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श्राद्ध

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श्राद्ध

श्राद्ध (Shradh) संस्कार हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो पितरों (पूर्वजों) की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है. यह धार्मिक कृत्य विशेष रूप से पितृ पक्ष के दौरान संपन्न होता है, जो हर वर्ष भाद्रपद मास में आता है. श्राद्ध का अर्थ है "श्रद्धा से किया गया कर्म". इसमें श्रद्धा और भक्ति भाव से पूर्वजों का स्मरण कर उनकी आत्मा की शांति के लिए विशेष पूजा, भोजन और तर्पण (जल अर्पण) किया जाता है.

श्राद्ध संस्कार का मुख्य उद्देश्य पितरों को संतुष्ट करना और उनकी आत्मा को मोक्ष प्रदान करना है. हिंदू मान्यता के अनुसार, पितृ आत्मा की शांति से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि और आशीर्वाद बना रहता है. यदि श्राद्ध सही विधि से नहीं किया जाए, तो माना जाता है कि पितृ असंतुष्ट हो सकते हैं और परिवार पर अशुभ प्रभाव पड़ सकता है. इसीलिए यह कर्म अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है.

श्राद्ध कर्म में विशेष पूजन और तर्पण किया जाता है. इसे पितृ पक्ष के दिनों में विशेष श्रद्धा भाव से अंजलि, पापमोचक मंत्र, गायत्री मंत्र और अन्य पितृ मंत्रों का उच्चारण करते हुए अन्न, जल और अन्य सामग्रियों का दान किया जाता है.
मुख्यतः तीन प्रकार के श्राद्ध होते हैं:

पूर्वज श्राद्ध - पूर्वजों के सम्मान में किया जाता है.

सामान्य श्राद्ध- सभी पितरों के लिए किया जाता है.

विशेष श्राद्ध- किसी विशेष पितृ की पुण्य तिथि पर या आवश्यकता अनुसार किया जाता है.

श्राद्ध के दौरान पितरों के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए रसोई में बने शुद्ध भोजन (चावल, दाल, फल आदि) को ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोग के रूप में अर्पित किया जाता है. साथ ही तर्पण किया जाता है, जिसमें जल अर्पण करके पितृओं की आत्मा की शांति की कामना की जाती है.

श्राद्ध करने से न केवल पितरों की शांति होती है, बल्कि व्यक्ति के मन में पुण्य कर्म करने की प्रेरणा भी मिलती है. यह परंपरा परिवार के संबंधों को सुदृढ़ बनाती है और लोगों को अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञ बनाती है. साथ ही यह याद दिलाती है कि हम सभी संयोग और पूर्वजों के आशीर्वाद से इस संसार में हैं.
 

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