कभी फीस के रूप में गाय के नाम पर एडमिशन लेने वाले बक्सर के इंजीनियरिंग कॉलेज में बैंक का लोन नहीं चुका पाने के कारण ताला लग गया है. प्रिंसिपल ने कहा कि गरीब बच्चों को उच्च शिक्षा देने के उदेश्य से ये कॉलेज खोला गया था.
ये विश्व में एक अलग प्रयोग था जिसमें किसान अपने जमीन का दान करते हैं और इंजीनियर अपने सर्किल के सहयोग से एक ऐसे कॉलेज का निर्माण करते है जिसमें कम फीस या यूं कहें कि एक गाय और एक बछिया के एवज में चार साल का इंजीनियरिंग कोर्स पूरा किया जाता था.
कैसे बना इंजीनियरिंग कॉलेज
डीआरडीए के एक वैज्ञानिक ने एक सोच लेकर गांव के गरीब छात्रों को इंजीनियर बनाने के लिए बक्सर के अरियाव गांव में जब 2010 में इंजीनियरिंग कॉलेज की शुरुआत की थी तो किसी को ये मामलू नहीं था कि अपने फीस के तरीकों को लेकर कॉलेज सुर्खियों में जल्द ही आ जाएगा.
हुआ भी यही कि फीस के रूप में एक गाय और बछिया दे कर कोई भी किसान का लड़का इंजीनियरिंग की पढ़ाई को आसानी से पूरा कर सकता है. मजे की बात ये थी कि छात्रों के द्वारा दी गई गाय का दूध उनके ही काम आता था और हॉस्टल में रहने वाले छात्र ही इसे खराद कर उपयोग में लाते थे.
बंद होने में बैंक का रोल
गरीबों को उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिये कॉलेज की स्थापना की गई थी. इसके लिये बैंक से 4 करोड़ का लोन भी लिये गया था.
कॉलेज के फाउंडर एसके सिंह बताते हैं कि बैंक का सभी लोन समय के साथ 2013 तक दिया जा रहा था. ऐसे में 15 करोड़ के इस प्रोजेक्ट की अब दूसरी क़िस्त जारी करने का समय था लेकिन बैंक ने लोन देने का कारण लगा कर मना कर दिया
एसके सिंह बताते हैं कि चूंकि लोन का अमाउंट ज्यादा था, ऐसे में बैंक ने कहा कि हमारे पास केवल पांच करोड़ तक लोन देने की क्षमता है. ऐसे में हम पांच करोड़ ही पास कर सकते है लेकिन बैंक ने लोन पास नहीं किया और कॉलेज का डेवलपमेंट रुक गया और कॉलेज को बंद करना पड़ा.
2010 शुरू में हुए इस कॉलेज में केमेस्ट्री के प्रोफेसर और उसके बही खाता के जानकार राहुल राज 2017 में कॉलेज बंद होने के बाद से अपने सामानों के रख रखाव की जानकारी लेने हेतु महीने में एक दो बार आ जाते हैं.
कॉलेज अब भैंसों का तबेला बन चुका है
जब राहुल के साथ आजतक की टीम वहां पहुंची तो पाया कि गेट के समाने बड़े अक्षरों में लिखा है कि बैंक औफ इंडिया ने इस संपत्ति को बंधक बना दिया है, ये अब बैंक की संपत्ति है जिसकी बिक्री का अधिकार केवल बैंक का है. करीब 16 एकड़ में फैले इस कॉलेज में अलग-अलग विभाग की बिल्डिंग बनी हैं जो अब दरक रही है. मुख्य बिल्डिंग के गेट पर ताला लगा है जबकि मेन गेट टूट चुका है. ऐसे में कॉलेज अब भैंसों का तबेला बन चुका है. दो गार्ड हैं जो लगातार भैंसों को भगाने में लगे रहते हैं.
जिस कॉन्सेप्ट से इस कॉलेज ने काम किया, उससे गरीब परिवार के लड़कों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ. गाय और बछड़ा दान कर के इंजीनियर बने छात्र आज गांव के लिए एक गर्व की बात हैं लेकिन जब से कॉलेज में बैंक ने अपनी संपत्ति का नोटिस लगाया है तो गरीब छात्रों के लिए इंजीनियरिंग दूर की कौड़ी हो गई. कॉलेज परिसर में पढ़ाई कर रहे छात्र चाहते हैं कि इस कॉलेज को जल्द से जल्द शुरू किया जाए जिससे उनके भी सपने पूरे हो सकें. लड़के कहते है कि हम गरीबों का सपना इसी कॉलेज के माध्यम से पूरा होता था.
हालांकि डायरेक्टर एसके सिंह बताते हैं कि अभी तक उन्होंने अपनी लड़ाई छोड़ी नहीं है, कोर्ट में केस चल रहा है. जल्द ही न्याय मिल जाएगा और फिर से गरीबों का सपना पूरा होने लगेगा.