चीन से मीलों दूर तमाम देशों में कोरोना वायरस अपने पैर जमा चुका है लेकिन चीन के बिल्कुल नजदीक स्थित ताइवान ने इसे अपने घर में फैलने नहीं दिया. हैरानी की बात ये है कि चीन में करीब 850,000 ताइवानीज रहते हैं और काम करते हैं, ऐसे में ताइवान चीन के बाद कोरोना से सबसे बुरी तरह प्रभावित हो सकता था लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
ईरान, अमेरिका समेत कई देशों में कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से फैल रहा है. भारत में भी अब तक कोरोना वायरस के मामलों की संख्या 40 पार कर चुकी है. लेकिन कोरोना वायरस से जिस तरह से ताइवान ने मुकाबला किया, पूरी दुनिया उससे सबक सीख सकती है.
ऑस्ट्रेलिया के बराबर आबादी वाले इस द्वीप में सिर्फ 45 केस ही सामने आए हैं और कोरोना वायरस से यहां एक मौत की पुष्टि हुई है जबकि चीन में ही संक्रमण के 80,000 मामले सामने आ चुके हैं और चीन के नजदीक दक्षिण कोरिया, जापान, इटली और ईरान में वायरस बुरी तरह फैल चुका है.
कोरोना वायरस के दस्तक देने का वक्त चीन के लिए और तबाही वाला साबित हुआ क्योंकि इसी वक्त चीन में नए साल की छुट्टियां होती हैं और चीनी पर्यटकों की आवाजाही बढ़ जाती है. दूसरी तरफ, चीन ने वायरस संक्रमण के मामले बढ़ने तक कोई कदम नहीं उठाया.
जब वायरस को तमाम देश समझ भी नहीं पा रहे थे और इसके संक्रमण की दर भी साफ
नहीं हुई थी, तब से ही ताइवान ने इससे लड़ने की तैयारियां शुरू कर दी थीं. विश्व
स्वास्थ्य संगठन से संकेत मिलने का इंतजार करने के बजाय ताइवान ने अतीत में मिले अनुभवों पर भरोसा जताया.
ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी में जनस्वास्थ्य और मानव विज्ञान के प्रोफेसर चुनहेई ची ने अलजजीरा को दिए इंटरव्यू में बताया, ताइवान खतरनाक वायरस SARS से पहले भी बुरी तरह प्रभावित हो चुका है और उसने इससे कड़ा सबक लिया. इस बार कोरोना वायरस की एंट्री पर ताइवान पूरी तैयारी के साथ सामने आया.
सार्स की महामारी के बाद ताइवान ने अगले साल ही इस तरह की परिस्थितियों से निपटने के लिए एक सेंट्रल कमांड सेंटर बना दिया था. कोरोना वायरस से निपटने में एशिया के बाकी देशों के मुकाबले ताइवान ने इस तरह से बढ़त हासिल कर ली.
कमांड सेंट्रल की वजह से मेडिकल अधिकारियों को डेटा इकठ्ठा करने,
संसाधनों के वितरण, संभावित केसों और उनसे संपर्क की सूची बनाना आसान हो
गया. वायरस संक्रमित मरीजों को तुरंत आइसोलेट किया गया.
सार्स के अनुभव से सीखते हुए ताइवान ने वुहान से आने वाले हर यात्री की स्वास्थ्य जांच शुरू कर दी थी. उस वक्त ये भी साफ नहीं हुआ था कि यह वायरस इंसानों से इंसानों में फैलता है या नहीं.
सुपर अलर्ट-
फरवरी के पहले सप्ताह से ही ताइवान ने सर्जिकल मास्क वितरित करना शुरू कर दिया और चीन से यात्रा कर रहे लोगों की एंट्री पर पाबंदी लगा दी. वहीं मकाउ और हॉन्ग कॉन्ग से आने वाले लोगों को 14 दिनों तक एकांत में रखा गया.
तमाम सार्वजनिक इमारतों में हैंड सैनिटाइजर और फीवर चेक अनिवार्य कर दिया
गया. यही नहीं, ताइवान सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल व अन्य एजेंसियों ने
कोरोना के नए मामलों और उनके द्वारा यात्रा की गईं जगहों की जानकारी को
लेकर नियमित तौर पर लोगों को एसएमएस अलर्ट भेजे.
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर पॉलिसी ऐंड प्रिवेंशन के डायरेक्टर जैसन वांग ने कहा, ताइवान की सरकार अपनी कार्रवाई में सुपर अलर्ट थी. जब यह साफ हो गया कि कोरोना एक बड़ी समस्या बनने जा रहा है तो वे और भी कदम उठाने लगे. वे पूरी तरह से तैयार थे.
विश्लेषकों का कहना है कि ताइवान की ही तरह सिंगापुर भी एक मिसाल है. एशिया
का व्यापारिक केंद्र होने के बावजूद सिंगापुर में सिर्फ 100 मामले ही
सामने आए. शुरुआती जागरुता और सतर्कता की वजह से कोरोना वायरस यहां बुरी
तरह नहीं फैला.
सिंगापुर ने भी जनवरी महीने में ही चीन के यात्रियों के लिए अपने बॉर्डर को बंद करने से पहले हेल्थ चेक अनिवार्य कर दिए थे. इसके अलावा, संक्रमण संदिग्धों को 14 दिनों तक एकांत में रहने के आदेश का पालन ना करने वालों पर भारी जुर्माना भी लगा दिया था. सिंगापुर ने स्कूलों और यूनिवर्सिटीज को भी बंद कर दिया था.
जहां ताइवान और सिंगापुर के नेताओं ने कोरोना वायरस को रोकने के लिए कदम
उठाने में तेजी दिखाई, वहीं कोरोना से बुरी तरह जूझ रहे देशों ने या तो
ऐक्शन लेने में सुस्ती दिखाई या फिर संभावित खतरों के बावजूद संक्रमित
लोगों को आने दिया. यहां तक कि अमेरिका ने भी कोरोना वायरस से निपटने में
देर कर दी.