अगस्त 1990 में, जब इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन अपनी सत्ता के चरम पर था, तब उसने एक बड़ी गलती कर दी. उसने कुवैत पर कब्जा कर लिया. इससे ठीक दो साल पहले, 1988 में, उसने ईरान के साथ आठ साल लंबी जंग खत्म की थी. उस युद्ध में पश्चिमी देशों ने सद्दाम का समर्थन किया था, क्योंकि वे अयातुल्ला खुमैनी की ओर से पश्चिम समर्थक शाह को सत्ता से हटाकर शिया क्रांति शुरू करने से चिंतित थे.
जब सद्दाम ने किया था कुवैत पर कब्जा
हालांकि जब सद्दाम ने तेल से भरपूर देश कुवैत पर कब्जा किया, तो उसे दुनिया भर में कोई समर्थन नहीं मिला. छह महीने के भीतर ही अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 'ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म' शुरू कर दिया, जिसने सद्दाम को कुवैत से बाहर कर दिया. सद्दाम की सैन्य ताकत तबाह हो गई. टॉमहॉक मिसाइलों ने उसके अत्याधुनिक फ्रेंच निर्मित एयर डिफेंस सिस्टम को भेद दिया. अमेरिकी लड़ाकू विमान उसकी वायुसीमा में बमबारी कर रहे थे.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के आदेशों का पालन करते हुए अमेरिका ने उस समय बगदाद में सत्ता परिवर्तन नहीं किया. लेकिन 12 साल बाद, 2003 में, अमेरिका ने झूठे आरोपों के आधार पर- कि सद्दाम बायोलॉजिकल हथियार बना रहा है- फिर से युद्ध छेड़ा और सद्दाम का शासन पूरी तरह खत्म कर दिया. 2006 में उसे फांसी दे दी गई.
ईरान पर मंडरा रहे सद्दाम जैसे खतरे
आज, लगभग दो दशक बाद, ईरान पर मंडरा रहे खतरे उतने ही गंभीर हैं जितने कभी सद्दाम पर थे. इजरायल की ओर से चलाए जा रहे 'ऑपरेशन राइजिंग लायन' में ईरानी जनरलों, परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या, परमाणु संयंत्रों की तबाही और गैस क्षेत्रों पर हमले किए गए हैं. ये हमले इजरायली खुफिया जानकारी, तकनीकी कौशल और भारी सैन्य ताकत से किए जा रहे हैं, जिसने ईरान को इराक युद्ध के बाद की सबसे भीषण सैन्य चोट दी है.
1000 किमी दूर से एक-दूसरे पर कर रहे हमले
ईरान ने भी जवाब दिया है और इजरायल पर ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइलों की बौछार कर रहा है. यह दुनिया का शायद सबसे अजीब युद्ध है- दो दुश्मन, जिनकी सीमाएं आपस में नहीं मिलतीं, वे 1000 किलोमीटर दूर से एक-दूसरे पर मिसाइलें और ड्रोन बरसा रहे हैं.
इजरायल का कहना है कि उसने प्री-एम्पटिव स्ट्राइक इसलिए की क्योंकि IAEA ने 31 मई को चेतावनी दी थी कि ईरान परमाणु हथियार हासिल करने के बेहद करीब है. ईरान का परमाणु हथियार हासिल करना आकार में मणिपुर जितने बड़े इजरायल के लिए अस्तित्व का संकट होगा.
इजरायल ने हमेशा अपने विरोधियों को परमाणु हथियार प्राप्त करने से रोकने के लिए पहले हमला किया है. 1981 में इजरायली विमानों ने इराक के ओसिराक रिएक्टर को तबाह कर दिया था और 2007 में सीरिया के परमाणु संयंत्र को भी नष्ट कर दिया था.
ईरानी शासन का भविष्य क्या होगा?
आज ईरान वहीं खड़ा है जहां सद्दाम हुसैन पहले खाड़ी युद्ध (1991) के शुरुआती दौर में था. उसका एयर डिफेंस सिस्टम तबाह हो चुका है, 70 के दशक की पुरानी वायुसेना बर्बाद हो चुकी है और वह प्रॉक्सी नेटवर्क, जो उसने इजरायल को घेरने के लिए बनाया था- हिज्बुल्लाह (सीरिया), हमास (गाजा), हूती (यमन), कातिब हिज्बुल्लाह (इराक)- बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके हैं.
