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कभी BJP की धुर विरोधी थी यह पार्टी, अब बनेगी NDA का हिस्सा? 'पसमांदा वोट बैंक' पर रखती है पकड़

डॉ. अयूब पूर्वांचल में पसमांदा मुसलमानों के बड़े प्रतिनिधि के तौर पर जाने जाते हैं. पीस पार्टी के गठन के बाद 2012 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में चार सीटें जीतकर अयूब ने मुस्लिम समुदाय पर अपनी पकड़ का एहसास करा दिया था. लेकिन गठबंधन के दौर में भी किसी बड़ी पार्टी का समर्थन नहीं मिलने के कारण पीस पार्टी एक तरह से अलग-थलग रह गई और अब एक बार फिर से पूर्वांचल बेल्ट में अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए समर्थन जुटा रही है.

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पीस पार्टी ने कहा है कि उसने 2024 के आम चुनावों के लिए एनडीए में शामिल होने का विकल्प खुला रहा है.
पीस पार्टी ने कहा है कि उसने 2024 के आम चुनावों के लिए एनडीए में शामिल होने का विकल्प खुला रहा है.

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए यूपी में जमीनी तैयारी शुरू होने के साथ ही अब राजनीतिक दलों के बीच समीकरण भी बदल रहे हैं. पिछले दो दशक के दौरान हुए 3 लोकसभा और 3 विधानसभा चुनावों में बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले पीस पार्टी के अध्यक्ष डॉ. मोहम्मद अयूब का राजनीतिक चश्मा अब बदल गया है. अब उन्हें बीजेपी जैसी पार्टियों के साथ भी चुनाव लड़ने में कोई झिझक नहीं है. उन्होंने एनडीए के साथ गठबंधन का रास्ता खुला होने की बात कही है.

करीब डेढ़ दशक के राजनीतिक सफर के बाद अब उन्हें लगने लगा है कि सपा, बसपा और कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय को सिर्फ वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया है. उनका मानना ​​है कि ये तीनों पार्टियां चुनाव में मुसलमानों का वोट लेती हैं, लेकिन जब सत्ता में आती हैं तो इस समाज को न तो अपना साझेदार बनाती हैं और न ही उनकी परवाह करती हैं. मोहम्मद अयूब ने कहा कि अगर उन्हें मौका मिला तो वह राज्य में एनडीए के साथ गठबंधन करने से नहीं हिचकिचाएंगे जिसने मुस्लिमों के साथ समान व्यवहार किया है.

पसमांदा सिर्फ वोट बैंक बनकर नहीं रहना चाहता

खास बात ये है कि डॉ. अयूब पूर्वांचल में पसमांदा मुसलमानों के बड़े प्रतिनिधि के तौर पर जाने जाते हैं. पीस पार्टी के गठन के बाद 2012 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में चार सीटें जीतकर अयूब ने मुस्लिम समुदाय पर अपनी पकड़ का एहसास करा दिया था. लेकिन गठबंधन के दौर में भी किसी बड़ी पार्टी का समर्थन नहीं मिलने के कारण पीस पार्टी एक तरह से अलग-थलग रह गई और अब एक बार फिर से पूर्वांचल बेल्ट में अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए समर्थन जुटा रही है. अब डॉ. अयूब जिस वजह से बीजेपी की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, वह अपनी खोई हुई जमीन को मजबूत करने के मकसद से है.

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एनडीए के साथ गठबंधन को लेकर उनके हालिया बयान को इस बात से जोड़कर देखा जा रहा है कि यूपी में पसमांदा मुस्लिम समुदाय जागरूक हो गया है और सिर्फ वोट बैंक बनकर नहीं रहना चाहता. उन्होंने कहा कि अब तक यह समाज सिर्फ धर्मनिरपेक्षता के नाम पर बीजेपी को हराने के लिए वोट करता था, लेकिन अब उसे समझ आने लगा है कि यह विचारधारा समाज को नुकसान पहुंचा रही है. उधर, बीजेपी ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे योगी और मोदी सरकार की नीतियों का असर बताया है, जो दूसरी पार्टियों को प्रभावित कर रहा है.

हर वर्ग को साथ लेकर चल रही है एनडीए सरकार

बीजेपी प्रवक्ता हीरो बाजपेयी ने कहा कि केंद्र और राज्य की हर योजना का लाभ और कल्याणकारी नीति ने समाज के हर वर्ग को अपने साथ समान व्यवहार का एहसास दिलाया है और पसमांदा मुसलमानों को एनडीए सरकार के दौरान ही उनका हक मिला है. उन्होंने कहा, 'जहां तक ​​गठबंधन का सवाल है तो यह फैसला शीर्ष नेतृत्व ही करेगा, लेकिन पीस पार्टी चीफ की ओर से इस तरह की सराहना एनडीए की वास्तविकता है जो हर वर्ग को साथ लेकर चल रही है.' गौरतलब है कि पीस पार्टी का गठन फरवरी 2008 में हुआ था. 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 21 सीटों पर चुनाव लड़ा और एक फीसदी वोट हासिल किया.

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क्या एनडीए पीस पार्टी को गठबंधन में शामिल करेगा?

इसके बाद 2012 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में पीस पार्टी ने 208 सीटों पर चुनाव लड़ा और चार सीटों पर जीत हासिल की. अब पार्टी की नजर 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में गठबंधन पर है और इस बार वह एनडीए से परहेज नहीं कर रही है, जो राज्य में पीस पार्टी के लिए हमेशा से वैचारिक प्रतिद्वंद्वी रहा है. अब, यह देखना भी दिलचस्प होगा कि क्या एनडीए पीस पार्टी को गठबंधन में शामिल करेगा, क्योंकि उसने पिछले किसी भी चुनाव में मुस्लिम नेतृत्व वाली पार्टी के साथ कोई गठबंधन नहीं किया है. राजग ने राज्य और आम चुनावों में पहले किसी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट भी नहीं दिया है. उत्तर प्रदेश की राजनीति की गतिशीलता बदलती रहती है और भाजपा के पसमांदा कार्ड के जोर ने भी राज्य के राजनीतिक गलियारे में चर्चा को हवा दे दी है.
 

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