हैदराबाद के चमचमाते नए राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सुबह में सुहाना मौसम है. लाल रंग की स्लीवलेस ड्रेस पहले सायना नेहवाल चकित होकर खड़ी हैं. उनकी आंखों में आंसू हैं, वे लपककर अपने माता-पिता और कोच पुलेला गोपीचंद को गले लगा लेती हैं. वे अभी-अभी जकार्ता से लौटी हैं, तय समय से मात्र 30 मिनट की देरी से. अपने दाएं हाथ में दो पदकों और बाएं हाथ से जीत का निशान बनाते हुए वे चहककर कहती हैं, ''मैंने यह हासिल कर लिया.''
उनके सामने 300 लोगों की भीड़ खड़ी है, जो उन्हें बधाई देने के लिए आए हैं. हवा में ''सायना, सायना'' के नारे गूंज रहे हैं, और जब लोग उन्हें गुलदस्ते भेंट करके उनसे हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ते हैं तो 20 वर्षीया खिलाड़ी अपनी खुशी नहीं छिपा पाती. उनके चेहरे पर खुशी झलक रही है. वे कहती हैं, ''मुझे उम्मीद नहीं थी कि बधाई देने के लिए इतने लोग यहां तक आ जाएंगे.''
उनकी इस उत्फुल्लता की वजह भी है. तीन रविवार को तीन जीत दर्ज करने के बाद वे बैडमिंटन में विश्व की नंबर वन खिलाड़ी बनने से सिर्फ दो पायदान दूर हैं. सायना अब निस्संदेह देश की सबसे बड़ी महिला एथलीट हैं. वे इस मुकाम पर अपने पिता के बलिदान के बूते पहुंची हैं, जिन्होंने हिसार स्थित हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से हैदराबाद स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) आने के बाद हर उस पदोन्नति को ठुकरा दिया जिसकी वजह से उन्हें शहर से बाहर जाना पड़े और अपनी बेटी के कॅरियर को खतरे में डालना पड़े. सायना इस मुकाम पर अपनी मेहनत और लगन के बूते पहुंची हैं.{mospagebreak}पिछले छह साल से वे हर रोज आठ घंटे प्रशिक्षण लेती हैं, हफ्ते में सिर्फ एक बार आइस-क्रीम खाती हैं और केवल रविवार को टीवी देखती हैं. वे कॉफी की चुस्की लगाते हुए बातचीत करना और घर से बाहर रात बिताना भूल चुकी हैं. उन्होंने लंबे समय से कपड़ों की खरीदारी और अपने दोस्तों के साथ हंसी-ठिठोली नहीं की है. ऐसे में ताज्जुब नहीं कि गोपीचंद और उनकी बड़ी बहन 24 वर्षीया चंद्रांशु हैदराबाद हवाई अड्डे पर उन्हें जीप की ओर ले जाती हैं तो उनके चेहरे पर मुस्कान फैली दिखती है. उन्हें सीधे घर नहीं बल्कि उनके काम की जगह ले जाया जाता है, जहां उन्होंने पिछले छह साल से हर रोज 11 घंटे बिताए हैं-पुलेला गोपीचंद निम्मागड्डा फाउंडेशन बैडमिंटन एकेडमी (पीजीएनएफबीए). नगाड़ों और पटाखों की शोर के बीच सायना कहती हैं, ''यह अकल्पनीय है.''
यह कहना पर्याप्त नहीं है कि वे खुश हैं. उन्होंने खुद को साबित कर दिया है. वे कहती हैं, ''यह आसानी से हासिल नहीं हुआ. मैंने यहां तक पहुंचने के लिए अपने कोच के साथ बहुत मेहनत की है. अगर मैं नं. 3 हो सकती हूं तो मुझमें नं. 1 बनने का भी माद्दा है.''
एक ओर गोपीचंद उन्हें देख रहे हैं और उनके माता-पिता उषा तथा हरवीर सिंह नेहवाल और उनकी बहन उनसे बात कर रही हैं. सायना आगे बढ़ने की योजना बना रही हैं. वे कहती हैं, ''मुझे मालूम है कि अब मेरे खेल पर सबसे ज्यादा नजर रखी जाएगी. लेकिन मैं नई रणनीति भी आजमाऊंगी.''