ईरान के पास अब सिर्फ ड्रोन और मिसाइलें ही बची हैं, जिनका इस्तेमाल वह अपनी वायुसेना और नौसेना की कमी को पूरा करने के लिए कर रहा है. ईरान इजरायल पर सैकड़ों बैलिस्टिक मिसाइलें और ड्रोन दाग रहा है, जो जनवरी 1991 में सद्दाम हुसैन की ओर से किए गए हमलों से कहीं ज्यादा हैं, जिनका उद्देश्य यहूदी मुल्क को 1991 के खाड़ी युद्ध में घसीटना था. लेकिन सद्दाम इसमें असफल रहा और जब 2003 में उसका शासन खत्म हुआ तो इसने ईरान की स्थिति और मजबूत कर दी.
हमास के हमले से बदल गई पूरी कहानी
अगले एक दशक में ईरान ने शिया प्रभाव का दायरा काफी बढ़ा लिया. सीरिया से लेकर पाकिस्तान तक एक शिया प्रभाव क्षेत्र तैयार हुआ, जिसमें एक भी सुन्नी अरब शासित देश नहीं आता. ईरान ने अपनी सुरक्षा के लिए प्रॉक्सियों को एक 'माइन्डफील्ड' की तरह तैयार किया. लेकिन यह रणनीति 7 अक्टूबर 2023 को हमास की ओर से इजरायल पर हुए बर्बर हमलों के बाद उलट गई. इजरायल ने हमास को पूरी तरह तबाह कर दिया.
जब ईरान ने अपने प्रॉक्सीज सक्रिय किए, तो इजरायल ने पलटवार करते हुए, हिज्बुल्ला के शीर्ष नेतृत्व को मार गिराया, हमास के सैन्य नेतृत्व को खत्म कर दिया, हूती विद्रोहियों की हमले की क्षमता को नष्ट कर दिया. दिसंबर 2024 में सीरियाई तानाशाह बशर अल असद के शासन का भी पतन हो गया और अब सीरिया पर HTS (पूर्व अल-कायदा गुट) का नियंत्रण है.
अब ईरान पूरी तरह असुरक्षित है, और इजरायली लड़ाकू विमान मेडिटेरेनियन से लेकर अरब सागर तक उड़ान भर रहे हैं. 2003 में जब सद्दाम का पतन हुआ, तब बुश प्रशासन ने ईरान पर हमला करने की योजना बनाई थी, लेकिन इराक पर कब्जे में उलझने के कारण वह योजना अधूरी रह गई.
2025 में अमेरिका का रुख अस्पष्ट है. अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा कि अमेरिका इजरायल के हमलों में शामिल नहीं है. 12 जून को राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि अमेरिका अब भी कूटनीतिक समाधान चाहता है. लेकिन 12 घंटे बाद, उन्होंने यह भी कहा कि 'इजरायल अमेरिकी हथियारों से ईरान को तबाह कर रहा है और यह हालात और बिगड़ेंगे.'
इजरायल का असली लक्ष्य क्या है?
तेल अवीव में सुरक्षा विश्लेषकों से बातचीत में यही संकेत मिला कि इजरायल का असली लक्ष्य 'ईरान में सत्ता परिवर्तन' है. लेकिन हवाई हमलों से सत्ता परिवर्तन कराना मुश्किल होता है. शासन अक्सर हवाई हमलों के बावजूद टिके रहते हैं, जैसा कि फिलहाल तेहरान कर रहा है.
अयातुल्ला खामेनेई के लिए एकमात्र राहत की बात यह है कि आज भी कोई ऐसा देश नहीं है जो ईरान में जमीनी हमला कर सके, जैसा 2003 में इराक के साथ हुआ था. शायद ईरान भी 1991 में सद्दाम की तरह ही बच निकलने की कोशिश करेगा. उसकी सैन्य ताकत बर्बाद हो चुकी है लेकिन आने वाले वर्षों में वह खुद को फिर से खड़ा करने की उम्मीद कर रहा है. यही धुंधली सी उम्मीद है, जिस पर ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई अभी तक टिके हुए हैं.