अमेरिका और रूस ने संकल्प लिया है कि वे अफगानिस्तान में 'इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान' को फिर से स्थापित नहीं होने देंगे. दोनों देश मिलकर सुनिश्चित करेंगे कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय अफगानिस्तान में तालिबान के इस्लामिक राज्य की वापसी को ना तो मान्यता दे और ना ही किसी तरह का सहयोग करे.
बता दें कि कतर की राजधानी दोहा में 29 फरवरी को हुए शांति समझौते में अफगानिस्तान से 14 महीनों के भीतर अमेरिकी सेना की वापसी निर्धारित की गई है. इस समझौते के तहत, काबुल में एक नई प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित करने के लिए अफगान-तालिबान वार्ता की बात भी कही गई थी. हालांकि, विश्लेषकों को आशंका है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज की वापसी के बाद तालिबान अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार से सत्ता छीन सकता है.
अमेरिका और रूस द्वारा जारी किए गए साझा बयान में अफगान वार्ता के जरिए नई अफगान सरकार और राजनीतिक व्यवस्था में भूमिका अदा करने में तालिबान की प्रतिबद्धता का स्वागत किया. हालांकि, बयान में ये भी कहा गया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और संयुक्त राष्ट्र 'इस्लामिक अमीराती ऑफ अफगानिस्तान' को मान्यता नहीं देता है इसलिए कोई भी देश अफगानिस्तान में 'इस्लामिक अमीराती शासन' को किसी भी तरह का समर्थन नहीं देगा.
दरअसल, शनिवार को तालिबान ने भी एक बयान जारी किया जिसमें उसने काबुल में अमेरिकी फौजों के हमले के बाद बेदखल हुई इस्लामिक सरकार की वापसी को अपना कर्तव्य बताया था.
तालिबान ने कहा है कि अमेरिका के साथ हुए उसके शांति समझौते के बाद भी यह बात अपनी जगह कायम है कि उसके सर्वोच्च नेता ही अफगानिस्तान के 'वैध शासक' हैं. उनके लिए धर्म ने यह अनिवार्य कर दिया है कि विदेशी कब्जाधारी फौजों की वापसी के बाद वह देश में इस्लामी हुकूमत कायम करें. 'द न्यूज' की रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान के इस बयान के बाद अमेरिका के साथ हुए शांति समझौते को लेकर अनिश्चितता और बढ़ गई है. एक अमेरिकी थिंक टैंक में भी कहा गया है कि तालिबान शांति समझौते पर अमल करने से पीछे हट सकता है.
तालिबान ने शनिवार को अपने बयान में कहा कि उसके 'वैध अमीर' मुल्ला हैबतुल्ला अखुंदजादा की मौजूदगी में कोई और अफगानिस्तान का शासक नहीं हो सकता. संगठन ने कहा, "विदेशी कब्जे के खिलाफ 19 साल लंबा जिहाद वैध अमीर की कमान के तहत किया गया. कब्जे को खत्म करने के समझौते का अर्थ यह नहीं है कि उनका (हैबतुल्ला अखुंदजादा का) शासन खत्म हो गया है."
तालिबान ने अपने बयान में भविष्य के लिए कई गंभीर संकेत भी दिए. उन्होंने अपने बयान में कहा है कि विदेशी फौजों की वापसी ही उनकी बगावत का लक्ष्य नहीं है बल्कि 'यह विदेशी हमलावरों का समर्थन करने वाले भ्रष्ट (अफगान) तत्वों को भावी सरकार का हिस्सा नहीं बनने देने के लिए भी है. जब तक देश पर विदेशी कब्जा जड़ से नहीं मिट जाता और इस्लामी सरकार की स्थापना नहीं हो जाती, मुजाहिदीन (विद्रोही) अपना सशस्त्र जिहाद जारी रखेंगे.'
तालिबान अफगानिस्तान की मौजूद व इससे पहले की सरकारों को 'अमेरिकी पिट्ठू' मानते हैं. इनसे पहले तालिबान को अमेरिकी हमले के बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा था.
वॉशिंगटन और मास्को ने महिला, युवाओं और अल्पसंख्यकों समेत सभी अफगानियों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की शर्त पर भावी अफगान सरकार को हर तरह से राजनीतिक और आर्थिक मदद मुहैया कराने का भी वादा किया है.