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भविष्य के लिए अभी से तैयारी! कंपनी ने दर्जनों लोगों में इम्प्लांट कीं ब्रेन चिप, बताया मकसद

इस कंपनी ने करीब 50 लोगों में ब्रेन चिप को इम्प्लांट किया है. इसे लकवाग्रस्त लोगों के लिए गेम चेंजर बताया जा रहा है. इसके जरिए दिमाग के सिग्नल्स को पढ़ा जा सकता है. जिससे सब काम मशीन से हो सकते हैं.

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भविष्य को लेकर अभी से तमाम तरह के खतरे जताए जा रहे हैं. चाहे फिर बात आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की हो या फिर रोबोट्स के बढ़ते क्रेज की. हाल में ही एआई के गॉडफादर कहे जाने वाले ज्योफ्री हिंटन (Geoffrey Hinton) ने कहा था कि वह अपने काम पर पछता रहे हैं.

उन्होंने बीते हफ्ते गूगल से इस्तीफा दे दिया था. हिंटन ने उसी एआई के खतरों को लेकर आगाह किया, जिसे विकसित करने में उन्होंने ही मदद की थी. इस बीच खबर आई है कि अब इस तरह के खतरों से निपटने के लिए नई तरकीबों पर काम किया जा रहा है.

रोबोट पर कंट्रोल हासिल करना उद्देश्य

एक कंपनी ने करीब 50 लोगों में ब्रेन चिप इम्प्लांट की हैं. इसका मकसद भविष्य की कई योजनाओं को पूरा करना है, इनमें से एक रोबोट पर कंट्रोल हासिल करना भी है. अमेरिकी कंपनी ब्लैकरॉक न्यूरोटेक ने न्यूरोपोर्ट ऐरे (NeuroPort Array) का आविष्कार किया है. इस ब्रेन चिप को दिमाग के संकेत पढ़ने और रोबोटिक आर्म, व्हीलचेयर को कंट्रोल करने के मकसद से बनाया गया है.

कंपनी के वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इससे फिजिकल पैरालिसिस, ब्लाइंडनेस, बहरापन और डिप्रेशन को ठीक किया जा सकता है. डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के उटाह स्थित कंपनी साल्ट लेक सिटी के को-फाउंडर मारकस गेरहार्ड्ट ने कहा, 'हम ऐसी अकेली कंपनी हैं, जिसने इंसानों में डायरेक्ट-ब्रेन बीसीआई इम्प्लांट किए हैं.'

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कंपनी में इंसानों में इम्प्लांट कीं ब्रेन चिप (तस्वीर- University of Pittsburgh)

कौन से काम हो सकते हैं?

उन्होंने कहा, 'हमारे इम्प्लांट ऐरे ने लोगों को केवल अपने मस्तिष्क संकेतों के जरिए सीधे कंप्यूटर से कनेक्ट करने, रोबोटिक हाथों, व्हीलचेयर को नियंत्रित करने और वीडियो गेम खेलने में सक्षम बना दिया है.' इससे लकवाग्रस्त लोगों की मदद की जा सकती है. किसी के दिमाग में क्या चल रहा है, ये पता करने के लिए इन न्यूरोपोर्ट ऐरे में करीब 100 माइक्रो निडल्स होती हैं, जो दिमाग में पैदा होने वाले इलेक्ट्रिक सिग्नल को रीड कर सकती हैं. 

इम्प्लांट की गई चिप को जैसे ही दिमाग से सिग्नल मिलते हैं. उन्हें मशीन लर्निंग सॉफ्टवेयर से कमांड और एक्शन में डिकोड कर दिया जाता है. इसके बाद मशीन में लगे रोबोटिक हाथ के जरिए कई काम किए जा सकते हैं. जैसे कोई ड्राइंग बनाना या फिर कंप्यूटर का इस्तेमाल करना.

अब अगली चुनौती इसके लिए एफडीए से मंजूरी लेना है, ताकि इन इम्प्लांट्स को लैब के बाहर इस्तेमाल होने वाले टूल्स से कनेक्ट किया जा सके. इससे लकवाग्रस्त लोगों की जिंदगी बदली जा सकती है. 

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