उन्हें क्या-क्या करना है इसकी सूची तैयार है. उन्हें मालूम है कि उन्हें अपना डिफेंस सुधारना है, उनकी तंदुरुस्ती चरम पर होनी चाहिए, और उन्हें खुद को चोटिल होने से बचाना है. घर लौटे 24 घंटे भी नहीं बीते हैं कि वे पूरे आठ घंटे प्रशिक्षण करने के लिए वापस कोर्ट में पहुंच गई हैं.{mospagebreak}इंडियन ओपन ग्रां प्रि गोल्ड, सिंगापुर ओपन सुपर सीरीज और फिर जकार्ता में इंडोनेशियन ओपन सुपर सीरीज जीतने के बाद जश्न मनाने की पर्याप्त वजहें हैं. इसकी वजह से उन्होंने दुनिया और देश भर के लोगों का ध्यान आकर्षित किया है. उनके प्रबंधकों, डेक्कन चार्जर्स स्पोर्टिंग वेंचर्स, जो उन्हें प्रायोजन शुल्क के रूप में 1 करोड़ रु. से ज्यादा रकम देती है, के पास उन ब्रांडों की कतार लग गई है जो उनके साथ करार करने के लिए आतुर हैं.
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री कोनिजेटी रोसैया ने उन्हें इनाम के रूप में 25 लाख रु. देने का ऐलान किया है-अब तक के कॅरियर में उन्हें इससे ज्यादा राशि पहले कभी नहीं मिली. प्रधानमंत्री से लेकर हरियाणा के मुख्यमंत्री तक ने उन्हें बधाई संदेश भेजे हैं, और अखबारों तथा पत्रिकाओं की ओर से उनसे बातचीत के लिए समय मांगा जा रहा है. ऐसे में उनके पिता के बॉस, आइसीएआर के महानिदेशक ने पीछे न रहते हुए उन्हें दिल्ली में आयोजित अभिनंदन समारोह में हिस्सा लेने के लिए बुलाया है. सायना नेहवाल छा गई हैं.
लेकिन सायना की नजर में इन सबकी खास अहमियत नहीं है. ध्यान रहे कि उन्हें तारीफ अच्छी लगती है, ऑटोग्राफ देना और कैमरा फोन से फोटो खिंचवाना भी ठीक लगता है. वे कहती हैं, ''मैं इस बात से सम्मानित महसूस करती हूं कि मुझे किशोरों के लिए एक आदर्श माना जाता है. लेकिन मुझे उन लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरना है जो मेरा समर्थन करते हैं.'' उन्हें मालूम है कि यह उत्साह चंद दिनों में खत्म हो जाएगा लेकिन उनकी प्राथमिकता बैडमिंटन और 36 वर्षीय गोपी सर का अनुशासन है.
दिल्ली में सम्मान समारोह की संक्षिप्त यात्रा के बाद वे लौटकर वही करेंगी जो उन्हें सबसे ज्यादा अच्छा लगता है. सुबह छह बजे से पहले उठकर एकेडमी की ओर रवाना होना. बैडमिंटन उनकी जीवनरेखा है. उनका जीवन है.{mospagebreak}पेरिस में आयोजित विश्व चैंपियनशिप में अभी आठ सप्ताह बाकी हैं और तीन जीत के साथ ही सायना को खासकर चीनियों से कड़ा मुकाबला करना है. हाल की चैंपियनशिप में चीनियों ने हिस्सा नहीं लिया था. वे उनसे कैसे निबटेंगी? गोपीचंद कहते हैं, ''मनोबल ऊंचा है और हाल में उन्होंने बहुत निगेटिव प्वाइंट नहीं दिए हैं. यह तेजी से उभर रही खिलाड़ी का गजब का संकेत है.''
वे कहते हैं कि वे दोनों मिलकर लंदन में आयोजित होने वाले अगले ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने का लक्ष्य बना रहे हैं. उन्हें मालूम है कि किस तरह का दबाव है; वे खुद उस मुकाम तक पहुंच चुके हैं, वे ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप जीत चुके हैं. उनसे पहले प्रकाश पादुकोण ने यह खिताब जीता था, जिन्होंने 1980 के दशक में तीन बड़े अंतरराष्ट्रीय खिताब भी जीते थे.
