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स्विट्जरलैंड का रेस्तरां जहां आंखों पर पट्टी बांधकर खाते हैं लोग, भारत में भी ट्रेंड

सोचिए, आंखों पर पट्टी बंधी हो, सामने स्वादिष्ट खाना रखा हो, लेकिन आप उसे देख न पा रहे हों बस स्वाद का एहसास महसूस कर रहे हों. भारत समेत कई देशों में ऐसे अनुभव तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं, जिसकी कहानी जानकर आप हैरान रह जाएंगे.

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डार्क डाइनिंग में हर निवाला एक नया एक्सपीरियंस है (Photo: Instagram/Dining in the Dark)
डार्क डाइनिंग में हर निवाला एक नया एक्सपीरियंस है (Photo: Instagram/Dining in the Dark)

आज के दौर में खाना सिर्फ स्वाद की बात नहीं रह गई है. लोग पहले फोटो खींचते हैं, फिर खाते हैं. इंस्टाग्राम पर हर डिश को परफेक्ट दिखाने की होड़ लगी है. हम सब ऐसे लोगों को जानते हैं जो खाने को छूने से पहले उसकी 'एस्थेटिक' तस्वीर खींचना जरूरी समझते हैं.

लेकिन सोचिए, अगर आप ऐसे रेस्तरां में जाएं जहां आपको अपना खाना दिखे ही नहीं... न आप उसकी फोटो ले सकें, न ही उसका रंग देख सकें, तो आपको कैसा लगेगा? दुनिया में ऐसे अनोखे रेस्टोरेंट हैं, जहां आप पूरी तरह अंधेरे में या आंखों पर पट्टी बांधकर खाना खाते हैं और इसी अद्भुत कॉन्सेप्ट को "डार्क डाइनिंग" कहा जाता है.

स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख में 'ब्लाइंडेकुह' जैसे रेस्टोरेंट इसी अनोखी अवधारणा पर काम करते हैं. यहां खाने वाले लोग पूरी तरह अंधेरे कमरे में बैठते हैं, जहां जरा सी भी रोशनी नहीं होती. दिलचस्प बात यह है कि इस रेस्टोरेंट का मकसद सिर्फ कुछ अलग दिखाना नहीं, बल्कि लोगों को एहसास कराना है कि जिनके पास देखने की क्षमता नहीं है, उनकी दुनिया कैसी होती है.

डार्क डाइनिंग की शुरुआत

इस कॉन्सेप्ट की शुरुआत 1990 के दशक के आखिर में यूरोप से हुई थी. सबसे पहले 1997 में पेरिस में "ले गोट डू नोयर" नाम से एक प्रयोग हुआ, जहां लोगों ने अंधेरे में खाना खाया. इसके बाद ज्यूरिख में पहला स्थायी रेस्टोरेंट ब्लाइंडेकुह खुला. यह रेस्टोरेंट एक दृष्टिहीन पादरी जर्ग स्पीलमैन और उनके साथी स्टीफन जप्पा का आइडिया था. वे चाहते थे कि लोग कुछ घंटे बिना रोशनी के बिताकर समझें कि दृष्टिबाधित लोग किस तरह दुनिया को महसूस करते हैं.

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बिना देखे कैसे होता है खाना ऑर्डर 

यहां आने वाले लोग अपनी पसंद के हिसाब से सिर्फ इतना बताते हैं कि वे शाकाहारी, मांसाहारी या सीफूड खाना चाहते हैं. इसके बाद उन्हें अंदाजा भी नहीं होता कि उनकी प्लेट में क्या आने वाला है. खास बात यह है कि रेस्टोरेंट के अंदर मोबाइल फोन या किसी भी तरह की रोशनी ले जाना मना होता है. ग्राहक एक-दूसरे के कंधे पर हाथ रखकर लाइन में चलते हुए अंदर जाते हैं. वेटर उन्हें सीट तक पहुंचाते हैं और बताते हैं कि उनकी प्लेट और गिलास कहां रखा है.

First permanent blackout restaurant
पहला स्थायी ब्लैकआउट रेस्तरां (Photo: Blindekuh website)

स्वाद का नया एक्सपीरियंस

जब आंखें बंद होती हैं, तो बाकी इंद्रियां तेज हो जाती हैं. आप खाने की खुशबू, बनावट और स्वाद को पहले से ज्यादा महसूस करते हैं. कई लोगों का कहना है कि उन्हें ऐसा लगता है जैसे हर निवाला किसी कहानी जैसा है. यही वजह है कि वाइन की खुशबू, सॉस का फ्लेवर, या किसी डिश में मसालों की हल्की महक सब कुछ ज्यादा गहराई से महसूस होता है.

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अब दुनिया भर में हो रहा है लोकप्रिय

आज डार्क डाइनिंग सिर्फ यूरोप तक सीमित नहीं है. सिंगापुर, लंदन, पेरिस, एम्स्टर्डम, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी ऐसे कई रेस्टोरेंट खुल चुके हैं. भारत में सक्षम ट्रस्ट नाम की एक गैर-सरकारी संगठन ने ‘नाइट ऑफ द सेंसेस’ कार्यक्रम का आयोजन किया, जहां लोगों ने कुछ समय के लिए आंखों पर पट्टी बांधी और बिना देखे खाने का एहसास जिया.

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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आखिर मकसद क्या है?

इस कॉन्सेप्ट के पीछे एक बड़ा सामाजिक संदेश है. जिसका मकसद है लोगों को दृष्टिबाधित समुदाय के प्रति समझ और संवेदनशीलता बढ़ाने का मौका देना. साथ ही, यह बताना कि जब हम देखने की क्षमता खो देते हैं, तब बाकी इंद्रियां हमें दुनिया को एक नए नजरिए से महसूस कराती हैं.

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