कैलिफोर्निया स्थित डेथ वैली का नाम अक्सर अपने टेंपरेचर के लिए चर्चा में रहता है. लाल रंग की चट्टानों और खड़े पहाड़ों से बनी इस जगह की खासियत है कि सूरज से आई तपिश यहां जमा रहती है और मौसम ठंडा नहीं हो पाता. वैसे रात में वैली का तापमान भी कम हो जाता है. वहीं इथियोपिया के डेनेकिल डिप्रेशन में पूरे सालभर तापमान एक जैसा बना रहता है- बेहद-बेहद गर्म. दिसंबर-जनवरी में जब दुनिया के ज्यादातर हिस्से ठंडे हो जाते हैं, तब भी यहां टेंपरेचर औसतन 35 डिग्री सेल्सियस बना रहता है.
डेनेकिल डिप्रेशन में गर्मी के कई कारण है
एक वजह है धरती के नीचे की हलचल. यहां नीचे तीन टेक्टॉनिक प्लेटें है, जो काफी तेजी से एक-दूसरे से दूर जा रही हैं. इस अंदरुनी मूवमेंट का असर ऊपर भी दिखता है. इस पूरे क्षेत्र में कई एक्टिव ज्वालामुखी हैं, जिनसे लावा और धुआं निकलता रहता है. साल के किसी भी मौसम में जाएं, यहां की हवा में आग की धधक और जलने की गंध मिलती है. यही वजह है कि बाहरी दुनिया के लोग, यहां तक कि खुद को खतरों के खिलाड़ी बताने वाले भी यहां जाने से बचते हैं.

वॉल्केनो बना हुआ है सक्रिय
यहां अर्टा एले नाम का ज्वालामुखी है, जो लगभग सवा 6 सौ मीटर ऊंचा है. इसके शिखर पर दुनिया की पांच में से दो लावा झीलें बनी हुई हैं. साल 1906 में यहां पहली लावा झील बनी, ये पानी नहीं बल्कि खौलते हुए लावा से बनी है. हैरतअंगेज तौर पर ये लावा ठंडा नहीं पड़ता, बल्कि लगातार खदबदा रहा है. टेक्टॉनिक प्लेट्स को ही वैज्ञानिक इसकी जड़ में मानते हैं. इसके अलावा कई छोटे-बड़े ज्वालामुखी हैं, जो सक्रिय हैं.
नदी बन जाती है नमक
धरती की भीतर लगी हुई आग की वजह से ऊपर की सतह भी बाकी दुनिया से अलग है. यहां अलग तरह की चट्टानें और मिट्टी, जो भुरभुरी है. देखने पर ये कोई दूसरा ग्रह लगता है. वैसे तो डेनेकिल में पानी के कई सोते और एक नदी भी है, जिसे अवाश नदी कहते हैं, लेकिन ये भी अलग है. नदी लंबी होने के बावजूद कभी समुद्र तक नहीं पहुंच पाती, बल्कि कुछ-कुछ महीनों में सूख जाती है और नीचे नमक इकट्ठा हो जाता है. ज्वालामुखी और गर्म पानी के सोतों की वजह से ये नदी पूरी तरह से एसिडिट हो चुकी. हालांकि यही चीज वहां रहने वालों के काम आती है. वे नमक जमा करके पास के बाजारों में बेचने जाते हैं. इसे यहां वाइट गोल्ड कहा जाता है क्योंकि इसके अलावा सोर्स ऑफ इनकम दूसरा कुछ नहीं.

समुद्र तल से नीचे स्थित है
एक और बात डेनेकिल को सबसे गर्म बनाती है, वो है समुद्र तल से इसकी पोजिशन. तल से लगभग सवा सौ मीटर नीचे स्थित होना इसे और ज्यादा गर्म बना देता है. यहां सालभर में बारिश भी सौ से 2 सौ मिलीमीटर तक ही होती है. बता दें कि हमारे देश में औसत वर्षा लगभग डेढ़ सौ सेंटीमीटर है, वहीं उत्तर-पूर्वी भारत और पश्चिमी तट पर सालाना लगभग 400 सेंटीमीटर से भी ज्यादा बारिश होती है. तो अनुमान लगा सकते हैं कि मिलीमीटर में वर्षा कितनी कम होगी.
अफार ट्राइब का बसेरा
इतनी भीषण गर्मी के बाद भी यहां अफार जनजाति के लोग रहते हैं. घुमंतु समुदाय के इन लोगों की आबादी वैसे तो लगभग 30 लाख है, लेकिन सालभर डेनेकिल में रहने की बजाए वे आसपास घूमते रहते हैं. खासकर गर्मियों के मौसम में पड़ोसी इलाकों में चले जाते हैं. नमक और केमल फार्मिंग इनके रोजगार का बड़ा जरिया है. इसके अलावा यहां किसी तरह की खेती-किसानी नहीं होती.

विषम हालातों में भी कुछ जीव जीवित
डेनेकिल में कुछ खास तरह की वनस्पतियां और कीटाणु भी पल रहे हैं. वैज्ञानिक भाषा में इन्हें एक्सट्रीमोफाइल कहा जाता है, यानी वो चीजें, जो बेहद विषम हालातों में भी जिंदा रह सकें. इनकी स्टडी से साइंटिस्ट्स ये भी समझना चाह रहे हैं कि क्या आगे चलकर एक्सट्रीम हालातों में दूसरे ग्रहों पर जीवन संभव हो सकेगा.
क्या यहीं से हुई थी मानव सभ्यता की शुरुआत!
कई एंथ्रोपोलॉजिस्ट मानते हैं कि दुनिया में इंसानी विकास इसी जगह से शुरू हुआ होगा. साल 1974 में यहां एक कंकाल मिला, जो ऑस्ट्रेलोपिथेकस नस्ल का था. ये इंसान के सबसे पुराने पूर्वज माने जाते हैं. इसके बाद भी यहां से कई प्राचीन नस्लों के अवशेष यहां पर मिल चुके, जिससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि शायद डेनेकिल में ही इंसानों का विकास होना शुरू हुआ होगा. वैसे अब तक इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है.