कोलकाता के रीजेंट पार्क इलाके में रविवार को 59 साल के दिलीप कुमार साहा ने आत्महत्या कर ली. उनका शव उनके घर के कमरे में पंखे से लटका मिला. दिलीप एक निजी स्कूल में गैर-शिक्षण कर्मचारी के रूप में काम करते थे.
घटना के बाद उनके परिवार ने दावा किया कि साहा बीते कुछ दिनों से बेहद तनाव में थे और उन्हें डर था कि यदि एनआरसी (National Register of Citizens) लागू हुआ तो उन्हें बांग्लादेश भेज दिया जाएगा.
बांग्लादेश से आए शख्स ने की खुदकुशी
परिजनों के मुताबिक, साहा 1972 में बांग्लादेश के नवाबगंज से भारत आए थे और तभी से कोलकाता में रह रहे थे. उन्होंने भारत में कई वैध दस्तावेज, जैसे वोटर आईडी, भी बनवाए थे, लेकिन इसके बावजूद वह लगातार इस डर में जी रहे थे कि उन्हें देश से बाहर निकाल दिया जाएगा. पत्नी और बेटे के अनुसार, वह हाल के दिनों में चुप और अवसादग्रस्त दिख रहे थे.
पुलिस ने एआरसी के डर को नकारा
हालांकि, पुलिस ने इस दावे को नकारते हुए कहा कि मौके से जो सुसाइड नोट बरामद हुआ है, उसमें एनआरसी का कोई उल्लेख नहीं है. पुलिस का कहना है कि सुसाइड नोट में साहा ने लिखा है कि वह अपने फैसले के लिए किसी को दोषी नहीं मानते हैं.
इस पूरे मामले को लेकर राजनीतिक पारा भी चढ़ गया है. तृणमूल कांग्रेस (TMC) के नेताओं ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि एनआरसी का डर आम नागरिकों को मानसिक रूप से तोड़ रहा है. वहीं, बीजेपी ने पलटवार करते हुए कहा कि यह केवल एक पारिवारिक मामला है और इसका राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए.
मौत पर राजनीति शुरू
टीएमसी नेता और मंत्री अरूप विश्वास ने कहा, 'एनआरसी के नाम पर लोगों में जो डर फैलाया जा रहा है, यह घटना उसका परिणाम है. यह केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों की देन है.'
फिलहाल पुलिस पूरे मामले की जांच कर रही है और पोस्टमार्टम रिपोर्ट और सुसाइड नोट की जांच के आधार पर आगे की कानूनी कार्रवाई की जाएगी. इस घटना ने एक बार फिर एनआरसी को लेकर देश में चल रही बहस को तेज कर दिया है.