सुखदेव थापर (Sukhdev Thapar) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान क्रांतिकारी थे, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. वे भगत सिंह और राजगुरु के घनिष्ठ मित्र और साथी थे. सुखदेव का नाम भारतीय इतिहास में साहस, बलिदान और देशभक्ति के प्रतीक के रूप में लिया जाता है.
सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को लायलपुर (अब पाकिस्तान में स्थित फैसलाबाद) में हुआ था. उनके पिता का नाम रामलाल थापर था. बचपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया, जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनके चाचा लाला अचिन्त राम ने किया. सुखदेव शुरू से ही बुद्धिमान, निर्भीक और राष्ट्रप्रेमी थे.
सुखदेव ने लाहौर के नेशनल कॉलेज से पढ़ाई की, जहां उनकी मुलाकात भगत सिंह, राजगुरु, यशपाल और अन्य क्रांतिकारियों से हुई. वे 'हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' (HSRA) के सक्रिय सदस्य थे. उनका उद्देश्य था ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना और भारत में समाजवादी क्रांति लाना.
1928 में, जब लाला लाजपत राय पर अंग्रेजी पुलिस अधिकारी सांडर्स ने लाठीचार्ज करवाया जिससे उनकी मृत्यु हो गई, तो सुखदेव ने भगत सिंह और राजगुरु के साथ मिलकर सांडर्स की हत्या की योजना बनाई और उसे अंजाम दिया.
सांडर्स की हत्या के बाद सुखदेव और उनके साथियों को गिरफ्तार किया गया. लाहौर षड्यंत्र केस के तहत उन पर मुकदमा चला. 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर जेल में फांसी दी गई. यह दिन भारत के इतिहास में 'शहीद दिवस' के रूप में मनाया जाता है.
सुखदेव का बलिदान भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बना. उन्होंने यह साबित कर दिया कि देश की आजादी के लिए निस्वार्थ समर्पण और साहस कितना आवश्यक है. उनका नाम आज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के स्वर्णिम अध्याय में अमर है.
सुखदेव थापर जैसे क्रांतिकारियों के कारण ही भारत आजाद हुआ. उनका जीवन और बलिदान हमें यह सिखाता है कि देश के लिए कुछ भी कुर्बान किया जा सकता है. उनका साहस, आदर्श और देशभक्ति हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं.
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को शहीद का दर्जा दिए जाने के सवाल पर गृह मंत्रालय ने साफ जवाब नहीं दिया. उनका कहना है कि उनकी शहादत सरकारी रिकॉर्ड में होने या न होने पर निर्भर नहीं करती. उनका कद किसी भी पुरस्कार, उपाधि या दर्जे से बहुत ऊपर है.
आज ही के दिन अंग्रेजी हुकूमत ने साल 1931 में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया था. शहीद दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश के कई बड़े नेताओं ने शहीदों को श्रद्धांजलि दी है.
ऐसे समय में जब भारत माता की जय बोलने से राष्ट्रप्रेम मापा जा रहा हो. देश के भीतर ही देश तोड़ने के नारे लग रहे हों. ठीक वैसे ही समय में भगत सिंह की जरूरत शिद्दत से महसूस हो रही है.