सायना के लिए गोपी सर सब कुछ हैं-कोच, संरक्षक और दोस्त. वे बार-बार कहती हैं, ''आज मैं जो कुछ हूं, उन्होंने ही मुझे बनाया है.'' टीवी वाले साक्षात्कार के लिए उनके पीछे पड़े हैं, उनसे पूछते हैं कि वे इस मुकाम तक कैसे पहुंच गईं, उन्हें यह नहीं मालूम कि सायना 12 साल से खेल रही हैं और 2003 में ही उन्होंने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय खिताब जीता था.
वे प्रसिद्धि के प्रलोभनों को समझती हैं. यह ऐसी शै है जिसकी शिकार उनकी लगभग हमनाम खिलाड़ी हो चुकी है. लेकिन इसको लेकर वे बेजा चिंतित नहीं हैं क्योंकि उनके साथ गोपी सर हैं, कोर्ट में विश्वसनीय साझीदार, जो उनकी चालों, होशियारी और तंदुरुस्ती को परखते हैं और बड़े मैचों के लिए उनमें हौसला पैदा करते हैं. {mospagebreak}वे कहती हैं, ''कोई खिलाड़ी हमेशा इन खिताबों को नहीं जीत सकता. ऊंच-नीच होता रहता है. मैं सिर्फ यही प्रार्थना करती हूं कि विश्व चैंपियनशिप और फिर दो बड़े आयोजनों-दिल्ली में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों और नवंबर में चीन के गुआंगझू में एशियाई खेलों-पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मैं चोट से बची रहूं.'' उसके परे उन्हें किसी चीज में खास दिलचस्पी नहीं है. यहां तक कि उनके लिए खरीदारी भी उनके माता-पिता ही करते हैं. वे उनके लिए दिल्ली और गुड़गांव से राष्ट्रीय रंग के हेयर क्लिप और उनकी पसंद के कुछ कपड़े खरीदते हैं-उन्हें ट्रैक सूट पसंद हैं.
उनके कॅरियर में अहम मोड़ उस समय आया जब वे 2008 के बीजिंग ओलंपिक में आखिरी आठ खिलाड़ियों में पहुंचीं. सायना बताती हैं, ''मुझे विश्वास हो गया कि मैं चोटी के खिलाड़ियों को हरा सकती हूं. उनके खिलाफ मेरी जीत का रिकॉर्ड बढ़ने के साथ ही मुझे लगता है कि भारत के प्रति चीनियों और पूरी दुनिया का नजरिया बदल गया है. अगर किसी चोटी के खिलाड़ी का मुकाबला किसी भारतीय से हो तो उसे एक बार सोचना पड़ता है.''
वे अपनी जीत की घड़ी में दूसरे लोगों के लिए भी आवाज उठाने को तैयार हैं. वे एकेडमी के मीडिया सेंटर में ऐलान करती हैं, ''जल्दी ही हम विश्व बैडमिंटन में प्रमुख शक्ति बनने वाले हैं.'' उन्होंने कुछ बेहतरीन और शक्तिशाली खिलाड़ियों को हराया है, जिससे निश्चित रूप से उनका आत्मविश्वास बढ़ गया है. वे मुस्कराकर कहती हैं, ''मुझे पक्का विश्वास है कि कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी सायना से भी डरती होंगी.'' मशर लोग इसी तरह बात करते हैं.
बैडमिंटन की दुनिया में खिताब जीतते रहना और टॉप 10 के भीतर रैंकिंग बनाए रखना हमेशा चुनौतीपूर्ण होता है. हमेशा युवा और तेजतर्रार चुनौती देने वाले उभरते रहते हैं, विशेषकर चीन, इंडोनेशिया और कोरिया जैसे देशों से, जहां प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की बहुतायत है.{mospagebreak}पिछले पांच दशक में भारत ने बैडमिंटन की दुनिया में काफी वाहवाही लूटी है, लेकिन प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की पहचान करके उनके प्रशिक्षण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. भारत की बैडमिंटन स्टार को सफल होने से कोई नहीं रोक सकता. वे हमेशा जोरदार मुकाबले के लिए तैयार रहती हैं. उन्हें महिला बैडमिंटन खिलाड़ियों में मानसिक और शारीरिक रूप से सबसे मजबूत खिलाड़ियों में माना जाता है. उनमें अनोखी प्रतिभा है, वे उस खेल में दमखम दिखाते हुए दबाव झेल सकती हैं जिसमें तेज चाल के साथ ही लचीलेपन की जरूरत होती है. वे कोर्ट में आक्रामक हो जाती हैं और अपने प्रतिद्वंद्वियों को फौरन थका देती हैं, उन्हें सोचने के लिए वक्त नहीं देतीं.
