लगता है. मैं बाढ़ बनकर आता हूं, लहरों को सीने से लगाता हूं. मैं पेड़ उखाड़ देता हूं, छतें तोड़ देता हूं, भय के सारे खेल खेलता हूं. मैं हूं आग उगलता बवंडर, मौत का नृत्य पानी में तैरता है. लोग कांपते हैं, शहर कांपते हैं, मेरे पैरों में धूल गिरती है.
अब ऐसा लगता है कि शेख हसीना विरोधी विद्रोह के बाद हादी को नजरुल का स्वयंभू उत्तराधिकारी बना दिया गया है. शरीफ उस्मान हादी, शेख हसीना विरोधी राजनीतिक मंच ‘इंकलाब मंच’ के प्रवक्ता थे. यह समूह जुलाई-अगस्त 2024 के आंदोलन के दौरान उभरा था, जिसने शेख हसीना की सत्ता को उखाड़ फेंका. 32 वर्षीय हादी उस आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक थे.
हादी ‘बांग्लादेश में भारत के प्रभाव’ और शेख हसीना की अवामी लीग के मुखर आलोचक थे और अक्सर भारत विरोधी बयान देते थे. वह ढाका-8 सीट से फरवरी 2026 के आम चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने वाले थे. वह 12 दिसंबर को बैटरी से चलने वाले रिक्शा से जा रहे थे कि तभी अज्ञात हमलावरों ने उन्हें गोली मार दी. बाद में सिंगापुर के एक अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई.
यह हमला ऐसे समय में हुआ, जब एक दिन बाद ही बांग्लादेश के चुनाव आयोग ने घोषणा की थी कि शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद पहला आम चुनाव 12 फरवरी 2026 को होगा. कथित शूटर फैसल करीम ने वारदात से एक रात पहले अपनी गर्लफ्रेंड से कहा था कि “कुछ ऐसा होने वाला है, जो पूरे बांग्लादेश को हिला देगा.”
हादी की मौत के बाद ढाका की सड़कों पर सैकड़ों लोग उतर आए. इस भीड़ में इस्लामपंथी तत्वों की घुसपैठ हो गई और राजधानी हिंसा व अराजकता की गिरफ्त में आ गई. सांस्कृतिक केंद्रों में तोड़फोड़ हुई, शेख मुजीबुर रहमान के घर पर फिर हमला हुआ.
ढाका समेत कई शहरों में भारतीय राजनयिक मिशनों को निशाना बनाया गया और भारत विरोधी नारे गूंजते रहे. यहां तक कि द डेली स्टार और प्रोथोम आलो जैसे मीडिया संस्थानों पर भी आगजनी हुई, जबकि वे हसीना और मोहम्मद यूनुस सरकार दोनों के आलोचक रहे हैं.

यह सब ऐसे वक्त में हुआ, जब राष्ट्रीय चुनाव में सिर्फ कुछ महीने बचे हैं और इस्लामपंथी समर्थन वाली मोहम्मद यूनुस अंतरिम सरकार सत्ता में है. शनिवार को ढाका में शेख हसीना, अवामी लीग और छात्र लीग विरोधी नारे गूंजते रहे, जबकि सुरक्षा बल पूरी तरह सतर्क थे. अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने खुद हादी की नमाज़-ए-जनाज़ा में शिरकत की.
इस दौरान यूनुस ने कहा कि प्रिय उस्मान हादी, हम आपको विदा करने नहीं आए हैं. आप हमारे दिलों में हैं और जब तक बांग्लादेश रहेगा, आप हर बांग्लादेशी के दिल में रहेंगे. यह भावुक भाषण उन्होंने संसद भवन में जनाज़े से पहले दिया. इस बीच सुरक्षा व्यवस्था बेहद कड़ी कर दी गई. पुलिस, रैपिड एक्शन बटालियन (RAB), अंसार और सेना को जनाज़े के आसपास तैनात किया गया.
चैनल 24 के मुताबिक, ढाका के शाहबाग सर्कल पर जुटी भीड़ ने हादी के हत्यारों को सज़ा देने की मांग की और नारे लगाए, “दिल्ली नहीं, ढाका. ढाका-ढाका.” यह नारा हाल के दिनों में बांग्लादेश के सभी भारत विरोधी प्रदर्शनों में गूंजता रहा है. इंकलाब मंच ने शाहबाग सर्कल का नाम बदलकर ‘शहीद हादी’ रखने की मांग की है.
