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मंदिर में पूजा-मजार पर चादर... उन्नाव में ऐतिहासिक तकिया मेला की शुरुआत, 400 साल से चली आ रही परंपरा

उन्नाव जिले के तकिया पाटन गांव में 400 साल पुराने ऐतिहासिक 'तकिया मेले' की शुरुआत हो गई है. यह मेला हिंदू-मुस्लिम सद्भावना की अनोखी मिसाल है क्योंकि यहां मजार और मंदिर साथ बने हैं. डीएम, एसपी और विधायक ने मंदिर में पूजा और मजार पर चादर चढ़ाकर एक महीने चलने वाले इस मेले का शुभारंभ किया.

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उन्नाव में तकिया मेला की शुरुआत (Photo- ITG)
उन्नाव में तकिया मेला की शुरुआत (Photo- ITG)

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में ऐतिहासिक 'तकिया मेले' की शुरुआत हो गई है. तकिया पाटन गांव में यह मेला करीब 400 साल से लगता आ रहा है. इसमें सांप्रदायिक सद्भाव की अनोखी मिसाल देखने को मिलती है. मेला इसलिए विख्यात है क्योंकि यहां मजार और मंदिर साथ-साथ बने हैं. दूर-दराज से लोग इस मेले को देखने पहुंचते हैं, जिसे जिला प्रशासन पूजा-अर्चना और चादरपोशी के बाद शुरू करता है.

 मंदिर में पूजा, मजार में चादर, यूं शुरू हुआ मेला 

आपको बता दें कि उन्नाव जिले के बिहार थाना क्षेत्र के तकिया पाटन गांव में 400 साल से लगातार तकिया मेला लगता चला आ रहा है. डीएम गौरांग राठी, एसपी जेपी सिंह और विधायक आशुतोष शुक्ला ने एक साथ मिलकर इस मेले की शुरुआत की है. 

चूंकि यहां मजार और मंदिर साथ बने हैं, इसलिए इसे हिंदू-मुस्लिम सद्भावना की मिसाल के रूप में जाना जाता है. मेले की शुरुआत जिला प्रशासन द्वारा सहस्त्र लिंगेश्वर शिव मंदिर में पूजा अर्चना और बाबा मोहब्बत शाह की मजार पर चादर चढ़ाने के बाद की गई. यह मेला एक महीने तक चलेगा, और प्रशासन सुरक्षा और स्वच्छता के पुख्ता इंतजाम कर रहा है.

हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक

तकिया मेला, हिंदू-मुस्लिम एकता का एक बड़ा प्रतीक है. इसकी शुरुआत की परंपरा भी खास है. डीएम, एसपी और विधायक ने एक साथ मिलकर पहले सहस्त्र लिंगेश्वर शिव मंदिर में पूजा अर्चना की. इसके तुरंत बाद, मंदिर के बगल में बनी बाबा मोहब्बत शाह की मजार पर चादर चढ़ाई गई. सदियों से यह परंपरा चली आ रही है. स्थानीय लोग बताते हैं कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय भी इस गांव में दोनों समुदायों ने मिलकर मेले का आयोजन किया था और इस घटना का यहां कोई असर नहीं हुआ था.

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बिना भेदभाव के लगती हैं दुकानें

तकिया पाटन गांव में हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग एक साथ मिलकर रहते हैं. बिना किसी भेदभाव के दोनों समुदायों के लोग एक साथ मेले में दुकानें लगाते हैं. बताया जाता है कि आज तक कभी भी इस गांव में दोनों समुदायों के बीच किसी बात को लेकर कोई विवाद नहीं हुआ. अगर कभी कोई नोकझोंक होती भी है, तो दोनों समुदाय के बड़े-बुजुर्ग बैठकर आपस में ही वाद-विवाद निपटा लेते हैं. यह परंपरा सदियों से गंगा-जमुनी तहज़ीब को जीवंत रखती है.

15 दिन तक चलेगा मेला 

जिलाधिकारी गौरांग राठी ने बताया कि यह परंपरा 400 साल से अधिक समय से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है. उन्होंने कहा कि यह उन्नाव की गंगा-जमुनी तहज़ीब, सामाजिक और सांप्रदायिक सौहार्द का बड़ा प्रतीक है. उन्होंने आश्वस्त किया कि लगभग 15 दिन तक चलने वाले इस पारंपरिक मेले को और भव्य रूप दिया जाएगा और हर प्रकार की व्यवस्था बेहतर रखी जाएगी.

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