बेहमई कांड में 43 साल बाद फैसला आने के बाद भी न्याय नहीं हुआ, ऐसा कहना है फूलन देवी की हत्या करने वाले शेर सिंह राणा का. बेहमई कांड में इतनी देर से फैसला आने पर उन्होंने सरकार से मामले में जांच की मांग की है. उनका कहना है की सांसद रहते हुए फूलन देवी ने कोर्ट से कागजों को गायब करवा दिया था, इसलिए बेहमई कांड में इतनी देरी से फैसला आया. साथ ही उन्होंने सरकार से बेहमई कांड में मारे गए 20 लोगों के परिवार वालों को 10-10 लाख रुपए मुआवजा देने की भी मांग की.
अपने समय की कुख्यात डकैट रहीं फूलन देवी ने 14 फरवरी 1981 को अपने गैंग के साथ कानपुर देहात जिले के बेहमई गांव में दिन दहाड़े 20 लोगों को लाइन में खड़ा करके गोली मार दी थी. इस घटना में 6 लोग गोली लगने से घायल भी हुए थे. मामले में फूलन देवी समेत 36 लोगों को आरोपी बनाया गया था. उसी मामले में 43 साल बाद कानपुर देहात की एंटी डकैती कोर्ट ने एक आरोपी श्याम बाबू को अजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए उस पर 50 हजार का जुर्माना लगाया.
कोर्ट ने मामले के एक अन्य आरोपी विश्वनाथ को पुलिस द्वारा उसके खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य पेश नहीं करने पर दोषमुक्त कर दिया. कोर्ट से फैसला आने के बाद फूलन देवी की हत्या करने वाले शेर सिंह राणा ने कहा की फैसला तो आया पर न्याय नही हुआ. उन्होंने यह भी कहा कि मरने वालों के साथ अगर देश की जनता, भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार न्याय करना चाहती है तो राम अवतार, तुलसीराम, नजीर खान के साथ मरने वाले 17 राजपूतों के परिवारों को 10-10 लाख रुपए मुआवजा दिया जाए.
शेर सिंह राणा ने कहा, 'कुछ लोग कहते हैं कि मरने वाले भी डाकू थे. लेकिन बता देना चाहता हूं कि अगर मरने वाले भी डाकू थे और दो डाकुओं के गैंग के बीच गोलीबारी में बेहमई कांड हुआ तो उसमें से सिर्फ एक ही तरफ के डाकुओं की मौत कैसे हो सकती है? जबकि दूसरे तरफ के लोगों को एक खरोंच तक नहीं आई थी. जिन 20 लोगों की मौत हुई थी वे सभी सभ्य समाज के लोग थे. इसलिए उनके परिजनों को 10 10 लाख रुपए का मुआवजा मिलना चाहिए. इसकी जांच भी की जाए की फैसला आने में इतना समय क्यों लग गया'.
कौन है शेर सिंह राणा?
17 मई 1976 को उत्तराखंड के रुड़की में जन्मे शेर सिंह राणा ने 25 जुलाई 2001 को सांसद रहीं फूलन देवी की दिल्ली स्तिथ सरकारी आवास में गोली मारकर हत्या कर दी थी. उसके दो दिन बाद शेर सिंह ने देहरादून पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. उन्होंने कहा था कि बेहमई गांव में मारे गए ठाकुरों का बदला लेने के लिए उसने फूलन देवी की हत्या की. शेर सिंह राणा 17 फरवरी 2004 को तिहाड़ जेल से फरार हो गए. 2006 में उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया. अगस्त 2014 में, 10 साल की सुनवाई के बाद, राणा को फूलन देवी की हत्या के लिए आजीवन कारावास और ₹100,000 के जुर्माने की सजा सुनाई गई.
साल 2016 में शेर सिंह राणा को जमानत मिल गई. 2019 में उन्होंने अपनी पार्टी राष्ट्रवादी जनलोक पार्टी का गठन किया. बेहमई कांड के बाद चर्चा में आईं फूलन देवी ने चंबल के बिहड़ो से संसद तक का सफर तय किया था. वह कभी गांव की सामान्य लड़की हुआ करती थी, जिसे केवल अपने परिवार से मतलब था. फूलन देवी के साथ हुई गैंपरेप की घटना ने उसे आम लड़की से डाकू बनने को विवश कर दिया और उसने बंदूक उठा लिया. 1996 में फूलन देवी उत्तर प्रदेश की भदोही लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर सांसद बनीं.