काज़ी नजरुल इस्लाम के बगल में हादी की कब्र, बहस तेज
शनिवार को ढाका विश्वविद्यालय परिसर में काज़ी नजरुल इस्लाम की कब्र के बगल में हादी के अंतिम संस्कार की तैयारियां शुरू हुईं. शुक्रवार आधी रात के बाद विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर सैफुद्दीन अहमद ने पुष्टि की कि हादी को नजरुल की कब्र के पास ही दफनाया जाएगा.
उन्होंने बताया कि यह फैसला शुक्रवार रात 10:30 बजे हुई ढाका विश्वविद्यालय सिंडिकेट की आपात ऑनलाइन बैठक में लिया गया. ढाका ट्रिब्यून के अनुसार, यह फैसला कैबिनेट डिवीजन और ढाका यूनिवर्सिटी सेंट्रल स्टूडेंट्स यूनियन (DUCSU) की ओर से मिले दो आवेदनों के बाद लिया गया. स्थल का निरीक्षण कर खाली जगहों का नक्शा तैयार किया गया और फिर अंतिम मंजूरी दी गई.
सितंबर से DUCSU पर जमात-ए-इस्लामी के छात्र संगठन इस्लामी छात्र शिबिर का नियंत्रण है. कैबिनेट डिवीजन के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस का कार्यकारी कार्यालय है. द डेली स्टार के मुताबिक, इंकलाब मंच ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि हादी के परिवार ने उन्हें काजी नजरुल इस्लाम के बगल में दफनाने का फैसला किया था. इस फैसले को लेकर तीखी बहस छिड़ गई है.
अवामी लीग समर्थक मोस्तोफा अमीन ने एक्स पर लिखा कि काज़ी नजरुल इस्लाम सहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक थे. उस्मान हादी कट्टरता और पहचान-आधारित नफरत का प्रतिनिधित्व करता था। ऐसे में उसे नजरुल के बगल में दफनाना पूरी तरह राजनीतिक फैसला है.

वहीं चटगांव के पूर्व पत्रकार ए रहमान मितु ने लिखा, यह अल्लाह की एक विशेष नेमत है… विद्रोही कवि काज़ी नजरुल इस्लाम और आज के शहीद उस्मान हादी की कब्रें एक ही धुरी पर होना हम सबकी इच्छा होनी चाहिए. सेक्युलर बांग्ला सबरेडिट पर एक यूज़र ने लिखा कि यह शर्मनाक है कि इस गुंडे को महान काज़ी नजरुल इस्लाम के साथ दफनाया गया.
शरीफ उस्मान हादी कौन थे?
शरीफ उस्मान हादी का जन्म 1993 में झालोकाठी जिले में हुआ था. ढाका आकर उन्होंने विश्वविद्यालय राजनीति में कदम रखा. ढाका विश्वविद्यालय ही उनके राजनीतिक जीवन की प्रयोगशाला बना. उनके जनाज़े में उमड़ी भारी भीड़ इस बात का संकेत है कि हसीना के बाद के बांग्लादेश में उनकी लोकप्रियता कितनी बड़ी थी. यह वह दौर है, जहां राजनीति तय कर रही है कि किसे नायक बनाया जाएगा और किसकी विरासत पर सवाल उठेंगे.
1976 में जिस मस्जिद के पास काज़ी नजरुल इस्लाम को दफनाया गया था, वही स्थान अब हादी की अंतिम विश्राम स्थली बन गया है. हादी एक उग्र, शेख हसीना विरोधी नेता थे. मंच पर उनकी मौजूदगी बिजली जैसी होती थी. जुलाई-अगस्त 2024 के आंदोलन के दौरान उन्होंने नजरुल की ‘बिद्रोही’ कविता पढ़कर युवाओं में जोश भरा. अब, जब वह उसी कवि के बगल में दफनाए गए हैं, बांग्लादेश में यह बहस तेज हो गई है कि क्या हादी को राष्ट्रीय कवि के समान दर्जा देने की कोशिश की जा रही है.