यूपी की राजधानी लखनऊ में किसान पथ पर बीते दिनों हुए स्लीपर बस हादसे में पांच लोगों की जलकर मौत हो गई थी. इस मामले ने अब परिवहन व्यवस्था की बड़ी लापरवाही को उजागर कर दिया है. हादसे के बाद हुई जांच में सामने आया है कि जिस बस में आग लगी, उसे बिना भौतिक सत्यापन (फिजिकल वेरिफिकेशन) के ही फिटनेस सर्टिफिकेट जारी कर दिया गया था. यह प्रमाणपत्र फोटो के आधार पर दिया गया था, न तो बस का सीट लेआउट देखा गया और न ही इमरजेंसी गेट की पुष्टि की गई.
जानकारी के अनुसार, बस हादसे की जांच के बाद गोरखपुर के तत्कालीन संभागीय निरीक्षक (RI) राघव कुमार कुशवाहा को सस्पेंड कर दिया गया है. वह अब बरेली में तैनात हैं और उनके खिलाफ विभागीय जांच भी शुरू हो गई है. इस पूरे मामले की जांच में सामने आया है कि फोटो के आधार पर बिना सीट का लेआउट देखे, बिना इमरजेंसी गेट के ही बस को फिटनेस सर्टिफिकेट दे दिया गया.
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घटना की जांच में जो सबसे चौंकाने वाली बात सामने आई, वह यह है कि बस में इमरजेंसी गेट की जगह आरामदायक सीटें लगाई गई थीं, जिससे आग लगने के बाद कई यात्री निकल ही नहीं पाए. आग ने कुछ ही मिनटों में पूरी बस को अपनी चपेट में ले लिया. जिन लोगों की मौत हुई, वे संभवतः नींद में ही थे और उन्हें भागने का मौका तक नहीं मिला.
बस चालक रामशंकर यादव और परिचालक नीरज की पहचान हो चुकी है, लेकिन घटना के बाद से दोनों फरार हैं. उनके मोबाइल फोन बंद हैं और पुलिस टीमें बिहार के बेगूसराय और दिल्ली में उनकी तलाश कर रही हैं. इस 'फिटनेस फ्रॉड' ने सिस्टम की खामियों को उजागर कर दिया है. सरकार ने इस पूरे मामले में घटना के लिए जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई की बात कही है.