माधव सदाशिवराव गोलवलकर (Madhav Sadashiv Golwalkar) भारतीय राजनीतिज्ञ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के दूसरे सरसंघचालक थे. गोलवलकर को आरएसएस के अनुयायियों द्वारा सबसे प्रभावशाली और प्रमुख विचारकों में से एक माना जाता है. उन्होंने हिंदू राष्ट्र और बाद में अखंड भारत के विचार की नींव रखी. गोलवलकर भारत के प्रारंभिक हिंदू राष्ट्रवादी विचारकों में शामिल थे.
गोलवलकर का जन्म 19 फरवरी 1906 को नागपुर के पास रामटेक में मराठी कर्हाडे ब्राह्मण परिवार में हुआ. उनके पिता सादाशिवराव गोलवलकर पोस्ट एंड टेलीग्राफ विभाग में क्लर्क थे और बाद में एक उच्च विद्यालय के प्रधानाचार्य बने. गोलवलकर नौ बच्चों में इकलौते जीवित पुत्र थे. पिता के बार-बार स्थानांतरण के कारण उन्हें कई स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करनी पड़ी.
आरएसएस के संस्थापक के.बी. हेडगेवार ने उन्हें कानून की पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया ताकि उन्हें संगठन में नेतृत्व के लिए आवश्यक प्रतिष्ठा मिल सके. 1934 में माधव सदाशिवराव गोलवलकर को नागपुर शाखा का सचिव बनाया गया.
अक्टूबर 1936 में गोलवलकर ने अपना कानून अभ्यास छोड़ कर पश्चिम बंगाल के सरगाची रामकृष्ण मिशन आश्रम में संन्यास लेने का निर्णय लिया. वे गुरु अखंडानंद के शिष्य बने, जो स्वयं रामकृष्ण और विवेकानंद के अनुयायी थे. जनवरी 1937 में उन्होंने दीक्षा ग्रहण की, लेकिन थोड़े समय बाद ही आश्रम छोड़ दिया और मानसिक अशांति के कारण हेडगेवार से मार्गदर्शन लेने नागपुर लौट आए. हेडगेवार ने उन्हें समझाया कि समाज के लिए उनकी सेवा RSS में ही सर्वोत्तम होगी.
गोलवलकर RSS में लौट आए और 1937-39 तक ऑल इंडिया ऑफिसर्स ट्रेनिंग कैंप का प्रबंधन संभाला. 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद गोलवलकर और 20,000 स्वयंसेवक गिरफ्तार किए गए और आरएसएस पर प्रतिबंध लगा. हत्या में RSS की कोई आधिकारिक भागीदारी साबित नहीं हुई.
गोलवलकर की स्मृति में केरल में राजीव गांधी सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी के दूसरे परिसर का नामकरण विवादित रहा. कुछ सांसदों और राजनीतिक दलों ने इसे आलोचनात्मक रूप से देखा, जिसमें कम्युनिस्ट पार्टी और केंद्रीय सांसद शशि थरूर शामिल थे.
माधव सदाशिवराव गोलवलकर का निधन 5 जून 1973 हो गया, वे 67 साल के थे.
गोलवलकर का योगदान भारतीय हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा में अमिट माना जाता है और उनकी पुस्तकें “We or Our Nationhood Defined” (1939) और “Bunch of Thoughts” (1960) आज भी अध्ययन का विषय हैं.
जीवन के आखिरी दिनों में जब डॉ हेडगेवार गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे तो गुरु गोलवलकर उनके साथ परछाई की तरह हो लिए. एक बार जब चर्चा हो रही थी कि व्रत के लिए आपका दिन कौन सा है? किसी ने कहा सोमवार तो किसी ने मंगलवार. लेकिन गुरु गोलवलकर ने कहा, “मेरा तो एक ही वार है- हेडगेवार”. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है वही कहानी.
गुरु गोलवलकर अध्यात्म और राष्ट्र निर्माण को साथ-साथ लेकर चलते थे. यही वजह रही कि उनकी जीवन यात्रा में एक समय ऐसा आया जब वो सार्वजनिक जीवन को छोड़कर नागपुर से मीलों दूर बंगाल के रामकृष्ण आश्रम में आ गए. एक स्वामी की सेवा करने. ये वही समय है जब डॉ हेडगेवार संघ का नेतृत्व सौंपने के लिए एक ऊर्जावान और चरित्रवान शख्सियत खोज रहे थे. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है यही कहानी.
हैदराबाद का निजाम जब अपने अमले के साथ मद्रास एक्वेरियम देखने के लिए पहुंचा तो मुख्य द्वार पर ड्यूटी माधव की थी. उन्होंने अपने कर्तव्य का पालन करने हुए टिकट की मांग की, लेकिन ये बात निजाम को अखर गई. उन्होंने अपना परिचय दिया, लेकिन माधव अड़े रहे. फिर क्या हुआ? RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है वही कहानी.
संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर प्रखर मेधा के व्यक्ति थे. हिन्दू धर्म ग्रंथों पर चिंतन मनन, बाइबिल पढ़ना, पश्चिमी साहित्य का अध्ययन वे बचपन से ही कर रहे थे. शेक्सपीयर और बाइबिल के बारे में उनकी समझ को जान कर अंग्रेज प्रोफेसर भी हैरान हो जाते थे. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है गोलवलकर की कहानी.
1963 की दिवाली भारत-चीन युद्ध के बाद शोक और सेवा की भावना में डूबी रही. तत्कालीन आरएसएस प्रमुख गुरु गोलवलकर के नेतृत्व में संघ ने ‘सेवा दीपावली’ अभियान चलाया, सीमावर्ती इलाकों में स्वयंसेवक भेजे, घायल सैनिकों की मदद की, शहीद परिवारों को आर्थिक सहायता दी और राष्ट्र रक्षा और आत्मनिर्भरता पर ज़ोर दिया.