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शिक्षा-रोजगार में महिलाओं की स्थिति सुधरी

महिलाएं आज हर क्षेत्र में प्रगति कर रहीं है और किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं. समाजशास्त्रियों का भी मानना है कि महिलाओं को शिक्षा और रोजगार में समान अवसर दिए जाने के मामले में लोगों के नजरिये में काफी बदलाव आया है हालांकि स्वास्थ्य की दिशा में अब भी काफी कुछ किए जाने की जरूरत है.

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महिलाएं आज हर क्षेत्र में प्रगति कर रहीं है और किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं. समाजशास्त्रियों का भी मानना है कि महिलाओं को शिक्षा और रोजगार में समान अवसर दिए जाने के मामले में लोगों के नजरिये में काफी बदलाव आया है हालांकि स्वास्थ्य की दिशा में अब भी काफी कुछ किए जाने की जरूरत है.

सेंटर फॉर सोशल रिसर्च में निदेशक रंजना कुमारी ने कहा कि लड़कियों को पढ़ाने को लेकर लोगों का नजरिया काफी बदला है, खासकर प्राथमिक शिक्षा में. बहरहाल अभी स्वास्थ्य की दिशा में काफी कुछ किए जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा, ‘पहले की अपेक्षा शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति में काफी बदलाव आया है और उन्हें समान अवसर भी दिए जा रहे हैं. रोजगार की बात करें तो आज महिलाओं को हर क्षेत्र में कामकाज के अवसर मिल रहे हैं.’

रंजना ने कहा, ‘पहले महिलाएं शिक्षा, नर्सिंग आदि के क्षेत्र में ही रोजगार के अवसर तलाशतीं थीं. नर्सिंग जैसे क्षेत्रों को तो महिलापरक रोजगार के क्षेत्रों में ही गिना जाता था लेकिन अब ये धारणाएं काफी हद तक टूट रहीं हैं. अब महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहीं हैं. वे निचले स्तर से लेकर शीर्ष पद पर कार्यरत हैं.’ ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों को शिक्षा के अवसर मुहैया कराए जाने के संबंध में रंजना ने कहा, ‘ग्रामीण क्षेत्रों में भी बदलाव तो आया है लेकिन हां इसे संतोषजनक नहीं कहा जा सकता. गांवों में कई माता-पिता चाहते हैं कि वे अपनी बच्चियों को पढ़ाएं. हालांकि कई बार सामाजिक-आर्थिक कारणों से यह संभव नहीं हो पाता.’ उन्होंने कहा कि लेकिन महिलाओं के स्वास्थ्य की दिशा में अब भी काफी कुछ किए जाने की जरूरत है.

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रंजना ने कहा, ‘महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर अब भी लोग उतने जागरुक नहीं हैं. यही कारण है कि महिला मृत्यु दर ज्यादा है.’ उन्होंने कहा कि लड़कियों के स्वास्थ्य को लेकर समाज अब भी काफी उदासीन है और इस क्षेत्र में सफलता के लिए जरूरी है कि लोग जागरुक हों. समाजशास्त्री समर पांडे ने इस बारे में कहा कि शिक्षा और रोजगार को लेकर लोगों के नजरिए में बदलाव तो आया है लेकिन यह परिवर्तन अधिकतम महानगरों में ही देखने को मिलता है.

उन्होंने कहा, ‘बड़े शहरों में भले ही शिक्षा, रोजगार आदि को लेकर महिलाओं को बराबर अवसर दिए जा रहे हो लेकिन पूर्वांचल जैसे क्षेत्रों के कई इलाकों में अब भी स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया है.’ पांडे ने कहा, ‘दूसरी ओर स्वास्थ्य और खानपान को लेकर भी बदलाव तो आया है लेकिन यह मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग तक ही समिति हैं. जिनके पास पर्याप्त भोजन है वे तो लड़के-लड़कियों में फर्क किए बिना इस मामले में समानता बरतते हैं लेकिन गरीब तबके में जब किसी एक को पर्याप्त भोजन मुहैया कराने की बात आती है तो प्राथमिकता लड़के को दी जाती है.’

उन्होंने कहा, ‘यहां वास्तव में सवाल लिंग भेद से कम और आर्थिक स्थिति से ज्यादा जुड़ा है. इस स्तर पर समानता के लिए जरूरी है कि आर्थिक असमानता और गरीबी को दूर किया जाए. लड़कियों को पूरी तरह समानता दिलाने के लिए सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव जरूरी है और यह बिना आर्थिक समानता के नहीं आ सकता.’

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उल्लेखनीय है कि अमेरिका में 19 नवंबर ‘इक्वल अपॉर्चुनिटी डे’ के रूप में मनाया जाता है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के ‘गॅटीस्बर्ग भाषण’ की वषर्गांठ के अवसर पर यह दिन मनाया जाता है. पेन्सिल्वेनिया प्रांत के गॅटीस्बर्ग में 19 नंवबर 1863 को दिए एक इस ऐतिहासिक भाषण में लिंकन ने मानवों के समान अधिकारों और भेदभाव किए बिना सभी को बराबरी के अवसर दिए जाने की बात कही थी.

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