पूर्व राष्ट्रीय चैंपियन और कोच यू. विमल कुमार कहते हैं, ''चीन की प्रमुख खिलाड़ी ज्यादा कुशल होती हैं लेकिन वे दबाव नहीं झेल पातीं, जिसे सायना आसानी से भुना लेती हैं और अनुभव से उसका लाभ उठाती हैं. अपना आधार हासिल करने के लिए पीछे हटने और शटल को मारने तथा प्रतिद्वंद्वी को उलझने, शटल को आगे-पीछे करने की उनकी क्षमता ज्यादा दूसरी खिलाड़ियों में नहीं है लेकिन लंबे समय तक शटल को जमीन पर न गिरने देने की वजह से वे तेजी से अंक बना लेती हैं.''
गहन प्रशिक्षण से उन्हें तेजी से आगे बढ़ने, प्रतिद्वंद्वी की चाल को समझने और अधिक आत्मविश्वास के साथ खेलने में मदद मिलती है. लगातार तीसरा खिताब जीतने के बाद जकार्ता में उन्होंने खुशी से बस हवा में मुट्ठी मारी, खामोशी से अपनी आंखों को हाथों से ढक लिया और अपनी प्रतिद्वंद्वी, जापान की सयाका सातो से रस्मन हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ गईं.
गोपीचंद बताते हैं, ''उन्हें कोर्ट में और उसके बाहर अपनी खूबियां और खामियां मालूम हैं. कुछ बड़े खिलाड़ियों के साथ खेल कर उन्हें हराने के बाद अब वे मानसिक रूप से ज्यादा अनुभवी हैं. इस अनुभव और अपनी आशावादिता से उन्हें चुनौतियों से निबटने और अपना बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए प्रतिद्वंद्वी को निबटाने में मदद मिलती है.'' गोपीचंद ने 2004 में एकेडमी बनाई थी और तभी से सायना उनकी निगरानी में हैं. मृदुभाषी और अत्यधिक विनम्र गोपीचंद का एक ही मिशन है-अपनी सबसे लोकप्रिय प्रशिक्षु को कोर्ट की क्वीन बनाना.{mospagebreak}वीडियो के नियमित विश्लेषण से उन्हें अपने खेल को समझ्ने, उसे सुधारने और गलतियों को ठीक करने में मदद मिलती है. उसमें उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति को जोड़ दीजिए. पिछले अगस्त में विश्व चैंपियनशिप के एक हफ्ते पहले उन्हें हल्का-सा चिकन पॉक्स हो गया था. हालांकि वे जल्दी उबर गईं पर बीमारी के बाद कमजोरी के चलते वे चैंपियनशिप में हिस्सा नहीं ले सकीं.
सायना ऐसे समुदाय से हैं जो महिलाओं के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार के लिए खबरों में रहता है, लेकिन उनका परिवार अलग है. उनके माता-पिता उनके लिए इससे ज्यादा कुछ नहीं कर सकते. उनके गौरवान्वित पिता कहते हैं, ''जब वह मांगती है तो मैं उसके लिए साधारण थाई शैली में चिकन तैयार कर देता हूं.''
उनकी मां उषा, जो गृहिणी हैं, कहती हैं, ''वह जो भी चाहती है हम उसे देने को तैयार रहते हैं लेकिन वह कुछ डैंगलर और रंगीन हेयर क्लिप के अलावा कुछ नहीं मांगती. उसे वही पसंद हैं.'' सायना जब अपनी दो साल पुरानी होंडा सिटी में अपने अपार्टमेंट से एकेडमी जाती-आती हैं तो पार्टियों और दोस्तों की कमी महसूस नहीं करतीं जबकि उनकी उम्र की दूसरी लड़कियां उनके बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकतीं. वे कहती हैं, ''मैं बैडमिंटन का नया चेहरा हूं. दूसरे युवा खिलाड़ी उभरेंगी और जल्दी ही चमकेंगी.'' तब तक वे कोर्ट में डटी हैं.