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मणिपुर में क्यों मनाते हैं संगाई महोत्सव, इस बार लोग क्यों कर रहे हैं विरोध

दो साल बाद मणिपुर का संगाई महोत्सव लौट तो रहा है, लेकिन माहौल पहले जैसा नहीं है. उत्सव की तैयारियों के बीच कुछ समूह इसका विरोध करने की तैयारी में हैं और सवाल उठा रहे हैं.

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संगाई महोत्सव पर विवाद (Photo: ITG)
संगाई महोत्सव पर विवाद (Photo: ITG)

मणिपुर में हर साल होने वाला संगाई महोत्सव राज्य की सबसे बड़ी सांस्कृतिक पहचान माना जाता है. 21 से 30 नवंबर तक चलने वाला यह दस दिन का उत्सव मणिपुर की परंपराओं, लोककला, नृत्य, संगीत, खेल और खानपान को दुनिया के सामने पेश करता है. इसका नाम उसी दुर्लभ भूरे सींग वाले हिरण के नाम पर संगाई रखा गया है, जो मुख्य रूप से मणिपुर में पाया जाता है. इतना ही नहीं यह हिरण यहां का राज्य का प्रतीक भी है. लेकिन इस बार मुद्दा सिर्फ उत्सव का नहीं है, बल्कि उस माहौल का भी है, जिसमें इसे आयोजित किया जा रहा है. यही वजह है कि कई लोग इसे संवेदनहीनता बताकर विरोध करने की तैयारी में हैं.

मणिपुर की परंपरा और विरासत का अनोखा उत्सव

संगाई महोत्सव 2010 में शुरू हुआ और धीरे–धीरे यह मणिपुर की सांस्कृतिक पहचान का सबसे बड़ा प्रतीक बन गया. यहां आने वाले लोग लोक नृत्य, हस्तशिल्प, हथकरघा, स्थानीय स्वाद, पारंपरिक खेल और मैतेई मार्शल आर्ट जैसी कई अनोखी कला और परंपराओं को एक ही जगह देखने का मौका पाते हैं. दुनिया भर से पर्यटन प्रेमी इस महोत्सव में आते हैं, जिससे न सिर्फ मणिपुर की विरासत को पहचान मिलती है, बल्कि स्थानीय कलाकारों, कारीगरों और कारोबारियों को भी बड़ा मंच मिलता है.

ऐसे में दो साल की हिंसा और तनाव के बाद जब यह उत्सव फिर से लौट रहा है, तो सरकार इसे सामान्य स्थिति की ओर कदम मान रही है, लेकिन जमीनी हालात बताते हैं कि कई चुनौतियां अब भी मौजूद हैं.

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विस्थापितों का विरोध का कारण 

पीटीआई के मुताबिक, इम्फाल घाटी में राहत शिविरों में रह रहे आंतरिक रूप से विस्थापित लोग 20 नवंबर को सरकार के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन की तैयारी में हैं. इन लोगों का कहना है कि जब हजारों परिवार अब भी अस्थायी कैंपों में रह रहे हैं, तो सरकार को पहले पुनर्वास पर ध्यान देना चाहिए, न कि बड़े आयोजनों पर.

ऐसे में मैतेई लोगों की सुरक्षा समिति के उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह ने साफ कहा कि “महोत्सव दो साल बाद हो रहा है, लेकिन इससे पहले विस्थापितों की घर वापसी सुनिश्चित होनी चाहिए थी. हमें भरोसा दिया गया था कि दिसंबर से पहले पुनर्वास पूरा होगा, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं दिखती.” ऐसे में राजेंद्र का कहना है कि क्या ऐसे हालात में उत्सव मनाना जरूरी है? यही बात इस पूरे आयोजन को विवाद के केंद्र में ला रही है. 

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तनाव, सुरक्षा और तैयारियों के बीच बढ़ता असंतोष

2023 की हिंसा के बाद संगाई महोत्सव दो साल तक नहीं हो पाया था. अब जब यह दोबारा शुरू हो रहा है, तो हप्ता कांगजेइबुंग में तेजी से तैयारियां चल रही हैं और सुरक्षा बलों की तैनाती भी बढ़ा दी गई है. लेकिन दूसरी तरफ हालत पूरी तरह सामान्य नहीं हैं. बहुत से विस्थापित लोग अभी भी अपने घर लौटने का इंतजार कर रहे हैं और कई इलाकों में राजमार्गों पर आवाजाही को लेकर समस्याएं बनी हुई हैं. यही वजह है कि विरोध की आवाज लगातार तेज हो रही है. लोगों का कहना है कि जब तक हालात सामान्य नहीं होते और प्रभावित परिवार सुरक्षित घर नहीं पहुंच जाते, तब तक ऐसे बड़े आयोजनों पर सवाल उठना स्वाभाविक है.
 

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