इंग्लैंड में एक जगह ऐसी है, जहां जाने पर मालूम होता है कि यहां समय थम है. यहां के घर, गलियां, चौराहे, लैंपपोस्ट सब ठीक, वैसे के वैसे हैं. जैसे 20वीं सदी के शुरुआत में ये बने थे. इस गांव में आने पर ऐसा लगता है, जैसे हम एक सदी पीछे चले आए हों.
ये जगह है, डॉर्सेट में स्थित टाइनहैम गांव. ब्रिटेन में किसी और जगह जैसा नहीं है. यह अतीत का एक ऐसा अवशेष है जो समय में ठहर गया है, लेकिन इसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. मिरर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यहां रहने वाले निवासियों को जबरन गांव छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था.
गांव छोड़ने के बाद कभी नहीं लौट पाए यहां के बाशिंदे
इससे पहले यह जगह एक समृद्ध समुदाय का बसेरा था. गांव को छोड़ने के बाद उन्हें फिर कभी वापस लौटने की अनुमति नहीं दी गई. डॉर्सेट का एक वीरान गांव ब्रिटिश इतिहास का एक अनूठा हिस्सा है. अतीत का एक ऐसा अवशेष जो स्मृतियों में हमेशा के लिए अंकित है.
कई साल पहले दुखद घटनाओं ने यहां के बाशिंदों को अपने प्यारे घरों को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था. डॉर्सेट के शानदार जुरासिक तट पर स्थित, टाइनहैम गांव की यात्रा समय में पीछे जाने जैसा अनुभव कराती है. यहां आने वाले टूरिस्ट उन लोगों के जीवन की एक झलक देख सकते हैं, जिन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गांव छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
यहां आने पर 1943 वाले समय में पहुंच जाते हैं लोग
वर्ष 1943 टाइनहैम के समृद्ध समाज के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, जिससे उनके जीवन में कभी वापस लौट कर ना आने वाले बदलाव हुए. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, ब्रिटिश सेना ने प्रशिक्षण अभियानों के लिए इस गांव पर कब्जा कर लियाय
दुखी निवासियों को अपने घर खाली करने के लिए केवल एक महीने का नोटिस दिया गया. जहां कई परिवार पीढ़ियों से रह रहे थेय सरकार ने लुलवर्थ फायरिंग रेंज के निकट स्थित टाइनहैम गांव और उसके आसपास के क्षेत्र को मित्र देशों की सेनाओं के लिए एक प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने के लिए अधिग्रहित कर लिया.
मिरर की रिपोर्ट के अनुसार , निवासियों ने यह मानते हुए प्रस्थान किया कि उनका बलिदान राष्ट्र के सर्वोत्तम हित में था और युद्ध की समाप्ति के बाद लौटने की उम्मीद कर रहे थे.
यहां के लोगों ने छोड़ा था ये संदेश
यहां गिरजाघर के प्रवेश द्वार पर एक संदेश चिपकाया गया था, जिसमें लिखा था- कृपया गिरजाघर और घरों का ध्यान रखें. हमने अपने घर छोड़ दिए हैं, जहां हममें से कई पीढ़ियों से रह रहे थे, ताकि युद्ध जीतकर लोगों को स्वतंत्र रख सकें. हम एक दिन लौटेंगे.
अफसोस की बात है कि द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद भी टाइनहैम के निवासी कभी घर नहीं लौट पाए, क्योंकि गांव और उसके आसपास की जमीनों को सैन्य प्रशिक्षण अभ्यासों के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा था.
आज, 80 वर्षों से भी अधिक समय बाद, यह गांव अतीत की एक झलक दिखाता है . यह एक रोचक पर्यटन स्थल के तौर पर वर्ष भर में समय-समय पर खुलता है. यहां पहुंचकर टूरिस्ट्स को यहां के पूर्व निवासियों के जीवन की एक आकर्षक झलक देखने को मिलती है।
गांव वापस लौटने की नहीं मिली अनुमति
ट्रिपएडवाइजर के रिव्यू में इस गांव का जीवंत चित्रण किया गया है. इस वीरान गांव का इतिहास बेहद रोचक है. गिरजाघर के अंदर लगे बोर्ड, जिनमें गांव वालों के गांव में वापस लौटने की अनुमति के लिए किए गए संघर्ष और वर्तमान स्थिति का विवरण दिया गया है, बहुत ही मार्मिक है.
टाइनहैम के अंतिम निवासी, पीटर वेलमैन का इस वर्ष अप्रैल में 100 वर्ष की आयु में निधन हो गया. 2024 में, उन्होंने अपने जन्म और पालन-पोषण वाले गांव की अंतिम यात्रा की थी. 2024 में अपनी आखिरी यात्रा के दौरान, पीटर ने डोरसेट इको को अपने बचपन के दिनों के बारे में याद दिलाते हुए कहा था कि हमारे पास बिजली नहीं थी, मुख्य गैस नहीं थी और नल का पानी भी नहीं था - हमें चर्च के पास से पानी पंप करना पड़ता था.
इस गांव के अंतिम निवासी ने बताए थे ये अनुभुव
उन्होंने कहा था कि मुझे याद है कि हम समुद्र तट पर मछली पकड़ने जाते थे और अक्सर हमें मैकेरल मछली मिल जाती थी. जब तक हमें वहां से हटाया नहीं गया, तब तक हम खुश थे. टाइनहैम गांव पर्बेक द्वीप के भीतर बसा हुआ है, जो एक द्वीप नहीं बल्कि एक प्रायद्वीप है, जो डोरसेट काउंटी में इंग्लिश चैनल से घिरा हुआ है.