scorecardresearch
 

अफगानिस्तानः नई सरकार का खाका तैयार, तालिबान के मिलिट्री गुट पर हावी है सियासी गुट

तालिबान की 'टॉप लीडरशिप काउंसिल' की बैठक में नई सरकार का खाका तो तैयार हो चुका है, लेकिन इस सरकार में किन-किन गुटों के कौन-कौन से लोग शामिल होंगे, इसे लेकर असमंजस है. हालांकि तालिबान ने ये तो साफ़ कर दिया है कि सरकार तालिबान के सुप्रीम लीडर हैबतुल्ला अखुंदज़ादा की अगुवाई में बनेगी, जबकि मुल्ला बरादर सरकार का सबसे बड़ा चेहरा होगा.

Advertisement
X
तालिबान ने एक परेड के जरिए अपनी ताकत दिखाने की कोशिश भी की है
तालिबान ने एक परेड के जरिए अपनी ताकत दिखाने की कोशिश भी की है
स्टोरी हाइलाइट्स
  • तालिबान ने कराई थी अपने मानव बमों की परेड
  • अब सरकार बनाने की तैयारी जोरों पर है
  • हक्कानी गुट बन सकता है परेशानी का सबब

तालिबान की तरफ से नई सरकार के सरदार का नाम तय कर लिया गया है. नई सरकार का मुखिया मुल्ला अब्दुल गनी बरादर होगा. बस कुछ वक्त पहले तक की बात थी जब तालिबान के लड़ाके अपना मुंह छुपाकर रखते थे. लेकिन अब काबुल में तालिबान की सरकार बनने जा रही है. लिहाजा तालिबानी लड़ाकों ने अपने चेहरे से नकाब उतार फेंका है. तालिबान सरकार बनाने की तैयारी और अपनी ताकत दिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहता है.

अब तालिबान बाकायदा अपने मानव बमों की परेड करा रहा है. काबुल में सरकार बनाने से पहले तालिबान ने 40 मिनट की एक फिल्म बनाई है. इस फिल्म को पूरे अफगानिस्तान में दिखाया जा रहा है. इस फिल्म में तालिबान ने अपनी सैन्य ताकतों के साथ-साथ अपने मानव बम की भी नुमाइश की है.

तालिबान की 'टॉप लीडरशिप काउंसिल' की बैठक में नई सरकार का खाका तो तैयार हो चुका है, लेकिन इस सरकार में किन-किन गुटों के कौन-कौन से लोग शामिल होंगे, इसे लेकर असमंजस है. हालांकि तालिबान ने ये तो साफ़ कर दिया है कि सरकार तालिबान के सुप्रीम लीडर हैबतुल्ला अखुंदज़ादा की अगुवाई में बनेगी, जबकि मुल्ला बरादर सरकार का सबसे बड़ा चेहरा होगा. चलिए सरकार तो बन भी जाएगी, लेकिन तालिबान के लिए देश चलाना इतना आसान नहीं होगा. कहने का मतलब ये कि नई सरकार के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है, जबकि सरकार के हाथ खाली हैं. 

Advertisement

15 अगस्त को काबुल पर क़ब्ज़ा करने के बाद से 15 दिनों से ज़्यादा का वक़्त गुज़र चुका है और देश में फ़िलहाल कोई ठोस शासन व्यवस्था नहीं है. वहां बैंकों के बाहर लंबी कतार लगी हुई है और लोग रोज़मर्रा के ज़रूरी सामान की क़िल्लत से परेशान हैं. तालिबान की सरकार अब अफ़ग़ानिस्तान में फैली इस अव्यवस्था को जल्द से जल्द दूर करना चाहेगी. फिलहाल तालिबान के सामने दो तरह की चुनौतियां हैं. पहली चुनौती सरकार बनाने के दौरान अलग-अलग लोगों और गुटों को तरजीह देने को लेकर है, जबकि दूसरी चुनौती सरकार के गठन के बाद पेश आने वाली है.

इसे भी पढ़ें-- अफगानिस्तानः 19 साल 10 महीने 25 दिन बाद लौटी अमेरिकी फौज, अब तालिबान के सामने है ये चुनौती

नई सरकार में तालिबान के राजनीतिक धड़े यानी दोहा गुट की चलती है, या फिर अफ़गानिस्तान में जंग लड़नेवाले मिलिट्री गुट की, ये देखनेवाली बात होगी. तालिबान के अंदर भी गुटबाज़ी कम नहीं है. अब तक तालिबान एकजुट थे. सभी अमेरिका को अफ़ग़ानिस्तान से बाहर खदेड़ने के लिए लड़ रहे थे. लेकिन अब उन्होंने लक्ष्य हासिल कर लिया है, तो उनकी आपसी गुटबाज़ी के उभर कर सामने आने का ख़तरा पैदा हो गया है.

हिब्तुल्लाह अख़ुंदज़ादा अभी तालिबान में नंबर वन है, लेकिन उसकी लीडरशिप कैपेसिटी के बारे में लोगों को ज़्यादा नहीं पता है. अगर अखुंदज़ादा को ही नई सरकार के सरपरस्त की ज़िम्मेदारी मिलती है तो इसका मतलब है कि तालिबान के मिलिट्री गुट के मुकाबले सियासी गुट की ज़्यादा चली. 

Advertisement

उधर, तालिबान के मिलिट्री कमांडर हैं सिराजुद्दीन हक़्क़ानी, जिसका अपना अलग ही दबदबा है. हक्कानी गुट की आदत रही है कि वो अलग ही चलना पसंद करता है. ऐसे में उसे नई सरकार में क्या जिम्मेदारी मिलती है, ये भी देखनेवाली बात होगी. सरकार चलाने के लिए तालिबान को हर फील्ड के काबिल लोगों की ज़रूरत होगी. फिरा चाहे वो नौकरशाह हों, एक्सपर्ट्स, डॉक्टर्स, क़ानून के जानकार या फिर कुछ और. देखनेवाली बात ये होगी कि तालिबान ऐसे तर्जुबेकार लोग कहां से लाता है. फिलहाल तालिबान पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई, पिछली सरकार में बड़े ओहदे पर रहे डॉक्टर अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह, पूर्व प्रधानमंत्री गुलबुद्दीन हिकमतयार समेत कई लोगों के संपर्क में है.

 

Advertisement
Advertisement