रेल मंत्रियों का रेल बजट भाषण और ‘शेरो शायरी’ का लगता है चोली दामन का साथ हो गया है. लालू प्रसाद ने रेल मंत्री रहते अपने बजट में शेरो शायरी का जमकर इस्तेमाल किया और उस परंपरा को ममता बनर्जी ने आगे बढाया तो आज अपना पहला रेल बजट पेश कर रहे दिनेश त्रिवेदी का भाषण भी कविताओं से लवरेज रहा.
त्रिवेदी ने यात्री किराये में बढोतरी के परिप्रेक्ष्य में रेलवे के कठिनाई के दौर से गुजरने का जिक्र किया. उन्होंने तुकबंदी करते हुए कहा, ‘कंधे झुक गये हैं, कमर लचक गयी है.
बोझ उठा उठा कर बेचारी रेल थक गयी है, रेलगाडी को नयी दवा, नया असर चाहिए.
इस सफर में मुझको आपका हमसफर चाहिए.’
रेल के लाभांश में केवल 1492 करोड रूपये का आधिक्य होने का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि ‘मंजिल अभी दूर है और रास्ता जटिल है
कंधा मिलाकर साथ चलें तो कुछ नहीं मुश्किल है.
साथ मिलकर जो हम पटरियां बिछाएंगे तो देखते ही देखते सब रास्ते खुल जाएंगे.’ लोकसभा में सदस्यों की वाहवाही और मेजों की थपथपाहट के बीच त्रिवेदी ने शेर सुनाने का सिलसिला यहीं नहीं रोका.
रेल मंत्री ने आगे ‘नया दौर’ फिल्म के मशहूर गीत ‘साथी हाथ बढाना’ के कुछ अंश सुना डाले, ‘फौलादी हैं सीने अपने
फौलादी हैं बाहें, हम चाहें तो पैदा कर दें चटटानों में राहें.’
जातपात और छुआछूत के बंधन तोडने में रेलवे की बडी भूमिका को उन्होंने कुछ इस तरह बयां किया, ‘देश की रगों में दौडती है
रेल देश के हर अंग को जोडती है
रेल धर्म जात पात नहीं मानती है
रेल छोटे बडे सभी को अपना मानती है रेल.’
रेलवे को आगे बढाने के लिए पुराने दृष्टिकोण में भारी बदलाव की आवश्यकता बताते हुए इसे देश की महान आकांक्षाओं को पूरा करने में सक्षम बनाने के दीर्घकालिक परिवर्तनों की बात करते हुए त्रिवेदी ने यह शेर पढा, ‘हाथ की लकीरों से जिन्दगी नहीं बनती
अज्म हमारा भी कुछ हिस्सा है जिन्दगी बनाने में.’
त्रिवेदी ने भाषण की शुरूआत तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा बार बार दोहराये जाने वाले ‘मां माटी मानुष’ के बारे में कहा, ‘सबसे अधिक मैं मां माटी मानुष का आभारी हूं, जिनके आशीर्वाद से ही मैं इस संसद तक पहुंचा हूं. आमि मां माटी मानुष के आमार श्रद्धा, ओ आमारा प्रोनाम जानाई.’